सर्प विशेषज्ञ बताते हैं कि यह सांप विलुप्त होने के कगार पर है यही कारण है कि यह बहुत कम पाया जाता है। पूर्वोत्तर के राज्यों में इस प्रजाति के सांप बहुतायत में पाए जाते हैं। बोलुब्रिडाई परिवार के सांप की यह प्रजाति उत्तराखंड तक के हिमालयी क्षेत्र में मिलते हैं। झारखंड, बिहार, ओड़िशा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और आंध्रप्रदेश में भी ये सांप पाए जाते हैं, लेकिन यहां बहुतायत में नहीं मिलते। सदाबहार के जंगल इनके प्रिय स्थानों में से एक हैं। पानी के आसपास रहना इन्हें पसंद है। पूर्वोत्तर भारत के इलाके इन्हें पसंद होते हैं।
इस प्रजाति के सांप गुफाओं में, मिट्टी के मेड़ों पर और लकड़ियों के बीच छिप कर रहते हैं। लालिमा लिए भूरे शरीर पर चार काली धारियां इसकी विशिष्ट पहचान है। इसका सिर तांबे के रंग का होता है। यह सांप कभी भी अपना रंग बदल लेता है। जन्म के समय इसकी लंबाई 25-30 सेंटीमीटर होती है। इसकी औसत लंबाई 150 सेंटीमीटर और अधिकतम लंबाई 230 सेंटीमीटर तक होती है। गिरगिट के अलावा मेंढकों, छिपकलियों और मकड़ियों की भी कुछ प्रजातियां रंग बदलती है और अब तो इस सांप का भी नाम इसमें जुड़ गया है। वैज्ञानिकों को लगता है कि गिरगिट के रंग बदलने की प्रक्रिया समझने के बाद अब इन जीवों को भी बेहतर ढंग से समझा जा सकेगा।