31 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

शाम ढलते ही यहां दिखाई देता है रूहानी ताकतों का रहस्यमय संसार, एेसा खौफनाक है इतिहास

यह गांव पिछले 170 सालों से वीरान पड़ा हैं। गांव के कुछ मकान हैं जहां रहस्यमय परछाई अक्सर नजरों के सामने आ जाती है।

2 min read
Google source verification

image

Vinay Saxena

Jul 24, 2018

ghost

शाम ढलते ही यहां दिखाई देता है रूहानी ताकतों का रहस्यमय संसार, एेसा खौफनाक है इतिहास

नई दिल्ली: दुनियाभर में कई ऐसी जगह हैं, जो अपने दामन में कई रहस्यमयी घटनाओं को समेटे हुए हैं। ऐसी ही एक घटना हैं राजस्थान के जैसलमेर जिले के कुलधरा गांव की है। यह गांव पिछले 170 सालों से वीरान पड़ा हैं। गांव के कुछ मकान हैं जहां रहस्यमय परछाई अक्सर नजरों के सामने आ जाती है। दिन की रोशनी में सबकुछ इतिहास की किसी कहानी जैसा लगता है, लेकिन शाम ढलते ही कुलधरा के दरवाजे बंद हो जाते हैं और दिखाई होता है रूहानी ताकतों का एक रहस्यमय संसार। लोग कहते हैं, कि रात के वक्त यहां जो भी आया वो हादसे की शिकार हो गया।

रियासत के दीवान की पड़ी बुरी नजर

दरअसल, कुलधरा की कहानी शुरू हुई थी आज से करीब 200 साल पहले, जब यह खंडहर में नहीं तब्दील हुआ था। यहां आसपास के 84 गांव पालीवाल ब्राह्मणों से आबाद हुआ करते थे, लेकिन फिर कुलधरा को किसी की बुरी नजर लग गई और वो शख्स था रियासत का दीवान सालम सिंह। गांव के एक पुजारी की बेटी पर सालेम सिंह की बुरी नजर पड़ी और वो खूबसूरत लड़की जैसे सालेम सिंह की जिद बन गई। सालेम सिंह ने उस लड़की से शादी करने के लिए गांव के लोगों को चंद दिनों की मोहलत दी।

पांच हजार परिवारों ने छोड़ दी रियासत

ये लड़ाई अब गांव की एक कुंवारी लड़की के सम्मान और गांव के आत्मसम्मान की थी। गांव की चौपाल पर पालीवाल ब्राह्मणों की बैठक हुई और 5000 से ज्यादा परिवारों ने अपने सम्मान के लिए रियासत छोड़ने का फैसला ले लिया। अगली शाम कुलधरा कुछ यूं वीरान हुआ कि आज परिंदे भी उस गांव की सरहदों में दाखिल नहीं होते।

रूहानी ताकतों के कब्जे में है गांव


कहते हैं गांव छोड़ते वक्त उन ब्राह्मणों ने इस जगह को श्राप दिया था। जब से आजतक ये वीरान गांव रूहानी ताकतों के कब्जे में है, जो अक्सर यहां आने वालों को अपनी मौजूदगी का अहसास भी कराती हैं। इस गांव में एक मंदिर है और एक बावड़ी है, जो आज भी श्राप से मुक्त है। बताया जाता है कि शाम ढलने के बाद अक्सर यहां कुछ आवाजें सुनाई देती हैं। लोग मानते हैं कि वो आवाज 18वीं सदी का वो दर्द है जिनसे पालीवाल ब्राह्मण गुजरे थे।