
मक्का में दिखता है शैतान, लोग इस वजह से पत्थर मारकर सिखाते हैं ऐसा सबक
नई दिल्ली।इस्लाम के पवित्र तीर्थ स्थल मक्का के बारे में हम सभी ने सुना है। सऊदी अरब का यह प्रान्त हज यात्रा के लिए मशहूर है। हर साल लगभग 40 लाख हजयात्री मक्का आते हैं। इसे मुस्लिम समुदाय में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस्लाम में इसे बेहद पाक माना गया है और साथ ही यह इस्लाम के पांच सिद्धांतों में से एक है। प्रत्येक मुसलमान को अपने जीवनकाल में एक बार हज की यात्रा अवश्य ही करनी चाहिए।
आपने ऐसा सुना होगा कि, जो भी इंसान हज की यात्रा पर जाता है वह वहां मौजूद शैतान की दीवार मे पत्थर जरुर मारता है। अब सवाल यह आता है कि, आखिर ऐसा क्यों किया जाता है? पत्थर मारने की असली वजह क्या है? आज हम आपको इसी बारे में बहुत ही रोचक जानकारी देने जा रहे हैं।
सबसे पहले बता दें, हज यात्रा के दौरान मक्का में शैतान को पत्थर मारना आवश्यक होता है क्योंकि इसके बिना हज पूरा नहीं होता है। ईद-उल- जुहा के पर्व पर शैतान को पत्थर मारने की यह रस्म वाकई में काफी चुनौतीपूर्ण है। बता दें, मक्का के पास स्थित रमीजमारात में पत्थर मारने की इस रस्म को तीन दिनों तक निभाया जाता है। यहां व्यक्ति तीन बड़े खंबों पर पत्थर मारते हैं। इन खंबों को ही शैतान माना जाता है। इस रस्म को निभाने के लिए काफी बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ इस जगह पर एकत्रित होती है। हालांकि इस रस्म को निभाए जाने के पीछे एक कहानी है।
ऐसा कहा जाता है कि, एक बार अल्लाह ने हजरत इब्राहिम से अपनी पसंदीदा किसी चीज की कुर्बानी मांगी। हजरत इब्राहिम ने इस कुर्बानी के लिए अपने इकलौते बेटे इस्माइल को चुना क्योंकि इस्माइल से वे बेहद प्यार करते थे।काफी बुढापे में हजरत इब्राहिम को इस संतान की प्राप्ति हुई थी इसीलिए यह मोह और भी ज्यादा था, लेकिन अल्लाह के हुक्म के आगे यह कुछ भी नहीं था।
हजरत अपने बेटे की कुर्बानी देने निकल पड़े तभी उन्हें रास्ते में एक शैतान मिला जिसने इब्राहिम को समझाया कि, अगर उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी दे दी तब बुढापे में उनका ख्याल कौन रखेगा। इस बात को सुनकर हजरत इब्राहिम सोच में पड़ गए और कुर्बानी देने का उनका निर्णय डगमगाने लगा। हालांकि कुछ देर बाद ही उन्होंने खुद को संभाल लिया और कुर्बानी को पूरा करने निकल पड़े।
बेटे की कुर्बानी देने से पहले इब्राहिम ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली ताकि उनकी भावनाएं कही इस काम में रुकावट ना बन जाए। कुर्बानी देने के बाद जब उन्होंने पट्टी हटाई तो देखा कि, इस्माइल उनके सामने जिन्दा खड़ा हुआ है।
बेटे की जगह बेदी पर कटा हुआ मेमना पड़ा था। तभी से इस मौके पर बकरे और मेमनों की बलि देकर ईद-उल-जुहा के पर्व का पालन किया जाता है और जहां तक रही पत्थर मारने की बात तो इसके पीछे की वजह यह है कि, इससे शैतान को लानत भेजी जाती है क्योंकि उसने हजरत को बरगलाने की कोशिश की थी।
Updated on:
24 Sept 2018 05:33 pm
Published on:
24 Sept 2018 05:29 pm
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