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सुकमा

अपने आराध्य को मनाने आदिवासियों ने किया पेन पंडुम का आयोजन, देखिए ये खास रस्म वीडियो में

पेन पंडुम(Pen Pandum) में तेरह साल बाद ग्रामीणों (Villagars) ने की अपने देवी-देवता की पूजा-अर्चना

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जगदलपुर. सलवा जुडूम के बाद सुकमा जिले के कई आदिवासी परिवार पुश्तैनी जमीन छोडक़र सीमांध्र समेत चार राज्यों(States) की ओर पलायन (Walk away) कर गए थे। गांव में करोड़ों की कृषि भूमि के मालिक होने के बाद भी आदिवासियों को वहां मजदूरी कर दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना पड़ रहा था।

शुभ्रांशु चौधरी इसमें आदिवासियों की मदद कर रहे है
अब 13 साल बाद वे लौटने की तैयारी कर रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता (Social Worker) शुभ्रांशु चौधरी इसमें आदिवासियों की मदद कर रहे है। भू अधिकार के लिए शुभ्रांशु की टीम इलाके में लोगों से फार्म भरवा रही है। बुधवार को पेन पंडुम का कोंटा के हाई स्कूल में आयोजन हुआ। इसमें 300 से ज्यादा आदिवासियों की मौजूदगी में 644 विस्थापित गांवों के देवी-देवताओं (gods and goddesses) का आह्वान कर उनकी पूजा-अर्चना (worship) की गई। ग्रामीणों का मानना था कि उनके गांव छोडऩे से देवी-देवता नाराज हैं, उन्हें मनाने के बाद ही वे अपने भू अधिकार की मुहिम शुरू करेंगे।

हजारों आदिवासियों को वापसी की उम्मीद
2005 में माओवादियों (Naxalites)के खिलाफ शुरू किए गए सलवा जुडूम (Salwa Judum) जिले के कई गांवों में कहर बनकर टूटा। जिले के सैकड़ों गांव तबाह हो गए। हजारों आदिवासी परिवार अपना घर-बार छोडक़र सीमांध्र समेत 4 राज्यों की ओर पलायन कर गए। 2005 के बाद से सुकमा के आदिवासी कभी अपने गांव लौटने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। अब 13 साल बाद आदिवासी परिवार अपने गांव लौटना चाह रहे हैं। ऐसे आदिवासी परिवारों की वापसी के लिए सीजीनेट स्वर के संस्थापक व समाजसेवी शुभ्रांशु चौधरी के नेतृत्व में पहल की गई। पीडि़त परिवारों को लेकर आंध्रप्रदेश के चट्टी से जिला मुख्यालय तक पदयात्रा की गई। इसके बाद संभागीय मुख्यालय जगदलपुर से राजधानी रायपुर तक साइकिल यात्रा निकालकर सरकार से विस्थापितों को दोबारा गांव में बसाने का आग्राह किया गया। इसके बाद ही ग्रामीणों की वापसी की राह तैयार हो पाई।