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विदिशा

पहाड़ से निकली 1700 साल पुरानी महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा, विश्व में अनोखी है ये प्रतिमा

कहते हैँ जहां शिव हैं वहां शक्ति भी हैं। उदयगिरी की ऐतिहासिक गुफाओं में इसका प्रमाण भी है। जहां उदयगिरी पहाड़ी की कई गुफाओं में शिवलिंग के दर्शन होते

विदिशाSep 23, 2017 / 04:43 pm

govind saxena

navratri 2017
विदिशा. कहते हैँ जहां शिव हैं वहां शक्ति भी हैं। उदयगिरी की ऐतिहासिक गुफाओं में इसका प्रमाण भी है। जहां उदयगिरी पहाड़ी की कई गुफाओं में शिवलिंग के दर्शन होते हैं तो दो गुफाओं में शक्तिरूप मे महिषासुर मर्दिनी के भी दर्शन होते हैं।
चौथी शताब्दी की ये दुर्गा प्रतिमाएं अपने रूप और निर्माण शैली के आधार पर अनूठी हैँ। यूं भी दुर्गा की प्राचीन प्रतिमाएं पहाड़ और गुफाओं में ही मिलती हैं, इसलिए यहां उदयगिरी पहाड़ को काटकर बनाई गई गुफाओं में महिषासुर मर्दिनी का 1700 साल से वास है। गुफा नंबर 4 में जहां अद्वितीय मुखलिंगी शिव के दर्शन होते हैं, वहीं गुफा नंबर 6 में वीरता से परिपूर्ण मुद्रा में महिषासुर मर्दिनी के दर्शन होते हैं।
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अमूमन दुर्गा की प्रतिमा अष्ट और दसभुजी होती हैं, लेकिन यहां की प्रतिमा द्वादशभुजी अर्थात बारह भुजी होने से भी अनूठी है। प्रतिमा में देवी का केश विन्यास भव्य दिखाई देता है, वे अपने एक पैर से भैंसे के रूप में महिषासुर का सिर दबाए हैं। उनका एक हाथ महिषासुर के पैरों को मजबूती से पकड़े दिखाई दे रहा है तो दूसरे हाथ में वे त्रिशूल से महिषासुर का वध करते दिखाई दे रही हैं।
प्रतिमा इतनी स्पष्ट है कि महिषासुर के शरीर में त्रिशूल का घाव भी स्पष्ट देखा जा सकता है। देवी के अन्य दस हाथों में विभिन्न प्रकार के आयुध जैसे तलवार, ढाल, तीर-कमान आदि मौजूद हैं। इसी प्रकार की प्रतिमा गुफा नंगर 17 के गेट के पास भी बनी है। दोनों ही प्रतिमाओं के केश विन्यास में यूनानी शैली के दर्शन होते हैं।
बेतवा से भी चौथी शताब्दी की करीब एक फीट की अत्यंत खूबसूरत महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा मिली थी, जो भोपाल संग्रहालय में है। इतिहास गवाह है कि विभिन्न साम्राज्यों और काल के साथ ही देवी पूजा की परम्पराओं में भी काफी बदलाव आया है। पहले जहां देवी दुर्गा के इसी महिषासुर मर्दिनी रूप की प्रतिमाओं का चलन और पूजा का दौर था।
चौथी-पांचवी शताब्दी में देवी के इसी रूप की आराधना ज्यादा होती थी। लेकिन 10-12 वीं शताब्दी में सप्तमातृकाओं की पूजा का चलन बढ़ा। यही कारण है कि परमारकाल में बने अधिकांश मंदिरों में सप्तमातृकाओं की प्रतिमाएं गणेश और वीरभद्र के साथ दिखाई देती हैं। लेकिन वर्तमान दौर में सिंहवाहिनी रूप में दुर्गा की पूजा का चलन ज्यादा है। जबकि अनुष्ठानों में षोठस मातृका का पूजा आज भी विधि विधान से किया जाता है।
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उदयगिरी की इस अनूठी दुर्गा प्रतिमा की जानकारी बहुत कम लोगों को है। इतनी प्राचीन प्रतिमा का हमारे जिले में होना हमारे लिए गौरव की बात है।

-भानु प्रकाश दुबे


पहले महिषासुर मर्दिनी, फिर सप्तमातृका के रूप में देवी की पूजा का चलन रहा है। लेकिन अब अधिकांशत: सिंहवाहिनी रूप में देवी की पूजा होती है। उदयगिरी हमारे क्षेत्र की बहुमूल्य धरोहर है। उसमें द्वादशभुजी महिषासुर मर्दिनी की अद्वितीय प्रतिमा बहुत महत्वपूर्ण है।
-पं. विष्णुप्रसाद शास्त्री

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