सागर. आज विजय दिवस है, वह दिन जब हिंद की सेना ने हिमालय की बर्फीली दुर्गम चोटियों से पाक सेना को खदेड़कर शिकस्त दी थी। यह दिन पूरे देश में गर्व से मनाया जाता है। राष्ट्र रक्षा के इस युद्ध में हिमालय की दुर्गम बर्फ से आच्छादित चोटियों पर महार रेजिमेंट के योद्धाओं ने भी अपने लहू से विजय की इबारत लिखी थी। एमआरसी स्थित म्युजियम महार रेजिमेंट के उन 24 योद्धाओं की शहादत और दुश्मनों को भागने मजबूर करने वाले जवानों की वीर गाथा का स्मारक बन गया है। करगिल फतह की याद में म्युजियम में वे हथियार और सैन्य उपकरण रखे हैं जिन्हें पाक सेना की पराजय के बाद करगिल की चोटियों से जब्त किया गया था। यहां का हर गलियारा करगिल की जीत और शहीदों की वीरता की कहानी सुनाता महसूस होता है।
सागर के एमआरसी स्थित संग्रहालय में पीठ दिखाकर भागे पाकिस्तानी सैन्य अफसरों की वर्दी, बंदूकें, मशीन गन व बर्फीली पहाडिय़ों पर जवानों को सुरक्षित रखने वाले शीतरोधी बंकर भी हैं। सैन्य परिवार, स्कूलों के विद्यार्थी समय- समय पर रेजिमेंट सेंटर में स्थित म्युजियम में भारतीय सेना की वीरता और विभिन्न सैन्य अभियानों की यादों को ताजा करने पहुंचते हैं।
करगिल जीत के लिए महार के 24 योद्धाओं ने बहाया था लहू :
करगिल पर फतह के लिए भारतीय सेना के 529 जवानों ने अपना बलिदान दिया था। इस युद्ध में महार रेजिमेंट की विभिन्न बटालियनों के 24 योद्धाओं ने भी राष्ट्ररक्षा में अपना बलिदान दिया है। इन शहीदों का नाम अब पूरी रेजिमेंट के लिए शौर्य, साहस और सम्मान का प्रतीक बन गया है। महार के योद्धाओं ने करगिल युद्ध के समय सियाचिन के ग्लेशियरों पर भी मोर्चा संभाला था। यहां देश की रक्षा और मातृभूमि के सम्मान कि लिए महार योद्धाओं ने अपना खून बहाया था। इस बलिदान के लिए सियाचिन के ग्लेशियर नंबर 3 पर सैन्य पोस्ट का नाम 9-महार के शहीद मेजर मनोज तलवार के नाम पर रखा गया है। सबसे ज्यादा शहीद 12-महार के दस जवान नायक राठौर मुकेश कुमार रमनिक,नायक सच्चिदानंद मलिक, सिपाही अमरेश पाल, सिपाही बरियावाला भाई, सिपाही हरेन्द्र गिरी गोस्वामी, सिपाही दिनेश भाई, लांस नायक कांति भाई कतवाला, नायक श्रीनिवास पात्रो सिंघा, सिपाही हरिकिशन राम, नायक रजत भाई रुमाल, 9-महार के आठ जवान मेजर मनोज तलवार, कैप्टन करम सिंह, हवलदार सुरेश गनपति चावन, नायक रामफल, नायक बृह्मदास, सिपाही प्रेमपाल सिंह, सिपाही रमन सिंह, 19-महार के 6 जवान सिपाही हरिदर्शन नेगी, सिपाही रस्ते वजीर दत्तात्रेय, सिपाही सुनील कुमार, लांस नायक हरिश्चंद्र सिंह, सिपाही श्यामपाल खन्ना के नाम रेजीमेंट और सेना के इतिहास में अमिट हो गए।
शीतरोधी बंकर सुनाता है पाक सेना के भागने की कहानी :
महार जवानों की वीरता की निशानी के तौर पर अब रेजिमेंट सेंटर में म्यूजियम मैदान में पाकिस्तानी सेना के बंकर को देखा जा सकता है। यह शीतरोधी बंकर सियाचिन की बर्फीली चोटियों पर सर्द हवाओं से बचने के लिए पाक सेना ने रखा था। युद्ध के दौरान जब भारतीय सेना की टुकड़ी के आगे पाक सैनिक पस्त पड़कर भागे तब इसे जीत की निशानी के रूप में जब्त कर यहां लाया गया था।
हथियार- वर्दी छोड़ पीठ दिखाकर भागा था पाक अफसर :
महार योद्धाओं की टुकड़ी ने करगिल फतह के लिए मशखोह घाटी में मोर्चा संभालते हुए जमकर गोलाबारी कर पाकिस्तानी सेना को खदेड़ दिया था। लगातार गोलाबारी से घबराकर जब पाक फौजी मोर्चा छोड़कर भाग रहे थे तब मोर्चे पर तैनात पाक सेना का लेफ्टिनेंट मंजूर कादिर इतना भयभीत हो गया था कि अपने जवानों को ही नहीं बल्कि वर्दी और हथियार भी छोड़कर भाग गया था। महार रेजिमेंट की टुकड़ी ने इस भगोड़े सैन्य अफसर की वर्दी और हथियार के अलावा पत्नी को लिखी कुछ चिट्ठियां भी जब्त की थीं। यह पूरा सामान अब रेजिमेंट के म्युजियम में सुरक्षित है।
-कुछ याद इन्हें भी कर लो :
1. 22 साल में ही देश के लिए शहीद होने वाले जवान कालीचरण तिवारी ने मोर्चे पर डटे रहकर 12 गोलियां सीने पर झेली थीं। 28 सितम्बर 1976 को जन्म कालीचरण ने जब शहादत प्राप्त की उनकी उम्र केवल 22 साल ही थी लेकिन दिलो-दिमाग में मातृभूमि के लिए न्यौछावर होने का जज्बा भरा हुआ और वे बचपन से ही फौजी बनने का सपना देखते थे।
2. करगिल युद्ध में देश की रक्षा के लिए कालीचरण तिवारी के अलावा एक और भी सपूत दिया था। सदर के हेमंत कटारिया ने भी करगिल की चोटियों पर ऑपरेशन रक्षक के तहत 21 जुलाई 2000 को अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। उनकी याद में सदर क्षेत्र में प्रतिमा भी लगाई गई है और इस वीर को लोग अब भी अपने दिलों में जिंदा रखे हैं।