
विदिशा में भी हैं बलदाऊ की प्रतिमाएं, कृष्ण संग विराजे हैं मंदिर में
विदिशा. हलछठ यानी भगवान बलराम का जन्मोत्सव। किरार धाकड़ समाज इसे धरणीधर अर्थात बलराम जयंती के रूप में मनाता है। बलराम को दाऊजी या बलदाऊ के नाम से भी पुकारा जाता है, जिसका अर्थ होता है बड़े भाई। भगवान कृष्ण अपने बड़े भाई बलराम को दाऊ के नाम से ही बुलाते थे। जिले में राधा-कृष्ण के मंदिर आम तौर पर हर जगह मिल जाएंगे। लेकिन बलराम की प्रतिमाएं दुर्लभ ही हैं। विदिशा नगरी धर्म और संस्कृति की नगरी है, लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि इस नगर में बलराम जी की प्रतिमा भी विराजमान है। बलराम जयंती के अवसर पर हम आपको बता रहे हैं कि विदिशा नगर के किन मंदिरों में बलराम जी की प्रतिमाएं भी मौजूद हैं। यहां बलराम अपने छोटे भाई कृष्ण के साथ विराजमान हैं।
राधा रानी नहीं, यहां बलदाऊ संग विराजे हैं कृष्ण
नंदवाना स्थित श्रीजी के मंदिर में दाऊ जी की प्रतिमा और श्रीनाथ जी यानी भगवान कृष्ण की चित्ररूप में सेवा होती है। इनकी सेवा पुष्टिमार्गीय विधान से होती है। यहां बलराम जी की छोटी लेकिन आकर्षक प्रतिमा है, जिसमें बलदाऊजी का बांया हाथ कमर पर है और दांया हाथ ऊपर की ओर उठा हुआ है। मूल प्रतिमा में बलदाऊजी के सिर पर शेषनाग की छाया है, जबकि नीचे उनके प्रतीक के रूप में हल और मूसल मौजूद है। मंदिर में बालरूप सेवा होती है, इसलिए दोनों भाई के श्रीविग्रह मौजूद हैं, राधारानी यहां दिखाई नहीं देतीं। मंदिर के मुखिया पुरुषोत्तम शर्मा बताते हैं कि यहां भगवान की बालरूप सेवा होती है, जिसमें सुबह मंगला आरती, फिर श्रंगार, फिर राजभोग के बाद पट बंद हो जाते हैं। शाम को उत्थापन होता है और फिर शयन आरती होती है। मंदिर से जुड़े मनमोहन शर्मा बताते हैं कि बलदाऊजी की प्रतिमा और श्रीनाथ जी की निधियां मुगलों के आतंक के कारण ब्रज धाम से यहां-वहां छिपते छिपाते उनके सेवक सुरक्षित स्थानों पर ले गए थे। संभवत: ये निधियां भी ऐसे ही माध्यम से अमृतसर पहुंच गईं थीं, जहां से मंदिर के मुखिया के परिवार के लोग उन्हें विदिशा ले आए थे और ये निधियां काफी समय तक विदिशा के किले अंदर रहीं। इसके बाद करीब डेढ़ सौ वर्ष पहले नंदवाना में ये विराजित की गईं।
बड़ी हवेली में भी रेवती संग विराजे हैं बलराम
बड़ी हवेली में भगवान सिंह राठौड़ के परिवार द्वारा पीढिय़ों से हवेली में ही स्थित प्राचीन मंदिर में पूजा की जाती है। यहां केवल राठौड़ परिवार ही पूजा करता है। इस मंदिर में काले पत्थर बलराम और कृष्ण की प्रतिमाएं विराजित हैं, जबकि सफेद संगमरमर की रेवती और राधाजी की प्रतिमाओं के साथ ही गरुड़ जी की बड़ी और अद्भुद प्रतिमा मौजूद है। पं. संजय राजपुरोहित बताते हैं कि यह मंदिर हवेली की स्थापना के समय का ही है, यह कहना मुश्किल है कि किस राजा के समय इसकी स्थापना हुई थी। लेकिन राजपरिवार की कई पीढिय़ों ने यहां पूजा की है। मंदिर में बलराम अपनी पत्नी रेवती और कृष्ण अपनी आल्हादनी शक्ति राधाजी के साथ विराजमान हैं। हवेली की सुधा सिंह राठौड़ बताती हैं कि पीढ़ी दर पीढ़ी यहां हमारे परिवार द्वारा पूजा की जाती है। प्रतिमाओं का स्थापना काल बताना मुश्किल है।
हरि हितराय जी की हवेली में आज भांग का भोग
अंदर किला में हरि हितराय जी की हवेली जो अब द्वारकाधीश मंदिर के नाम से जानी जाती है। यहां द्वारकाधीश सहित राधावल्लभ जी की प्रतिमा विराजमान है। इसके साथ ही इस मंदिर में बलराम जी, रेवती जी, कृष्ण जी और राधा जी की निधियां विराजमान हैं। ये निधियां भी सदियों पुरानी हैं, लेकिन ये चलित प्रतिमाएं हैं। मंदिर की सेविकाएं बताती हैं कि यहां हलछठ के दिन दाऊजी और ठाकुर जी को भांग मिश्रित भोग लगाने की परंपरा है। यहां ब्रज की परंपराओं के अनुरूप ठाकुर जी की सेवा होती है। चंदन महोत्सव, झूला महोत्सव, घटाओं के दर्शन और खिचड़ी महोत्सव के साथ ही यहां का फागोत्सव खूब आनंदित करता है।
Published on:
27 Aug 2021 10:39 pm
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