
दुनिया में आज भी कई ऐसी रहस्यमयी जगहें हैं, जिनके बारे में पता लगा पाना वैज्ञानिकों के लिए भी किसी पहेली से कम नहीं है। आज हम आपको ऐसी ही एक जहग के बारे में बताएंगे, जहां जाने का मतलब है मौत से सामना होना। हम बात कर रहे हैं नार्थ सेंटिनल द्वीप (North Sentinel Island) की जो बंगाल की खाड़ी में स्थित अंडमान द्वीप समूह का एक द्वीप है। यह द्वीप भले ही दक्षिण अंडमान जिले के अंतर्गत आता हो लेकिन यहां जाने की इजाजत किसी को नहीं है।
60 हजार साल से रह रहे इंसान
दरअसल, नार्थ सेंटिनल द्वीप पर न जाने की एक बड़ी वजह यहां पाए जाने वाली जनजाति भी है। हैरानी की बात है कि इस जनजाति का दुनिया से कोई संपर्क नहीं है। 23 वर्ग मील के इस छोटे से द्वीप पर पिछले 60 हजार साल से इंसान रह तो रहे हैं, लेकिन वह क्या खाते हैं, क्या बोलते हैं और सूनामी, तूफान जैसी आपदाओं के बावजूद खुद को कैसे जिंदा रखे हुए हैं। आज भी लोगों के लिए रहस्य बना हुआ है।
हजारों साल पहले की उपस्थिति
बता दें कि अंडमान निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर से नार्थ सेंटिनल द्वीप की दूरी महज 50 किमी है। इस द्वीप रहने वाली सेंटिनली जनजाति ने आज तक किसी भी बाहरी हमले का सामना नहीं किया। ये लोग छोटे कद होते हैं। रिसर्च के मुताबिक, इनकी बनावट और भाषाई समानताओं के आधार पर जारवा सुमदाय का बताया जाता है। कॉर्बन डेटिंग के जरिए भी बताया जाता है कि इस जनजाति की उपस्थिति 2,000 पहले की है।
बाहरी व्यक्ति के प्रवेश पर बैन
आपको जानकर हैरानी होगी कि नार्थ सेंटिनल द्वीप में बाहरी इंसान के जाने पर प्रतिबंध है। भारत सरकार ने यहां की जनजातियों को संरक्षित रखने के लिए अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (आदिवासी जनजातियों का संरक्षण) विनियमन, 1956 जारी किया है। यहां प्रशासन के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के प्रवेश पर बैन है। इतना ही नहीं यहां तस्वीरें लेना और फिल्म बनाना भी जुर्म है। ऐसा माना जाता है कि यहां के लोग बाहरी व्यक्तियों के खिलाफ शुत्रता पूर्ण व्यवहार करते हैं।
अमेरिकी टूरिस्ट की कर दी हत्या
इस आइलैंड की चर्चा भारत से लेकर अमेरिका तक में है। यहां के प्रतिबंधित जंगलों में पहुंचे एक अमेरिकी टूरिस्ट जॉन एलन चाऊ (27) की वहां के आदिवासियों ने तीर मारकर हत्या कर दी थी। यह टूरिस्ट इस आइलैंड के भीतर गया, यह जानते हुए भी कि इस द्वीप पर रहने वाले आदिवासियों से किसी भी तरह का संपर्क बनाना मना है। साल 2004 में आई सुनामी के वक्त सरकार ने कोस्ट गार्ड के हेलिकॉप्टर सेंटिनल द्वीप पर भेजे थे, ताकि सेंटिनली आदिवासियों की सहायता की जा सके, लेकिन आदिवासियों ने हेलिकॉप्टर पर ही तीर चलाने शुरू कर दिए थे।
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आदिवासी से बीमारी का खतरा
साल 2006 में दो मछुआरे अपनी नाव समेत भटककर आइलैंड के करीब पहुंचे, तो जान से हाथ धो बैठे। साल 1981 में जब एक जहाज आइलैंड की रीफ के पास फंसा था, तो आदिवासी तीर-कमान, भाले लेकर जहाज के क्रू पर हमला करने लगे। तब किसी तरह उन लोगों को हेलिकॉप्टर की मदद से बचाया गया। सेंटिनल द्वीप के आदिवासियों से संपर्क न करने की दूसरी बड़ी वजह है कि बाहरी दुनिया के संपर्क में आते ही इन लोगों को तमाम बीमारियां होने का खतरा है।
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Updated on:
07 Jul 2023 10:19 am
Published on:
07 Jul 2023 10:14 am
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