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देश की 80 फीसदी नदियां 50 साल में नाला बनीं-डॉ पालीवाल

बेतवा नदी अध्ययन और जनजागरण यात्रा का समापन

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देश की 80 फीसदी नदियां 50 साल में नाला बनीं-डॉ पालीवाल

देश की 80 फीसदी नदियां 50 साल में नाला बनीं-डॉ पालीवाल

विदिशा. देश की 80 फीसदी नदियां 50 साल में नालों में तब्दील हो गईं। केवल 20 प्रतिशत नदियां नदी रूप में बची हैं। अब भी इन्हें नहीं बचाया तो अगले 20 साल में वे भी नाला बन जाएंगी। यह बात बेतवा अध्ययन और जनजागरण यात्रा के समापन पर मां हास्पिटल परिसर में आयोजित समारोह में मप्र-छग के पूर्व मुख्य प्रधान आयकर आयुक्त और बेतवा परिक्रमा करने वाले डॉ आरके पालीवाल ने कही।

25 फरवरी को बेतवा के उदगम स्थल झिरी से शुरू बेतवा यात्रा का प्रथम चरण 3 मार्च को कुरवाई में पूरा हुआ। इसके समापन पर विदिशा में नदी, वृक्ष और पर्यावरण से जुड़े तथा यात्रा में शामिल लोगों का जमावड़ा हुआ, जिसमें उन्होंने अपने संस्मरण सुनाए। इस मौके पर गांधी सुमिरन मंच से जुड़े डॉ सुरेश गर्ग ने डॉ पालीवाल, पद्मश्री जल योद्धा उमाशंकर पांडेय, भू माफिया के खिलाफ सबसे लंबा आंदोलन करने वाले मुजफ्फरनगर के विजय सिंह, उत्तराखंड के बच्ची सिंह बिष्ट, वृक्ष मित्र सुनील दुबे, प्रो.अरविंद द्विवेदी, सुमित दांगी आदि अनेक लोगों ने अपने संस्मरण सुनाए।

उद्गम से एक किमी बाद ही मैली हो गई बेतवा

डॉ पालीवाल ने बताया कि हमने बेतवा के उद्गम झिरी से बेतवा यात्रा शुरू की, वहां धरती से निकलती बेतवा की धार से हमने आचमन किया। लेकिन दुर्भाग्य कि इससे आगे मात्र एक किमी बाद ही बेतवा का पानी पीने योग्य नहीं बचा। यह स्थिति फिर आगे गंजबासौदा तक यूं ही दिखी। हालांकि बासौदा के घाट अपेक्षाकृत साफ दिखे।

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यात्रा के निष्कष...

1. कस्बों और शहरों के सीवेज को सीधे बेतवा में मिलाए जाने और फैक्ट्रियों का कचरा सीधे नदी में डालने से भारी प्रदूषण।2. नदी घाट बनाकर नदियों के ईकोसिस्टम को खराब करना। लोगों की सुविधा के लिए घाट हो सकते हैं लेकिन वे नदियों के लिए दुखदाई हैं। वहां लोग ज्यादा गंदगी करते हैं।

3. नदी किनारे के खेत सबसे ज्यादा नुकसानदायक। इनमें डाला जाने वाला रासायनिक खाद और कीटनाशक बेतवा को जहरीला बना रहा है, हालांकि ये जहर दिखता नहीं, लेकिन असर बहुत करता है।

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समाधान ऐसे होगा...

1. नदी किनारे के खेतों को जैविक खेती से जोडऩा होगा ताकि रासायनिक खाद और कीटनाशकों का जहर बेतवा में न मिले।

2. शहरों के लोगों को कचरा कम करना होगा। शहर के लोगों को जीरो कचरा संस्कृति अपनाना होगी।

जिसे माई कहते हैं उसी के आंचल में कचरा उड़ेलते हैं...

डॉ पालीवाल ने कहा कि हमने अपनी यात्रा के दौरान लगभग हर जगह यही देखा कि जिस नदी को हम बेतवा माई कहते हैं उसी के आंचल में कचरा उड़ेल रहे हैँ। हद है, पत्थर की माई को पूजते हैं और प्रत्यक्ष माई को मैला करते हैं, ये तो हमारी संस्कृति और संस्कार नहीं थे। उन्होंने कहा कि यात्रा के दौरान सैकड़ों लोगों से बात हुई तो यही भावना सामने आई कि नदी को गंदा तो सबने किया है, लेकिन ठीक कौन करे? लोग यही चाहते हैं कि खराब तो हमने किया है, लेकिन साफ सरकार करे। लेकिन यह सही नहीं है। सब सहयोगी बनें और एक बार नदियों के साफ हो जाने पर उन्हें गंदा न होने दें।

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मंडीदीप में सबसे ज्यादा प्रदूषित बेतवा

बेतवा यात्री प्रो. अरविंद द्विवेदी ने बताया कि झिरी से कुरवाई तक की बेतवा यात्रा में हमने 52 गांव देखे, उनके ग्रामीणों से मिले और स्कूलों के हजारों विद्यार्थियों से बेतवा के बारे में संवाद किया। पूरी यात्रा में सबसे ज्यादा गंदगी हमें मंडीदीप के आसपास मिली, जहां बेरोकटोक कारखानों का अवशिष्ट नदी में प्रवाहित हो रहा है।

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अब चोर घाट नाला बेतवा में नहीं मिलेगा

कलेक्टर उमाशंकर भार्गव ने बताया कि अमृत-2 योजना के तहत चोर घाट नाले पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट स्वीकृत हो गया है। इसे बनने में करीब डेढ़ वर्ष लगेगा, इसके बाद चोरघाट की गंदगी को उपचारित कर बेतवा में मिलाया जाएगा, सीधे नहीं। एसपी डॉ मोनिका शुक्ला ने कहा कि हमें आने वाली पीढ़ी के लिए अच्छी धरती तैयार करनी है। प्रदूषण दूर करने में जहां पुलिस की जरूरत लगे बताएं हम पूरी मदद करेंगे।

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बेतवा बाबा ने जगाई थी अलख

कार्यक्रम का संचालन करते हुए गांधी सुमिरन मंच के डॉ सुरेश गर्ग ने कहा कि करीब 30 साल पहले एक वृद्ध शिक्षक मदनलाल शर्मा ने बेतवा की अलख जगाई थी, खुद के खर्च से अपने झोले में पंपलेट लेकर शहर भर में घूमते थे। फिर तत्कालीन कलेक्टर सुधा चौधरी ने 2003 में यहां श्रमदान शुरू कर बेतवा से लोगों को जोड़ा और अब ये बेतवा यात्रा चल पड़ी है।