पर्यावरण हम सभी के लिए एक अमूल्य धरोहर है, लेकिन पिछले कुछ सालों से प्रकृति की उपेक्षा की जा रही है, जिसके कई प्रतिकूल परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं। हालांकि, हमारे इर्द-गिर्द कुछ ऐसे वीर हैं, जो धरती को फिर से हरी चुनर ओढ़ाकर जीवन को प्राण वायु देने के प्रयास में जुटे हैं। आज जरूरत है उनके साथ कंधा से कंधा मिलाकर या जीवन का सबसे बड़ा मिशन समझकर धरती को फिर स्वस्थ, सुंदर और मनमोहक बनाने की। जब धरती हरी चुनर ओढ़ेगी तो ही चहुंओर खुशियों के फूल खिलेंगे। हर व्यक्ति स्वस्थ होगा। ऐसे ही प्रयास हमारे जिले में भी कई लोग कर रहे है। जो गांव-गांव में ऑक्सीजोन विकसित करने के लिए कदम बढ़ा रहे हैं। विश्व पर्यावरण दिवस पर ऐसे ही कर्मवीरों की कहानी हम आपको बताते हैं…
पांच पौधों से शुरुआत, अब तक 3000 से अधिक पौधे
सोजत रोड के रहने वाले नाथुसिंह भाटी वर्ष 2010 में डॉ. बीसी अग्रवाल से मिले। जो सोजत रोड के मुक्तिधाम को ऑक्सीजोन बना रहे थे। उनसे मिली प्रेरणा से उसी साल पांच पौधे लगाए और फिर पौधों में ऐसा मन रमा कि एक के बाद एक पौधे लगाते ही चले गए। अलखजी की ओरण में इतने पौधे लगा दिए कि वह ऑक्सीजोन बन गया। वे अब तक 3000 से अधिक पौधे लगा चुके हैं। पेशे से शिक्षक भाटी कहते हैं कि पौधे लगाकर उनके बड़ा होने पर ऐसा लगता है मानो खुद के बच्चे बड़े हो गए हैं।
यहां आकर ऐसा लगता है यह जन्नत
जिले का बांता गांव, जिसमें इतनी हरियाली है कि वहां पहुंचते ही लगता है मानो जन्नत में आ गए। इस गांव के साथ अन्य जगहों पर गोचर व ओरण में लोग कब्जा करते थे। पत्थर व मिट्टी के अलावा कुछ नहीं दिखता था। ऐसे में समुंद्रसिंह ने पर्यावरण परिषद टीम बनाई। हर वर्ग के लोगों को जोड़ा और पौधरोपण शुरू किया। वे पौधे आज वृक्ष बन चुके हैं और अस्पताल, तालाब व अन्य जगहों पर हरियाली ही हरियाली आच्छादित हो गई। समुद्रसिंह बताते हैं कि उनके लगाए करीब 2300 पौधे आज भी जीवित है और पौधरोपण का क्रम जारी है।