8 दिसंबर 2025,

सोमवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

चादर नहीं बल्कि कब्र पर जूते-चप्पल बरसाते हैं लोग, ‘चुगलखोर का मकबरा’ में इस खौफ के चलते करना पड़ता है ऐसा

आज हम आपको जिस मकबरे के बारे में बताने जा रहे हैं वहां लोग फूल की जगह चप्पल मारते हैं।

2 min read
Google source verification

image

Arijita Sen

Dec 29, 2018

‘चुगलखोर का मकबरा’

चादर नहीं बल्कि कब्र पर जूते-चप्पल बरसाते हैं लोग, ‘चुगलखोर का मकबरा’ में इस खौफ के चलते करना पड़ता है ऐसा

नई दिल्ली। तमाम मकबरों और मजारों के बारे में तो आपने सुना ही होगा जहां पर लोग दुआ मांगने जाते हैं। मन्नत जब पूरी हो जाती है तो लोग चादर चढ़ाते हैं और फूल भी चढ़ाते हैं, लेकिन आज हम आपको जिस मकबरे के बारे में बताने जा रहे हैं वहां लोग फूल की जगह चप्पल मारते हैं।

इस मकबरे का नाम भी बहुत अजीब है। यूपी के इटावा के पास बने इस मकबरे का नाम ‘चुगलखोर का मकबरा’ है। दुआ कबूल हो जाने पर यहां लोग जूते और चप्पल मारने आते हैं। ‘चुगलखोर का मकबरा’ में ज्यादातर वही लोग आते हैं जो इटावा-फर्रुखाबाद-बरेली मार्ग से जा रहे होते हैं। मार्ग में जाते समय अपनी यात्रा को सुरक्षित करने के लिए श्रद्धालु मकबरे पर जूते और चप्पल बरसाते हैं।

जूते बरसाए बिना लोग अपनी यात्रा को आगे नहीं बढ़ाते हैं क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस मार्ग पर भूतों का साया है। ऐसे में खुद को दुर्घटना से बचाने के लिए इस मकबरे पर आकर चप्पलों की बौछार करना जरूरी है। स्थानीय निवासियों का भी ऐसा मानना है कि, अपने और परिवार की सुखद यात्रा के लिए यहां लोग भोलू सईद की कब्र पर जूते मारते हैं।

करीब पांच सौ साल पुरानी इस मकबरे के बारे में एक बहुत ही लोकप्रिय कहानी यहां प्रसिद्ध है। जिसके अनुसार, एक बार इटावा के बादशाह ने अटेरी के राजा के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था क्योंकि उन्हें ऐसा लगता था कि अटेरी के राजा उनके लिए अपने मन में गलत भावना रखते हैं।

बाद में बादशाह को पता चला कि यह उनकी गलतफहमी थी और इस युद्ध के लिए उनके दरबारी भोलू सैय्यद जिम्मेदार थे। भोलू की चुगलखोरी की आदत की वजह से ये सब कुछ हुआ। गुस्से से तिलमिलाए बादशाह ने लोगों को हुक्‍म दिया कि वे भोलू को जूते-चप्‍पलों से तब तक मारते रहे जब तक कि उसकी मौत ना हो जाए। भोलू सैय्यद की मौत के बाद भी यह परंपरा खत्म नहीं हुई और आज भी लोग इसे निभाते आ रहे हैं।

दुर्घटना से सुरक्षित रहने के लिए कब्र पर कम से कम पांच जूते मारना आवश्यक है।