
नई दिल्ली। वैसे तो भारत को अंग्रेजों की हुकूमत से बाहर आए 72 वर्ष हो चुके है लेकिन आजाद भारत देश में आज भी गुलामी की एक याद मौजूद है भारत के कुछ हिस्सों पर अंग्रेजों का कब्जा आज भी कायम है। जो समय के पहिये की तरह इस बात का एहसास कराती रहती है।
आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि हमारे आजाद देश की इस धरती में ब्रिटेन का एक रेलवे ट्रैक है। जिसका इस्तेमाल भारत की ओर से किेये जाने पर हर साल ब्रिटेन सरकार को इसका किराया देना पड़ता है। इंडियन रेलवे की एक प्राइवेट कंपनी हर साल इस ट्रैक का भुगतान एक करोड़ 20 लाख के करीब भरती है।
ब्रिटेन का यह रेल ट्रैक शकुंतला एक्सप्रेस नाम की एक पैसेंजर ट्रेन है। जो अमरावती से मुर्तजापुर 189 कि.मी. का सफर 6-7 घंटे में पूरा करती है। यह ट्रेन अचलपुर, यवतमाल जैसे 17 छोटे-बड़े स्टेशनों का पार करती हुए आगे बढ़ती जाती है। करीब 100 वर्ष पुरानी इस ट्रेन में 5 डिब्बे है 70 साल तक इस ट्रेन को स्टीम का इंजन खींचता रहा। पर आज के हिसाब से चलाने के लिए इसके इंजन को 15 अप्रैल 1994 को डीजल इंजन में तब्दील कर दिया गया। इस ट्रेन का ढांचा ब्रिटेन देश के मैनचेस्टर सिटी के कारखाने में 1921 में बनाया गया था। ब्रिटिशकालीन की यह विरासत जितनी पुरानी है उतने ही पुराने यहां के लगे सिग्नल भी है। 7 कोच वाली इस पैसेंजर ट्रेन में रोज 1000 से भी ज्यादा लोग सफर करते है।
ब्रिटिश कंपनी करती है संरक्षण...
इस ट्रैक के देख-रेख और संरक्षण का काम आज भी ब्रिटेन की कंपनी करती है। और भारत सरकार हर साल उन्हें पैसा भी देती है लेकिन इसके बावजूद यह ट्रैक की हालत बेहद खस्ता है। पिछले 60 सालों से इसकी मरम्मत तक नहीं हुई है। इस ट्रैक पर चलने वाले जेडीएम सीरीज के डीजल लोको इंजन की अधिकतम स्पीड आज भी 20 किलोमीटर प्रति घंटे रखी जाती है। आज भी इस रेल रूट के एवज में भारत सरकार हर साल इस कंपनी को 1 करोड़ 20 लाख रुपये की रॉयल्टी ब्रिटिश कंपनी को देती है।
इस ट्रैक की जर्जर हालत को देखते हुए शकुंतला एक्सप्रेस को दो बार बंद भी किया गया लेकिन स्थानीय लोगों की असुविधा को देखते हुए और स्थानीय लोगों के बढ़ते दबाब के कारण इसे फिर से शुरू करना पड़ा। आज ये ट्रेन अमरावती के लोगों की जिंदगी बन चुकी है। जिसके बगैर वहां के गरीब लोगों को मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है। भारत सरकार ने लोगों की इस असुविधा के देखते हुए इस ट्रैक को खरीदने का कई बार प्रयास किया, लेकिन आने वाली तकनीकी कारणों से यह मामला अभी भी अटका हुआ है। जिस पर ध्यान देना बहुत जरूरी है क्योंकि यह सम्पति भारत की है किसी अन्य देश की नहीं।
Published on:
30 Sept 2019 05:13 pm
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