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अद्भुद मंदिर के अवशेष, जहां होते हैं विष्णु के दशावतार के दर्शन

ग्यारसपुर का प्रसिद्ध हिंडोला तोरणद्वार

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अद्भुद मंदिर के अवशेष, जहां होते हैं विष्णु के दशावतार के दर्शन

अद्भुद मंदिर के अवशेष, जहां होते हैं विष्णु के दशावतार के दर्शन

विदिशा. विदिशा से 38 किमी दूर ग्यारसपुर राजा भोज के वंशज मालवदेव और फिर गौड़ राजाओं के समय की कई धरोहरों को अपने में समेटे है। यहां एक विशाल परिसर में अत्यंत कलात्मक तोरण द्वार है, जिसकी खूबसूरत मेहराब और उसकी आकृति के कारण हिंडोला तोरणद्वार कहा जाता है। पीछे एक मंडप भी है जो खंबों पर आधारित है। ऐसा माना जाता है कि यहीं एक विशाल विष्णु मंदिर था, जो अब पूरी तरह नष्ट हो चुका है, हिंडोला तोरणद्वार उसकी का प्रवेश द्वार था। लेकिन खासियत अबभी यही है कि दो खंबों पर टिका यह तोरणद्वार अब भी पूरी मजबूती और शान से खड़ा है बिना किसी दीवार या बिना किसी सहारे के। इसी तोरणद्वार के दोनों स्तंभों पर भगवान विष्णु के दशावतारों को कुशलता से उत्कीर्ण किया गया है।


करीब 10-11 वीं शताब्दी की यह बेजोड़ कलाकृति ग्यारसपुर में अब भी हमारी धरोहर के रूप में मौजूद है। बहुत कम ही ऐसे स्थान होंगे जहां विष्णु के दशावतार के एक साथ दर्शन होते हैं। तोरणद्वार के चंद कदम पीछे आठ खंबों पर टिका एक मंडप भी मौजूद है। तोरणद्वार के दोनों स्तंभों में से प्रत्येक में विष्णु़ के 5-5 अवतारों को उत्कीर्ण किया गया है। ये अवतार चारों दिशाओं से दिखाई देते हैं। एक स्तंभ की एक दिशा में मत्स्य और कच्छप अवतार को संयुक्त रूप से दर्शाया गया है, तो दूसरी दिशा में वराह अवतार, तीसरी नरसिंह और चौथे में वामन अवतार के दर्शन होते हैं। इसी तोरणद्वार के दूसरे स्तंभ पर राम अवतार, फिर कृष्ण अवतार, परशुराम और चौथी ओर बुद्ध तथा कल्कि अवतार के दृश्य उत्कीर्ण किए गए हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन इस पुरातात्विक स्थल को देखकर परमारकाल के आसपास मंदिरों के महत्व और स्थापत्यकला की चरमता का पता चलता है। यहां का एक-एक पत्थर कुछ बोलता और अपनी दास्तां सुनाता सा प्रतीत होता है।