
धर्म के नाम पर मासूम बच्चियों को नर्क में धकेल देने की प्रथा का आज भी किया जाता पालन, सच्चाई जान कांप जाएगी रूह
नई दिल्ली। प्राचीन समय में हमारे देश में कई सारी कुरीतियों और अंधविश्वासों का बोलबाला था जो वक्त के साथ-साथ खत्म हो गई। हालांकि आज के आधुनिक समय में भी कई सारी ऐसी प्रथाओं और रीतियों का पालन किया जाता है जो मानव समाज को शर्मशार कर देती है। ऐसी ही एक प्रथा है जिसे देवदासी प्रथा के नाम से जाना जाता है।
इस प्रथा के अन्तर्गत स्वयं को भगवान को समर्पित करना पड़ता है। छठी सदी में शुरू हुई देवदासी प्रथा आज भी हमारे समाज में विद्यमान है। देवदासी प्रथा में धर्म के नाम पर मासूम बच्चियों को जबरदस्ती भगवान की शरण में जाने के लिए बाध्य किया जाता है। उन्हें भगवान की पत्नी के रुप में देखा जाता है। एक बार देवदासी बनने के बाद ये बच्चियां किसी और से शादी नहीं कर सकती है और न ही एक सामान्य जीवन व्यतीत कर सकती है।
पहले के जमाने में स्थितियां थोड़ी अलग थी। उस दौरान देवदासी मंदिर के काम-काज,पूजा-पाठ में लीन रहती थीं। इसके साथ ही खाली समय में वे 64 कलाएं सीखने पर भी ध्यान देती थीं। हालांकि आज ऐसा नहीं है। वर्तमान समय में उन्हें उपभोग की वस्तु के तौर पर देखा जाता है।
उम्र बढ़ने के साथ-साथ इनकी पूछ भी कम होने लगती है और आगे चलकर अपना पेट पालने के लिए ये अपना शरीर बेचने को बाध्य हो जाती है।
सड़कों और हाइवे पर ये ड्राइवरों से संबंध स्थापित करके पैसा कमाती है। चिन्ता की बात तो यह है कि इससे इनके HIV से ग्रस्त होने का खतरा भी बना रहता है।
यह प्रथा समाज के लिए किसी कलंक से कम नहीं है। इसे रोकने के लिए आजादी के पहले और बाद भी कई कानून बनाए गए।साल 1982 में कर्नाटक सरकार ने और साल 1988 में आंध्र प्रदेश सरकार ने इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया, लेकिन चौंकाने वाली बात तो तब सामने आई जब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने साल 2013 में बताया कि, इतनी रोक होने के बावजूद आज भी देश में लगभग 4,50,000 देवदासियां हैं।
आज भी देश के कई राज्यों में लोग कानून की परवाह किए बगैर, महज अपने स्वार्थ के लिए, ईश्वर के नाम पर मासूम बच्चियों की जिंदगी के साथ खेलते हैं और अपनी चंद खुशियों के लिए जिंदगीभर के लिए उन्हें नर्क में धकेल देते हैं।
Published on:
02 Nov 2018 11:01 am
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