
Air bubbles (Representational Photo)
दुनिया में ऐसी जगहें जो बहुत ठंडी होती हैं, जैसे आर्कटिक और अंटार्कटिका, में संचार करना मुश्किल होता है। इसकी वजह है वहाँ का तापमान, जो इतना कम होता है कि ज़्यादातर इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज़ काम नहीं करते। ऐसे में वैज्ञानिक इसका हल निकालने और एक ऐसा तरीका ढूंढने की कोशिशों में लगे हुए थे, जिससे ऐसी जगहों पर आसानी से संचार किया जा सके और अब उन्हें ऐसा करने में कामयाबी मिली है।
वैज्ञानिकों ने बहुत ठंढी जगहों पर संचार के लिए बर्फ के बुलबुलों - एयर बबल्स (Air Bubbles) के ज़रिए मैसेज भेजने का तरीका ढूंढा है। चीन (China) की बीजिंग इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने दिखाया है कि बर्फ में फंसे हुए एयर बबल्स की आकृति, आकार और फैलाव को नियंत्रित करके मैसेज को बाइनरी या मोर्स कोड में बदला जा सकता है। यह खोज सेल रिपोर्ट फिजिकल साइंस जर्नल में प्रकाशित हुई है।
जब पानी जमता है, तो उसमें घुली गैसें बाहर निकलकर एयर बबल्स बनाती हैं। वैज्ञानिकों ने इस प्रक्रिया को नियंत्रित करने के लिए पानी की पतली परत को दो पारदर्शी प्लास्टिक शीट्स के बीच रखकर विशेष तापमान पर जमाया। फ्रीज़िंग स्पीड बदलकर उन्होंने कुछ परतों में एयर बबल्स बनाए और कुछ में नहीं। इस तरह से एक खास पैटर्न बना। जहाँ एयर बबल्स हो वहाँ '1' और जहाँ न हो वहाँ '0'। यह पैटर्न बाइनरी या मोर्स कोड में बदला जा सकता है। चूंकि एयर बबल्स वाली बर्फ सफेद दिखती है और बिना एयर बबल्स वाली पारदर्शी या गहरी, कैमरा इन बदलावों को पहचान लेता है और एक सॉफ्टवेयर उसे कोड में बदल देता है। इस तरह मैसेज भेजे जा सकते हैं।
इस खोज पर बीजिंग इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के एक वैज्ञानिक ने कहा, "यह टेक्नोलॉजी न सिर्फ पारंपरिक कागज़ी दस्तावेजों से ज्यादा गोपनीय है, बल्कि टेलीकॉम की तुलना में बेहद कम ऊर्जा में काम करती है। एयर बबल्स में बंद ये मैसेज लंबे समय तक टिकाऊ होते हैं और सुरक्षित भी रहते हैं। यही वजह है कि इसे भविष्य में इमरजेंसी कम्युनिकेशन, गोपनीय डेटा स्टोरेज और दुर्गम इलाकों में सूचना भेजने के लिए अहम माना जा रहा है।"
Updated on:
28 Jun 2025 11:03 am
Published on:
28 Jun 2025 10:51 am
बड़ी खबरें
View Allविदेश
ट्रेंडिंग
