वाराणसी. रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन, नई दिल्ली के अध्यक्ष, डॉ जी सतीष रेड्डी ने कहा कि तकनीकी के क्षेत्र में हम काफी समय से काम कर रहे हैं। काफी कुछ हासिल किया है, लेकिन अब दुनिया में राज करने के लिए, अपनी तकनीक का निर्यात करने के लिए नया काम करना होगा। नए शोध करने होंगे जो दुनिया में अभी तक नहीं हुए हैं। अब फालोवर बन कर नहीं रह सकते हैं। खास तौर पर रक्षा के क्षेत्र में हमे काफी नए शोध करने की जरूरत है। हम ऐसा कर सकते हैं, बस खुद को मोटीवेट करने की जरूरत है। इसके लिए रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन हर संभव मदद करने को तैयार है।
डॉ रेड्डी शनिवार को आईआईटी बीएचयू के सातवें दीक्षांत समारोह के मुख्य अतिथि के तौर पर बनारस में थे। मीडिया से बातचीत में उन्होंने बताया कि पूर्व राष्ट्रपति स्व. अब्दुल कलाम जी के जन्मदिन पर हम लोगों ने नई प्रतिभाओं को प्रेरित करने के लिए डे टू ड्रीम प्रोजेक्ट शुरू किया है। इसके तहत नई टेक्नॉलजी के विकास के लिए कोई भी आगे आता है तो उसको डेढ़ करोड़ रुपये तक देने की व्यवस्था है। उन्होंने बताया कि भारत को डिफेंस टेक्नॉलजी में आगे आना है, रक्षा उत्पादों का निर्यात करना है तो नई तकनीक का विकास करना होगा। अब समय आ गया है कि हम भविष्य के लिए सोचें, भविष्य की तकनीक पर काम करें तभी अमेरिका और चीन के मुकाबिल खड़े हो सकते हैं। इसके लिए हमें ऐसे उत्पाद पर काम करना होगा जो अब तक दुनिया के किसी देश में न बना होगा। कोई भी चीज मार्केट में या तो सबसे पहले आए या दूसरे के साथ आए तभी हमारी पूछ होगी।
डॉ रेड्डी ने बताया कि यूपी में डिफेंस कॉरिडोर पर काम शुरू हुआ है। आईआईटी बीएचयू को उसके लिए नॉलेज पार्टनर के रूप में चुना गया है। यह अच्छी बात है। अब डीआरडीओ और आईआईटी मिल कर किन-किन क्षेत्रों में काम कर सकते हैं इस पर आज ही (29 दिसंबर 2018) निदेशक आईआईटी बीएचयू प्रो पीके जैन से वार्ता होगी। इस प्रथम चरण की वार्ता के बाद हमारी टीम यहां आएगी और संस्थान के प्रोफेसरों संग वार्ता कर संयुक्त रूप से काम करने पर अनुबंध होगा।
उन्होंने बताया कि हम जल्द ही आईआईटी बॉंम्बे और आईआईटी चेन्नई की तरह आईआईटी बीएचयू में भी डीआरडीओ का सेंटर खोलेंगे। कहा कि निदेशक प्रो जैन मैन्यूफैक्चरिंग के मास्टर हैं और आज मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में काफी कुछ काम करने की जरूरत है। ऐसे में इनके अनुभवों से हम युवाओं को प्रेरित कर नई-नई कंपनियां खोल सकते है। उऩ्होंने बताया कि अब जरूरत स्किल्ड मैन पावर की है, ऐसे में हम आईआईटी बीएचयू के साथ मिल कर स्किल्ड यूथ तैयार करने पर काम करेंगे। इसके लिए हम 15-20 दिन में डीआऱडीओ के विशेषज्ञों की टीम यहां भेजेंगे।
उन्होंने कहा कि अब जरूरत है कि ज्यादा से ज्यादा मशीनें भारत में बनें और यह तभी संभव है जब हमारा यूथ उसके लिए मानसिक तौर पर तैयार हो। नए शोध के लिए ऐसा शोध जो अब तक कहीं नहीं हुआ है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि अब वैज्ञानिकों का देश से पलायन रुका है। विदेशों में काम करने वाले अब लौटने लगे हैं। हाल के वर्षों में स्टार्ट अप की संख्या में भी काफी इजाफा हुआ है।