मैं बैकुंठपुर का रहने वाला हूं। जब मैं एक साल का हुआ तक मुझे ग्लूकोमा हो गया। आंखों की रोशनी जाने के बाद मैंने इसी स्कूल में दाखिला ले लिया। संयुक्त मध्यप्रदेश के समय दृष्टिबाधित बच्चों के लिए हायर सेकंडरी की पढ़ाई जबलपुर में होती थी। वहां से पढ़ाई के बाद मैं कटनी चला गया और दसवीं से नॉर्मल बच्चों के साथ पढऩे लगा। राइटर के तौर पर हमें बिलो स्टैंडर्ड छात्र दिया जाता था। इसका मतलब यह कि अगर मैं दसवीं में हूं तो मुझे नौवीं का विद्यार्थी दिया जाता था। बिलासपुर से यूजी-पीजी के बाद इंदौर से स्पेशल बीएड किया। 1996 में पहली पोस्टिंग बतौर शिक्षक जगदलपुर में हुई जहां 20 साल तक रहा। वहां से ट्रांसफर के बाद यहां सेवाएं देने लगा। यह बताया, प्रिंसिपल अमित कुमार त्रिवेदी की कहानी भी बहुत खास है। पिछले साल ही वे प्रमोट होकर प्रिंसिपल बने लेकिन उनकी पढ़ाई भी यहीं हुई। पत्रिका से खास बातचीत में उन्होंने बताया, मठपुरैना स्थित शासकीय दृष्टि एवं श्रवण बाधितार्थ विद्यालय के प्राचार्य अमित कुमार त्रिवेदी ने।