
यहां कई सौ बकरों की इस वजह से दी जाती है बलि, महिलाएं नहीं देख सकती हैं अंदर का नजारा
नई दिल्ली। भारत जैसे प्राचीन देश में ऐसी जगहों की कोई कमी नहीं है जो अपनी मान्यताओं और चमत्कारों के लिए दुनिया भर में मशहूर है। आज एक ऐसी ही जगह के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं जहां लोग दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं। हम यहां प्राचीन निरई माता के मंदिर की बात कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर में विराजित देवी के दर्शन को हजारों की संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं। इस मंदिर के बारे में सबसे खास बात यह है कि यह दिन में केवल 5 घंटे के लिए ही खुलती है। जी हां, सुबह 4 से 9 बजे तक माता के मंदिर में भक्त दर्शन कर सकते हैं।
निरई माता के मंदिर में सिंदूर, सुहाग, श्रृंगार, कुमकुम, गुलाल, बंदन नहीं चढ़ा सकते हैं। यहां केवल नारियल और अगरबत्ती चढ़ाने की परंपरा है। मंदिर के बारे में एक और खास बात यह है कि यहां महिलाएं प्रवेश नहीं कर सकती हैं और पूजा पाठ करने की भी इजाजत महिलाओं को नहीं है।
इतना ही नहीं औरतें इस मंदिर के प्रसाद का सेवन भी नहीं कर सकती हैं क्योंकि ऐसी मान्यता है कि अगर कोई औरत मंदिर के प्रसाद का सेवन करती हैं तो कुछ न कुछ अनहोनी जरूर होती है। इस वजह से पुरूष ही यहां की समस्त रीतियों का पालन करते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि चैत्र नवरात्रि में यहां खुद ब खुद एक ज्योति प्रज्वलित होती है और नौ दिनों तक यह ज्योति बिना तेल के जलती रहती है। ज्योति कैसे अपने आप जलती है यह आज तक किसी पहेली से कम नहीं है। हर साल चैत्र नवरात्र के प्रथम रविवार को जात्रा कार्यक्रम में मंदिर के दरवाजे को आम लोगों के लिए खोल दिया जाता है।
मन्नतें पूरी होने पर यहां बकरे की बलि चढ़ाने की परंपरा है। कुछ लोग इस वजह से भी बलि चढ़ाते हैं कि इससे मां खुश होकर उनकी मनोकामना पूरी कर देंगी। इस वजह से इस दिन यहां हजारों की तादात में बकरों की बलि होती है।
ऐसी भी मान्यता है कि जो यहां कुटील मन से आता है या शराब का सेवन कर आता है उसे यहां मौजूद मधुमक्खियां काट लेती हैं।
Updated on:
09 Jan 2019 01:32 pm
Published on:
09 Jan 2019 01:26 pm
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