
नई दिल्ली। इराक की राजधानी बगदाद से 100 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में एक छोटा-सा कस्बा है- कर्बला। यहां पर तारीख-ए-इस्लाम की एक ऐसी भयंकर जंग छिड़ी थी ,जिसने इस्लाम का पूरा इतिहास ही बदल दिया था यह वही कर्बला है जिसके नाम के बने स्थान पर लोग एकत्रित होकर मुहर्रम मनाने आते हैं।
हिजरी संवत के पहले माह मुहर्रम की 10 तारीख को (10 मुहर्रम 61 हिजरी अर्थात 10 अक्टूबर 680) हजरत मुहम्मद साहब के छोटे नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 अनुयाइयों का बड़ी ही बेदर्दी से कत्ल कर दिया गया था। और इस जंग में हजरत हुसैन यजीद की फौज से लड़ते हुए शहीद हुए थे। इस दिन को 'यौमे आशुरा' के नाम से जाना जाता है।
मुहर्रम मुस्लिम का कोई त्यौहार नहीं बल्कि, अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक माना गया है। यह दिन पैगंबर मोहम्मद के पोते हुसैन इब्न अली की मौत की याद दिलाता है
हजारों साल से शिया उपासक उनकी याद में बड़ी संख्या में उपस्थित होकर पैगंबर मोहम्मद के पोते हुसैन इब्न अली को याद कर उनकी मृत्यु पर शोक व्यक्त करते हैं। पर अफगानिस्तान के इस शहर में शोक व्यक्त करने का तरीका कुछ अलग है। यहां के उपासक इस्लामिक कैलेंडर में पहले महीने के दसवें दिन में आशूरा के दिन अपने शरीर का रक्त निकालकर अपना दुख व्यक्त करते हैं। इतना ही नही, यहां पर खून की होली खेलने जैसा माहौल बन जाता है लोग अपने बच्चे के सिर पर तलवार चलाकर खून निकालने से भी नही चूकते हैं। एक बार तो लेबनान में एक शिया मुस्लिम ने असुरों की याद में अपने सिर को तलवार से ही काट लिया था।
10 अक्टूबर 680AD का दिन मातम मनाने और धर्म की रक्षा करने वाले हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करने वाला दिन होता है। मान्यता है कि 10वें मोहर्रम के दिन ही इस्लाम की रक्षा के लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपने प्राण त्याग दिए थे। वैसे तो मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का महीना है लेकिन आमतौर पर लोग 10वें मोहर्रम को सबसे ज्यादा तरीजह देते हैं। इस दिन हल साल अफगानिस्तान, ईरान, इराक, लेबनान, बहरीन और पाकिस्तान में एक दिन का राष्ट्रीय अवकाश होता है। अपनी हर खुशी का त्याग कर देते हैं।
आशुरा का महत्व
आशुरा मुहर्रम के महीने में मुसलमान शोक मनाते हैं मान्यताओं के अनुसार बादशाह यजीद ने अपनी सत्ता कायम करने के लिए हुसैन और उनके परिवार वालों पर जुल्म किया और 10 मुहर्रम को उन्हें बेदर्दी से मौत के घाट उतार दिया। हुसैन का मकसद खुद को मिटाकर भी इस्लाम और इंसानियत को जिंदा रखना था। अधर्म पर धर्म की जीत हासिल करने वाले पैगंबर को इतिहास कभी भी नही भूल पायेगा।
Updated on:
12 Sept 2019 10:00 am
Published on:
12 Sept 2019 09:59 am
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