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अगर घर में आ जाए यह पक्षी तो मालामाल हो जाएंगे आप, हालात हैं ऐसे कि ढूंढे से भी न​हीं मिलती

पौराणिक मान्यताओं की करें तो गौरेया का जिक्र एक शुभ पक्षी के रूप में किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि, जिस भी घर में गौरेया चहचहाती है वहां शांति बनी रहती है।

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इनके चहचहाने की आवाज सुनकर बीता है बचपन, अब कहां गई गौरेया, क्या हम हैं जिम्मेदार?

नई दिल्ली। गौरेया, एक ऐसा पक्षी है जिसे देखकर हम सभी बड़े हुए हैं। घर के आंगन में सुबह से शाम तक चहकती रहती थी यह छोटी सी पक्षी। काले और भूरे रंग की यह पक्षी जिसे देख हमारा बचपन बीता वह आज मुश्किल से ही दिखाई देती हैं। कहां गायब हो गई यह छोटी सी फुर्तीली चिड़िया? आखिर इसकी वजह क्या है? क्या इनके विलुप्त होने के पीछे हम इंसान जिम्मेदार हैं?

एक अनुमान के मुताबिक, आज महज 20 फीसदी गौरेया अस्तित्व में है। बात अगर हम पौराणिक मान्यताओं की करें तो गौरेया का जिक्र एक शुभ पक्षी के रूप में किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि, जिस भी घर या आंगन में गौरेया हमेशा चहचहाती रहती है वहां सुख और शांति बनी रहती है।

भारत के बिहार राज्य में गौरैया को संरक्षण देने के उद्देश्य से या उसे बचाने के लिए इसे राजकीय पक्षी घोषित किया गया है।बता दें, कला, संस्कृति एवं युवा विभाग की ओर से गौरैया नाम की पत्रिका भी प्रकाशित की जाती है।

सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि कुछ अन्य राज्यों ने भी गौरैया को राजकीय पक्षी घोषित किया है, लेकिन दुख की बात तो यह है कि इतना कुछ करने के बाद भी मानव जाति इस पक्षी को बचाने में असमर्थ रही है।

दिन-प्रतिदिन इनकी संख्या घटती ही जा रही है। जिस चिड़िया के चहचहाने की आवाज सुनकर हम बड़े हुए उसकी एक झलक भी शायद आज के बच्चों ने नहीं देखा होगा।

पहले पहल तो कमरे में अचानक घुस जाने वाली यह चिड़िया सिलिंग फैन से टकराकर अपनी जान देने लगी। हालांकि इनके गायब होने की मुख्य वजह कुछ और ही है। एक रिसर्च के मुताबिक, जैसे-जैसे शहरों में मोबाइल टॉवर्स की संख्या बढ़ती गई, वैसे-वैसे गौरैया कम होती गई। दरअसल, इन टॉवर्स से कुछ विशेष प्रकार की तरंगे निकलती हैं। इन तरंगों से गौरैया की प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है।

जानकर आपको हैरानी होगी कि, आंध्र विश्वविद्यालय द्वारा कुछ समय पहले एक अध्ययन किया गया था। जिसमें बताया गया कि पक्षी वैज्ञानिकों के मुताबिक, गौरैया की संख्या 60 से 80 फीसदी तक कम हो गई है। यह स्थिति वाकई में चिंताजनक है।

इस बदहाल हालत को देखते हुए साल 2010 में 20 मार्च को पहली बार गौरैया दिवस मनाया गया। इसके पीछे का एकमात्र उद्देश्य लोगों को इस छोटी सी, चंचल चिड़िया को बचाना है ताकि आने वाली पीढ़ी को भी इसके चहचहाने की मधूर आवाज सुनने का मौका मिल सके।