18 दिसंबर 2025,

गुरुवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

श्रीकृष्ण द्वारा बोए गए इस पेड़ में आज भी उगते हैं मोती, बटोरने के लिए लगती है लोगों की लंबी कतारें

हैरान करने वाली बात यह है कि यह पेड़ आज भी मौजूद है।

2 min read
Google source verification

image

Arijita Sen

Jan 30, 2019

Demo pic

श्रीकृष्ण द्वारा बोए गए इस पेड़ में आज भी उगते हैं मोती, बटोरने के लिए लगती है लोगों की लंबी कतारें

नई दिल्ली। पौराणिक कहानियों का अपना अलग ही मजा है। इन कहानियों के माध्यम से ही इतिहास को बड़ी ही खूबसूरती के साथ वर्तमान से जोड़ा जाता है। आज एक ऐसी ही पौराणिक कथा का जिक्र हम आपके सामने करने जा रहे हैं।

जैसा कि हम सभी जानते ही हैं कि राधा के बिना भगवान श्रीकृष्ण को अधूरा माना जाता है। राधा और कृष्ण दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और आज भी राधा-कृष्ण का नाम साथ में लिया जाता है।

आज हम जिस कहानी का जिक्र आपके सामने करने जा रहे हैं वह कृष्ण और राधा से ही संबंधित है। इसके अन्तर्गत हम उस मोती के पेड़ के बारे में बताएंगे जिसे स्वयं कृष्ण ने बोया था। हैरान करने वाली बात यह है कि यह पेड़ आज भी मौजूद है।

लगभग हर जगह यही कहा और सुना जाता है कि भगवान कृष्ण, राधा से प्रेम तो बहुत करते थे लेकिन किसी कारणवश दोनों का विवाह संभव नहीं हो सका। हालांकि कहीं कहीं इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि दोनों की शादी हुई थी और इसे स्वयं ब्रह्मा जी ने करवाया था।

गर्ग मुनि द्वारा रचित गर्ग संहिता में इस बात का वर्णन किया गया है कि उन दोनों का विवाह हुआ था। बता दें गर्ग संहिता में श्रीकृष्णलीला के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है।

गर्ग संहिता के अनुसार, श्रीकृष्ण और राधा की सगाई के वक्त राधारानी के पिता वृषभानु ने कृष्ण जी को तोहफे के रूप में बेशकीमती मोती दिए थे। इन्हें देख वासुदेव को इस बात की चिंता सताने लगी कि इन कीमती मोतियों को वह कैसे संभालेंगे।

अपने पिता को चिन्तित देख श्रीकृष्ण उन मोतियों को कुंड के पास जमीन में गाड़ दिए। जब नंद बाबा को इस बारे में पता चला तो वह अपने पुत्र से नाराज हो गए और बिना देर किए कुछ लोगों को मोतियों को खोदकर लाने का आदेश दिया। हालांकि सभी ने जाकर देखा कि उस जगह पर एक पेड़ उग आया है जिसमें से सुंदर मोती लटक रहे हैं।

उस दिन से आज तक उस कुंड को मोती कुंड के नाम से ही जाना जाता है। 84 कोस की गोवर्धन यात्रा के दौरान लोग आज भी यहां लगे पीलू के पेड़ से मोती बटोरने आते हैं। इसके लिए लंबी-लंबी कतारों में खड़े होकर लोग घंटो इंतजार करते हैं। इन्हें पाने वाले मोतियों को काफी सहेज कर रखते हैं।