भीलवाड़ा। बदनोर पंचायत समिति के दड़ावट पंचायत क्षेत्र के रेलियाचौटियास गांव में करीब तीन महीने से जिंदगी की जंग लड़ता 49 वर्षीय गोपाललाल भील उपचार के लिए तरस रहा है। बेटे के इलाज में भेड़ बकरियां बिक गई। आर्थिक तंगी के चलते तीन महीने से कोमा में पुत्र की रोते बिलखती सेवा करती है 70 वर्षीय मां रामूदेवी भील ने सरकार से बेटे के इलाज की गुहार लगाई है।
मां रामू देवी ने बताया कि तीन माह पूर्व बेटा गोपाल भील मोटरसाइकिल से घर आ रहा नेशनल हाईवे 148 पड़ासोलीचौकड़ी पर अज्ञात वाहन ने टक्कर मार दी थी। टक्कर से वह बुरी तरह से घायल हो गया था। इसे आसींद चिकित्सालय लेकर गए वहां से भीलवाड़ा रैफर किया। भीलवाड़ा में जिला चिकित्सालय से अजमेर रैफर कर दिया। यहां करीब 20 दिन तक इलाज चला था।
डॉक्टर ने 20 दिन इलाज कर घर ले जाने की छुट्टी दे दी। उस दौरान भी मेरा बेटा ना हिलाता है ना डुलता है। केवल धड़कनें चल रही है। नली से ही दवाई दी जाती है। आर्थिक स्थिति कमजोर होने से मैं अपने बेट का बड़े चिकित्सालय में इलाज नहीं कर पा रही हूं। रोते हुए मां ने बताया कि मुझसे ऐसी क्या गलती हुई जो भगवान ने मेरे साथ ऐसे दुखों का पहाड़तोड़ा पहले ही 47 वर्षीय छोटा बेटा घीसालाल भील 20 साल पूर्व गुजरात में मजदूरी करने गया वहां काम करते समय दुर्घटना में रीड की हड्डी टूटने से घर पर ही चारपाई पर पड़ा रहता है। अब 3 महीने से बड़ा बेटा जिंदगी की जंग लड़ रहा।
छोटे बेटे के इलाज के लिए बेचे जेवर
पहले छोटे बेटे के इलाज में जेवर बेचने पड़े अब बड़े बेटे के इलाज में भेड़ बकरियां बेचनी पड़ी। आर्थिक तंगी से परेशान हैं। बेटे का इलाज कैसे कराऊ। घर में कमाने वाला एक पोता है जो ट्रैक्टर पर मजदूरी करता है। उससे घर चल रहा है।