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रामायण काल से जुड़े इस मंदिर में दूर-दूर से आते हैं भक्त, मां के दर्शन मात्र से पूरी होती है मनोकामना

लोगों का ऐसा मानना है कि मां के दर्शन से उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।

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Arijita Sen

Dec 17, 2018

मां कुशहरी देवी मंदिर

रामायण काल से जुड़े इस मंदिर में दूर-दूर से आते हैं भक्त, मां के दर्शन मात्र से पूरी होती है मनोकामना

नई दिल्ली। रामायण के बारे में हम सभी ने सुना है और टेलीविजन पर इसे देखा भी है। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका संबंध रामायण काल से ही है।

हम यहां बात कर रहे हैं लखनऊ-उन्नाव से 20 किमी और नवाबगंज से तीन किमी की दूरी पर स्थित मां कुशहरी देवी मंदिर की। मां कुशहरी देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर में उन्नाव ? के साथ ही लखनऊ, कानपुर, रायबरेली व आसपास जनपदों से लोग अपनी मुरादें लेकर पहुंचते हैं क्योंकि लोगों का ऐसा मानना है कि मां के दर्शन से उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।

न केवल बड़ों को बल्कि बच्चों को भी यहां आना बेहद अच्छा लगता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां का नजारा बेहद ही खूबसूरत है। आसपास जंगल होने के कारण यहां यात्रा करना किसी एडवेंचर से कम नहीं है।

इसके साथ ही मंदिर के ठीक सामने एक विशाल सरोवर भी बना हुआ है जो गऊ घाट की झील में मिलता है। इस सरोवर में रहने वाले कछुओं व मछलियों को लोग आटे की गोलियां खिलाते है। इतना सब कुछ होने की वजह से पर्यटन विभाग ने इसे एक पर्यटन स्थल घोषित कर दिया है।

अब बात करते हैं मंदिर के इतिहास की। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीराम के पुत्र लव व कुश परियर जा रहे थें सीता माता को लेने के लिए।रास्ते में यहीं वे विश्राम के लिए रुके थें।

उसी दौरान सैनिक पास स्थित एक कुएं से पीने के लिए पानी निकालने लगे तो उन्हें एक दिव्यशक्ति ने आभास कराया कि कुएं में मां विराजमान हैं।

कुश ने पास जाकर देखा तो उन्हें कुएं में माता की एक मूर्ति मिली जिसे उन्होंने वही एक टीले पर स्थापित कर दिया। इसके बाद मूर्ति की पूजा भी की। कुश ने अपने कुछ सैनिकों को उसी स्थान पर एक गांव बसाने का आदेश दिया।

चूंकि कुश ने मंदिर की स्थापना की इसलिए मंदिर का नाम कुशहरी पड़ा। आज भी मंदिर के पीछे कसौटी पत्थर पर एक ही छत्रधारी घोड़े पर सवार लव कुश की मूर्ति भी बनी हुई है।

बता दें, देवी कुशहरी की मूर्ति करीब 7 फुट ऊपर स्थापित है जिसे कोई भी अपने हाथों से नहीं छू सकता है। वहां पर जो पंडित बैठते हैं वे ही देवी पर प्रसाद चढ़ाते हैं।

वैसे तो मंदिर में आने वाले भक्त मंदिर में सुहाग का पूरा साजो श्रृंगार का सामान चढ़ाते हैं, लेकिन इनमें सबसे खास यह है कि देवी को चढ़ाई जाने वाली चूड़ियां काले रंग की होती हैं।