उन्नाव. सावन के आखिरी सोमवार में जनपद के शिवालयों में भोले के भक्तों का तांता लगा है। शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के लिए दिन भर भक्तों की लंबी-लंबी लाइनें देखी गई। लखनऊ कानपुर मार्ग पर स्थित गोकुल बाबा धाम में सुबह से ही भक्तों की लंबी-लंबी लाइनें लगी है। शिवालय व्यवस्थापक द्वारा महिलाओं और पुरुषों भक्तों के लिए अलग-अलग लाइनें लगाई गई थी और एक के बाद एक व्यवस्थित ढंग से लोगों को दर्शन करने का अवसर मिल रहा था। मंदिर परिसर में मेला सा रूप ले लिया है। वही भागवत कथा का भी आयोजन किया जा रहा है। जिसमें आज सत्य हरिश्चंद्र के जीवन पर आधारित कथा का वाचन किया जा रहा है। मंदिर परिसर में लगी दुकानों में भोले को प्रिय बेलपत्र धतूरा कमल के साथ दूध के पैकेट की भी बिक्री हो रही थी। जिससे भक्तों को आसानी से सभी वस्तुएं एक ही स्थान पर उपलब्ध हो रही थी।
एक खास स्थान पर थन से स्वत: दूध निकलने लगता
गोकुल बाबा के संबंध में जानकारी देते हुए शिव विलास विश्वकर्मा ने बताया कि गोकुल एक चरवाहा था। जो प्रतिदिन अपनी गाय चराने के लिए जाता था। जंगल में एक खास स्थान पर जाकर उसकी गाय खड़ी हो जाती थी। जिसके थन से स्वत: दूध गिरने लगता था। शाम को गोकुल को दूध दुहने के समय कुछ भी ना मिलता था। जिसके बाद उसने गाय का पीछा किया और देखा कि गाय आखिर जाती कहां है। कौन इसका दूध निकाल ले जाता है। इस पर गाय एक खास स्थान पर खड़ी हो गई। जहां स्वत: गाय के थन से दूध गिरने लगा। जिसके बाद वह आश्चर्य में पड़ गया। बताते हैं इस पर गोकुल ने मौके पर जाकर देखा की आखिर दूध गिर कहां रहा है। थोड़ी खुदाई और साफ-सफाई के बात वहां उसे एक शिवलिंग नुमा पत्थर मिला। गोकुल ने साथी चरवाहों को भी मौके पर ले जाकर दिखाया। सभी साथी चरवाहों ने उस जगह की साफ सफाई करवाई तो वहां पास में ही नंदी के रूप में एक और शिला दिखाई पड़ी।
खुदाई से मिले कलश से हुई धन की आपूर्ति व मंदिर का निर्माण
उन्होंने बताया कि उसी रात गोकुल को रात में स्वप्न आता है कि उस जगह की खुदाई करो। मौके पर तुम्हें दो कलश मिलेंगे। उन कलश से मिलने वाले धन से मंदिर का निर्माण कराओ। मंदिर निर्माण लिए कभी धन की कमी नहीं पड़ेगी। लेकिन स्वप्न में इस बात की मनाही की गई थी कि धन मिलने का राज किसी को ना बताएं। राज ना बताने तक कलश से धन की अपूर्ति होती रहेगी। गोकुल मंदिर निर्माण के लिए लगने वाला धन कलश से ले लिया करता था। उस दिन की पूर्ति कलश में हो जाया करती थी।
मां के दबाव पड़ने पर बता दिया धन कहां से आता है तो रुक गया मंदिर निर्माण का कार्य
एक दिन गोकुल की मां मौके पर आ गई और उसने पूछा कि यह धन कहां से आता है। उस समय मंदिर अपनी ऊंचाई को प्राप्त कर चुका था। गोकुल ने मां को इस विषय में कुछ नहीं बताया। लेकिन मां के दबाव पड़ने और जिद के आगे गोकुल को मजबूरी में बताना ही पड़ गया कि धन कहां से आता है। गोकुल के द्वारा मां को धन मिलने के संबंध में बताने के साथ ही कलश में धन की आपूर्ति बंद हो गई। इसके बाद गोकुल ने कलश में उपलब्ध धन से मंदिर के गुंबद का निर्माण करा कार्य संपन्न करा दिया बंद करवा दिया।
आने वाली बहू से भयभीत थी मां तो नहीं की शादी गोकुल में
गोकुल बाबा मंदिर के साथ एक और कथा जोड़ी है। बुजुर्गों से सुनी चर्चाओं को बताते हुए शिव बिलास ने बताया कि गोकुल की बारात जा रही थी। बारात निकासी के थोड़ी देर बाद गोकुल को याद आया है कि वह सामान घर में भूल गया है। जिसे लेने जब वह घर पहुंचा तो देखा कि मां दही बड़ा खा रही है। जिसे देख कर उसे आश्चर्य हुआ। उसने मां से कहा मां इस तरह क्यों खा रही हो। इस पर गोकुल की मां ने कहा अब तुम्हारी बहू आ जाएगी। पता नहीं कुछ खाने को मिले ना मिले। इसलिए आज ही इच्छा भर के दही बड़ा खा लेती हूं। यह सुनकर गोकुल को बहुत आश्चर्य हुआ और कष्ट पहुंचा। उसने मां से कहा मां यदि तुम्हें यही भय है तो मैं वह दिन आने ही नहीं दूंगा। उसने शादी नहीं करने का निश्चय किया।
मठ की पुताई पल्लू से की जाती है
कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी से गोकुल बाबा का बहुत ही विशाल मेला लगता है। जो कार्तिक एकादशी तक चलता है। इस दौरान माताएं जिनकी मन्नत पूरी हो जाती है। वह मठ को अपने पल्लू से पुताई करती हैं। यह पुताई चावल के बने आयपन से होती है। यह कार्यक्रम 5 दिनों तक चलता है। गोकुल बाबा की ख्याति दूर दूर तक है। जनपद के अलावा आस पड़ोस के जिले के भी लोग बड़ी संख्या में मठ पूजन के लिए आते हैं। जो अपने मन्नत पूरी होने पर मठ पूजने या भोले बाबा के दर्शन करने के लिए आते हैं।