वार्ड में जाने के बाद सभी ने राहत की सांस ली कि रैंप पर पैर नहीं फिसला नहीं तो ऑपरेशन के बाद एक और हादसा हो जाता। ईसरथुनी निवासी नानूराम का दुर्घटना में पैर फ्रेक्चर हो गया। इलाज के लिए ट्रामा सेंटर लाए। शनिवार दोपहर 12.32 बजे पहली मंजिल के ऑपरेशन थिएटर में पैर का ऑपरेशन हुआ। इसके बाद वार्ड में ले जाना था। लिफ्ट महीनों से बंद पड़ी है। इस कारण ऑपरेशन रूम से कहा स्ट्रेचर ले आओ ओर ले जाओ।
आंखों देखी
पुत्र कालूराम ने नीचे गया यहां-वहां वार्डबॉय को ढूंढा लेकिन नहीं मिला। स्वयं ने हत्था टूटी-स्ट्रेचर उठाई और एक मददगार पप्पू को साथ लेकर प्रथम तल पर गया। ऑपरेशन रूम के बाहर दर्द से कहराते पिता को दो लोगों व मां हीराबाई की मदद से स्ट्रेचर पर लैटाया। पुत्र ने जूते ऊतारे एक तरफ रखे ताकि पैर नहीं फिसले। मददगार पप्पू ने एक हाथ स्ट्रेचर पकड़ी और दूसरे से साइड की रैलिंग पकड़ी। कालूराम की मां ने पीछे से स्ट्रेचर पकडकऱ धीरे-धीरे रैंप से नीचे उतारा।
बेटा बोला- लिफ्ट चालू होती तो परेशानी नहीं होती
कालूराम ने कहा, लिफ्ट बंद है वार्डबॉय मिला नहीं तो मैं ही स्ट्रेचर ऊपर लेकर गया, दो लोगों की मदद से पिता को स्ट्रेचर से वार्ड में लाया। लिफ्ट चालू होती तो परेशानी नहीं होती।
हर दिन बनते है ऐसे दृश्य
ऐसा शनिवार को ही नहीं लगभग प्रतिदिन होता है। ट्रामा सेंटर में लिफ्ट लगी है लेकिन जिम्मेदार उसकी देखरेख नहीं कर पाए जिसके कारण वह महीनों से बंद है। पहली मंजिल के ऑपरेशन थिएटर से मरीज को वार्ड में शिफ्ट करने परिजनों को रोज ही ऐसी मशक्कत करना पड़ती है।
4.24 करोड़ की लागत से बना ट्रामा सेंटर बेहाल, जनसहयोग से सुधराते लिफ्ट
जिला अस्पताल के ट्रामा सेंटर के प्रथम तल पर सर्जिकल एवं आर्थोपेडिक ऑपरेशन के लिए जाना पड़ता है। 2011 में 4.25 करोड़ की लागत से ट्रामा सेंटर बना था। मेडिकल स्टोर संचालक सुशील मूणत ने बताया कि पिछले महीने जीएमडी ग्रुप ने जनसहयोग से निजी इंजीनियर को बुलाकर लिफ्ट चालू करवाई थी, लेकिन 10-12 दिन चली इसके बाद फिर बंद हो गई।
इनका कहना
जिला अस्पताल सिविल सर्जन डॉ. एमएस सागर ने बताया कि प्रायवेट भी समाजसेवियों ने सुधरवाई लेकिन ठीक नहीं हो रही है। मैं आया तब भी ठीक करवाई थी। पुरानी बिल्डिंग है इसलिए पूरे अस्पताल में वाल्टेज की दिक्कत है। सेपरेड फिडर के लिए काम चल रहा है, तभी परेशानी दूर होगी।