
यह है एशिया की सबसे बड़ी तोप, भारत के इस स्थान पर की जा रही है इसकी हिफाजत
नई दिल्ली। भारत में राजा-महाराजाओं का इतिहास काफी दिलचस्प रहा है। इन वीर योद्धाओं के बारे में पढ़कर हम तरह-तरह की कल्पनाएं करते हैं। जब भी हम किसी म्यूजियम या किले में जाते हैं और उनके द्वारा इस्तेमाल किए गए अस्त्र-शस्त्रों को देखते हैं तो मंत्रमुग्ध होना स्वाभाविक है। भारत में महाराणा प्रताप के तलवार बात हो या टीपू सुल्तान की तोप की, ये सारी चीजें इतिहास के पन्नों पर अपना एक अहम स्थान रखती है। आज हम राजाओं के जमाने की एक ऐसी ही चीज के बारे में बताएंगे जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे।
हम यहां बात कर रहे हैं एक तोप के बारे में जिसे एक बार जब चलाया गया तो दूर गांव में जहां इसका गोला गिरा वहां एक बड़ा सा तालाब बन गया। हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि आज भी यह तालाब गांव में मौजूद है और इसके पानी का उपयोग पीने के लिए करते हैं।
सन 1726 में जयपुर में बनाई गई इस तोप को अरावली की पहाड़ियों पर स्थित जयगढ़ किले में रखा गया है। बता दें, इस तोप का नाम 'जयवाना' है। इस तोप का वजन 50 टन है और तोप की नली से लेकर अंतिम छोर की लंबाई 31 फीट 3 इंच है। इससे आप तोप के बारे में एक अंदाजा लगा सकते हैं कि यह कितना विशालकाय है। इसे किले के डूंगर दरवाजे पर रखा गया है। इस तोप में 8 मीटर लंबे बैरल रखने की सुविधा है। यह तोप केवल भारत में ही बल्कि पूरी दुनिया में चर्चित है।
इतना वजनदार होने की वजह से इस तोप को किले से कभी बाहर नहीं ले जाया गया और न ही इसका इस्तेमाल कभी किसी युद्ध में किया गया। इसे एक बार सिर्फ टेस्ट के लिए चलाया गया था। 35 किलोमीटर तक वार करने के लिए इस तोप को 100 किलो गन पाउडर की जरूरत पड़ती थी।
कहा जाता है कि, टेस्ट फायर करने के दौरान किले से दक्षिण की ओर 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चाकसू नामक कस्बे में यह गोला गिरा। जहां यह गोला गिरा वहां एक विशालकाय गड्ढा बन गया, जो बाद में एक तालाब का रूप ले लिया। इस तालाब का इस्तेमाल आज भी स्थानीय लोग करते हैं। सबसे खास बात यह है कि इन सारी विशेषताओं के चलते इसे एशिया का सबसे बड़ा तोप कहा जाता है।
Published on:
19 Jul 2018 03:12 pm
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