बता दें कि जापान की ट्रैफिक लाइटों में आपको नीला रंग देखने को मिल जाएगा। यहां ट्रैफिक लाइट में नीली बत्ती का प्रयोग किया जाता है जिसे ‘एओ’ कहा जाता है।ऐसा कहा जाता है कि जापान में पुराने समय के दौरान सिर्फ सफेद, काला, नीला, लाल और हरा रंग ही हुआ करता था ऐसे में इस रंग का इस्तेमाल वहां लोग चलने के लिए करते हैं।
दरअसल जापान में नीले और हरे दोनों ही रंगों के लिए एओ शब्द का ही प्रयोग किया जाता है बाद में हरे रंग के लिए नया शब्द ‘मिडोरी’ विकसित किया गया। इस सबके बावजूद आज भी जापान में हरे रंग की चीजों के लिए ‘एओ’ शब्द का ही प्रयोग होता है, जबकि दिखने में ये चीजें ‘मिडोरी’ यानी कि हरी होती हैं। जापान की ट्रैफिक लाइट्स इन्ही शब्दों के हेर-फेर का नतीजा हैं।
शब्दों के घालमेल की वजह से हुआ कन्फ्यूजन जापान में साल 1930 से ही सड़कों पर ट्रैफिक लाइट्स लगनी शुरू हो गयी थीं। जिस समय इन लाइट्स का चलन शुरू हुआ था उस समय चलने के लिए हरे रंग की लाइट का इस्तेमाल किया जाता था। लिखित दस्तावेज में ट्रैफिक लाइट के हरे रंग को ‘मिडोरी’ न लिखकर ‘एओ’ लिखा गया, जिसका अर्थ होता है नीला। यही वजह थी कि जापान ने वर्ष 1968 में वियना कन्वेन्शन ऑन रोड साइन एंड सिग्नल की संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए थे, जबकि भारत सहित लगभग 69 देश इस संधि पर हस्ताक्षर कर चुके हैं। बता दें कि वियना अंतरराष्ट्रीय संधि का उद्देश्य ट्रैफिक सिग्नल को मानकीकृत करना है।
सरकार ने किया बदलने से इनकार बाद में जापान सरकार ने अपने दस्तावेजों में करने से इंकार कर दिया और तब से लेकर आजतक यहां पर हरे रंग का ही नीला शेड (ब्लुइश ग्रीन) ट्रैफिक लाइट में प्रयोग करने का फैसला लिया गया। जापान में चलने के लिए ग्रीन लाइट का है जो असल में नीली है।