
प्याज व लहसुन का सेवन इस वजह से नहीं करते हैं ब्राह्मण, राहु-केतु से है इसका संबंध
नई दिल्ली। ब्राह्मणों या पंडितों या फिर साधु सन्तों को आपने प्याज और लहसुन से परहेज करते देखा होगा। इसके साथ ही घर पर जब पूजा पाठ का आयोजन किया जाता है तो उस दिन भी बिना प्याज-लहसुन के पकवानों को बनाया जाता है।अब जैसा कि हम जानते हैं कि हर नियम के पीछे कुछ कारण जरूर होते हैं तो इस परंपरा के पीछे भी कोई न कोई वजह तो जरूर होगी। आज हम आपको इस बारे में पूरी जानकारी देने जा रहे हैं।
सबसे पहले हम बात करते हैं आध्यात्मिक कारण की। पुराणों में ऐसा कहा गया है कि समुंद्र मंथन के दौरान जब समुंद्र से अमृत के कलश को निकाला गया तो देवताओं को अमरत्व प्रदान करने के उद्देश्य से भगवान विष्णु उन सभी में अमृत बांट रहे थे। उस समय राहु और केतु नाम के दो राक्षस अमर होने के लिए देवताओं के बीच में आकर बैठ गए। भगवान विष्णु ने गलती से राहु और केतु को भी अमृत पिला दिया।
हालांकि जैसे ही भगवान विष्णु को इसकी भनक लगी तो उन्होंने बिना देर किए सुदर्शन चक्र से इन राक्षसों के सिर को धड़ से अलग कर दिया, लेकिन तब तक अमृत की कुछ बूंदें इनके मुंह में चली गई थी। इस वजह से उन दोनों का सिर तो अमर हो गया, लेकिन धड़ नष्ट हो गया।
विष्णु जी ने जब इन दोनों पर प्रहार किया तो खून की कुछ बूंदे नीचे गिर गई थी। ऐसा कहा जाता है कि खून की उन्हीं बूंदों से प्याज और लहसुन की उत्पत्ति हुई। इसी वजह से हम जब भी इसका सेवन करते हैं तो मुंह से अजीब तरह की गंध आती है। चूंकि राक्षसों के खून से प्याज और लहसून की उत्पत्ति हुई तो इसलिए ब्राह्मण इसे नहीं खाते हैं।
अब बात करते हैं वैज्ञानिक कारण की। आयुर्वेद में खाद्य पदार्थों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है – सात्विक, राजसिक और तामसिक।
सात्विक: शांति, संयम, पवित्रता और मन की शांति जैसे गुण
राजसिक: जुनून और खुशी जैसे गुण
तामसिक: क्रोध, जुनून, अहंकार और विनाश जैसे गुण
प्याज और लहसुन तामसिक की श्रेणी में आते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन्हें ज्यादा नहीं खाना चाहिए क्योंकि इससे व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव आ जाता है। इससे इंसान कुछ हद तक हिंसक प्रकृति के हो जाते हैं। संयम का अभाव हो जाता है, क्रोध की मात्रा बढ़ जाती है और शरीर गर्म हो जाता है।
Published on:
19 Jan 2019 11:16 am
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