
प्रतीकात्मक तस्वीर। (फोटो- पत्रिका)
सार्वजनिक क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभाने वाली महिलाओं के खिलाफ डिजिटल हिंसा एक गंभीर वैश्विक संकट बन गया है। यूएन वुमन की रिपोर्ट के मुताबिक, 119 देशों में किए गए सर्वे में शामिल महिला कार्यकर्ताओं, मानवाधिकार रक्षकों और पत्रकारों में से 70% ने बताया कि उन्होंने ऑनलाइन हिंसा का सामना किया। सामाजिक मुद्दों, राजनीति और न्याय के लिए आवाज उठाने वाली महिलाओं को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर चुप कराने की कोशिशें तेजी से बढ़ रही हैं।
सबसे खतरनाक पक्ष यह है कि 41% महिलाओं को ऑनलाइन उत्पीड़न से जुड़े ऑफलाइन हमलों का भी शिकार होना पड़ा। यानी डिजिटल हिंसा अब वर्चुअल दुनिया तक सीमित नहीं रही, बल्कि वास्तविक खतरे में बदल रही है। महिला पत्रकारों के लिए स्थिति और भी गंभीर हो है। 2020 में जहां 20% महिला पत्रकारों ने ऑनलाइन उत्पीड़न से जुड़े ऑफलाइन हमलों की बात कही थी, वहीं 2025 में यह आंकड़ा बढ़कर 42% हो गया है।
रिपोर्ट बताती है कि लगभग एक चौथाई महिलाओं ने एआइ बेस्ड ऑनलाइन हिंसा का अनुभव किया है, जिसमें डीपफेक तस्वीरें, वीडियो और हेरफेर की गई सामग्री शामिल है। सोशल मीडिया पर मानवाधिकारों के मुद्दों पर बोलने वाली लेखिकाओं और इन्फ्लुएंसर्स के खिलाफ ऐसी हिंसा की दर 30% तक पहुंच गई है।
भारत में भी महिलाएं इस समस्या से जूझ रही हैं। पत्रकार राणा अय्यूब को लगातार साइबर उत्पीड़न, डीपफेक पोर्नोग्राफी का शिकार बनाया गया। 2024 में उनके निजी दस्तावेज लीक किए गए। टीवी एंकर अंजना ओम कश्यप के डीपफेक वीडियो भी बनाए गए। सेलिब्रिटीज और इन्फ्लूएंसर भी इससे अछूते नहीं है। अभिनेत्री श्रीलीला और यूट्यूबर पायल धरे को भी उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था।
Published on:
21 Dec 2025 06:36 am
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