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अजब गजब

रहस्यों से भरी है भगवान शिव की तीसरी आंख, क्षण भर में खत्म हो सकता है ब्रह्मांड

कहीं भी भगवान शिव देख सकतें हैं तीसरी आंख से
वेद पुराणों में किया गया है ये जिक्र

नई दिल्लीNov 15, 2019 / 11:19 am

Prakash Chand Joshi

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नई दिल्ली: वैसे तो सभी भगवानों का अपना-अपना अलग महत्व है। लोगों में भगवानों के प्रति आस्था गजब की है, लेकिन भगवान शिव को लेकर लोगों की आस्था अलग है। भगवान शिव ( Lord Shiva ) जितनी जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं, तो उतना ही ज्यादा उनका क्रोध भी सभी देवों से प्रचंड है। भगवान शिव के पास तीसरी आंख भी है, जिसका एक ऐसा रहस्य जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे।

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धरती पर होगा विनाश!

पुराणों में भोले नाथ के माथे पर तीसरी आंख होने का उल्लेख किया गया है। इस आंख से वो सब कुछ देख सकते हैं, जिन्हें आम आंखों से देखना असंभव है। उनके तीसरी आंख खोलते ही उसमें से काफी ज्यादा ऊर्जा निकलती है। इस आंख द्वार वो ब्रह्मांड में झांक रहे होते हैं। ऐसी स्थिति में वे कॉस्मिक फ्रिक्वेंसी या ब्रह्मांडीय आवृत्ति से जुड़े होते हैं। तब वे कहीं भी देख सकते हैं और किसी से भी प्रत्यक्ष संपर्क स्थापित कर सकते हैं। वहीं भगवान शिव की तीसरी आंख को प्रलय कहा गया है। मान्यता है कि एक दिन शिव की तीसरी आंख से निकलने वाली क्रोध अग्नि इस धरती के विनाश का कारण बनेगी। भगवान शिव के तीनों नेत्र अलग-अलग गुण रखते हैं, जिसमें दांए नेत्र सत्वगुण और बांए नेत्र रजोगुण और तीसरे नेत्र में तमोगुण का वास है।

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ये हैं आंखों का महत्व

वहीं भगवान शिव की एक आंख में चंद्रमा, दूसरी में सूर्य और तीसरी आंख को विवेक माना गया है। माना जाता है कि शिव का तीसरा चक्षु आज्ञाचक्र पर स्थित है। आज्ञाचक्र ही विवेकबुद्धि का स्रोत है। तृतीय नेत्र खुल जाने पर सामान्य बीज रूपी मनुष्य की सम्भावनाएं वट वृक्ष का आकार ले लेती हैं। आप इस आंख से ब्रह्मांड में अलग-अलग आयामों में देख और सफर कर सकते हैं। वेद शास्त्रों के अनुसार इस धरा पर रहने वाले सभी जीवों की तीन आंखें होती हैं। जहाँ दो आंखों द्वारा सभी जीव भौतिक वस्तुओं को देखने का काम लेते हैं वहीं तीसरी आंख को विवेक माना गया है। यह दोनों आंखों के ऊपर और मस्तक में मध्य होती है, किन्तु तीसरी आंख कभी दिखाई नही देती है। पुराणों के अनुसार भगवान के तीनो नेत्रों को त्रिकाल का प्रतीक माना गया है। जिसमें भूत, वर्तमान और भविष्य का वास होता है। स्वर्गलोक, मृत्युलोक और पाताल लोक भी इन्ही तीनों नेत्रों के प्रतीक हैं।

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