
'स्वाहा' शब्द के बिना नहीं सफल होता कोई भी हवन, यज्ञ के दौरान इस वजह से किया जाता है इसका उच्चारण
नई दिल्ली। हम में से लगभग सभी ने अपनी जिंदगी में हवन या यज्ञ होते देखा ही होगा। अगर असल में नहीं तो फिल्मों या टेलीविजन पर तो देखा ही होगा। आपने ध्यान दिया होगा कि हवन या यज्ञ के दौरान‘स्वाहा’ शब्द का उच्चारण बहुत बार किया जाता है।
ऐसा भी मानना है कि इस शब्द के बिना किसी भी यज्ञ या हवन को पूर्ण नहीं माना जाता है। यज्ञ में हवन सामग्री,अर्घ्य या भोग को जब भी हम भगवान को अर्पित करते हैं तो ‘स्वाहा’ कहकर ही करते हैं। अब सवाल यह आता है कि इस शब्द का अर्थ क्या है? और इसे कहने के पीछे का कारण क्या है?
स्वाहा का अर्थ है – सही रीति से पहुंचाना। जब भी हम किसी भौगिक पदार्थ को उसके प्रिय तक पहुंचाते हैं तो इस शब्द का उच्चारण करते हैं। किसी भी हवन को तब तक सफल या पूर्ण नहीं माना जा सकता जब तक कि देवता उसे ग्रहण न कर लें।‘स्वाहा’ का उच्चारण जब किसी वस्तु को अग्नि में डाला जाता है तो वह सीधे देवताओं तक पहुंच जाती है। यानि कि सीधे शब्दों में कहें तो देवता किसी भी सामग्री को तभी ग्रहण करते हैं जब यज्ञ के दौरान ‘स्वाहा’ कहा जाता है।
इसके पीछे एक पौराणिक कहानी भी है। इस कहानी के अनुसार, राजा दक्ष की बेटी स्वाहा की शादी अग्निदेव से हुई थी। अग्नि देव अपनी पत्नी को स्वाहा के माध्यम से ही ग्रहण करते हैं।शादी के बाद अग्नि देव की पत्नी को पावक, शुचि और पवमान नामक तीन पुत्रों की प्राप्ति हुई।
इसके साथ ही ऐसी भी मान्यता है कि स्वाहा प्रकृति की एक कला थी। देवताओं के अनुरोध करने पर उनकी शादी अग्निदेव से हुई थी। इस विवाह के सम्पन्न हो जाने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने स्वाहा को वरदान दिया था कि यज्ञ के दौरान स्वाहा के नाम का उच्चारण करने से ही देवता उस सामग्री को ग्रहण करेंगे अन्यथा नहीं करेंगे।
Published on:
24 Dec 2018 01:03 pm
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