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हिन्दी को विदेशों में मिली ये नई धरती, नया आकाश, राजस्थान के इस प्रवासी भारतीय ने बताई ऐसी बात

Hindi Day Special: प्रवासी भारतीयों ने हिन्दी भाषा साहित्य में विशिष्ट योगदान दिया है। प्रवासी भारतीयों ने दुनिया के कई देशों में हिन्दी की धूम मचाई है। हिन्दी दिवस पर राजस्थान के अलवर मूल के प्रवासी भारतीय साहित्यकार रामा तक्षक सीधे नीदरलैंड से बता रहे हैं हिन्दी की बात:

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Hindi Diwas NRI

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Hindi Day Special: हिन्दी दिवस और भारत की आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर , साझा संसार नीदरलैंड्स की पहल पर आयोजित 'प्रवास मेरा नया जन्म' कार्यक्रम का हिन्दी प्रेमी लोगों ने खूब आनंद लिया। आयोजन की अध्यक्षता जापान की मशहूर वरिष्ठ कवयित्री, लेखिका और संपादक रमा शर्मा ने की। राजस्थान के अलवर मूल के प्रवासी भारतीय साहित्यकार रामा तक्षक( Rama Takshak) ने सीधे नीदरलैंड से बताया कि हिन्दी दिवस (Hindi Day Special) पर सजे इस कार्यक्रम में रूस से प्रगति टिपणीस ने मुख्य वक्ता के रूप में, अमेरिका से आस्था नवल, इंडोनेशिया से वैशाली रस्तोगी, मॉरीशस से सुश्री सान्वी काशीनाथ, और नीदरलैंड्स से विश्वास दुबे ने भाग लिया। यह आयोजन प्रवासी साहित्यकारों के जीवन की नई धड़कनों और हिंदी साहित्य में उनके योगदान को उजागर करने के लिए महत्वपूर्ण रहा।

मानव संघर्ष जीवंत रूप में प्रस्तुत किया

वैशाली रस्तोगी ने प्रवास की वेदना को चित्रित करते हुए 'मैं प्रवासी, मैं प्रवासी' रचना का पाठ किया और साथ ही दोहे भी सुनाए। सुश्री सान्वी काशीनाथ ने 'मैं नदी हूँ' शीर्षक के तहत कविता पाठ किया, जिसमें नदी के महत्व और पर्यावरण की चिंताओं को उजागर किया। आस्था नवल ने 'खारा पानी' रचना के माध्यम से प्रवास की तीक्ष्ण वेदना और मानव संघर्ष को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया।

जीवन सुंदर ढंग से रेखांकित किया

मुख्य वक्ता प्रगति टिपणीस ने 'जिंदगी उड़ान है' शीर्षक के माध्यम से बताया कि संस्कृत का ज्ञान रूसी भाषा सीखने में सहायक हो सकता है। उन्होंने रूस की प्राकृतिक सुंदरता, मौसम, शासन व्यवस्था और वहां के जीवन को सुंदर ढंग से रेखांकित किया। साथ ही, उन्होंने जॉर्जियाई आतिथ्य सत्कार के बारे में भी विस्तार से बताया।

जीवन जीना भी आ गया

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में रमा शर्मा ने जापानी जीवन की रोचक जानकारियाँ साझा कीं। उन्होंने प्रवास को आंखें खोलने वाला अनुभव और शिशु अवस्था की संज्ञा दी। जापान पहुँचने के बाद, उन्होंने शिशु की तरह आस-पड़ोस से जापानी भाषा सीखना शुरू और कहा कि जब चलना, बोलना और खाना आ गया, तो जीवन जीना भी आ गया।

हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने में योगदान

रामा तक्षक ( Rama Takshak ) ने सभी प्रतिभागियों और श्रोताओं का स्वागत करते हुए कहा कि साझा संसार का सृजन उनके लिए व्यक्तिगत रूप से एक प्रेरणा रहा है। इस प्रेरणा को लीलाधर मंडलोई( Leeladhar Mandloi) का मार्गदर्शन मिला है। उन्होंने बताया कि यह आयोजन पिछले चार वर्षों से लगातार आयोजित किया जा रहा है और प्रवासी साहित्यकार के जीवन की नई धड़कन को उजागर करता है। उन्होंने कहा कि जीवन के इस नए अनुभव को शब्दों में पिरो कर प्रवासी भारतीय साहित्यकार हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। अंत में, रामा तक्षक ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए 'दिव्य कॉमेडी' रचना सुनाई। विश्वास दुबे ने मंच संचालन के साथ-साथ 'प्रवास मेरा नया जन्म' आयोजन पर विस्तार से बताया कि इस कार्यक्रम में हजारों भावों का समावेश है। उन्होंने अपनी मार्मिक रचना का भी पाठ किया।

प्रवासी भारतीय साहित्यकार रामा तक्षक : एक नजर

रामा तक्षक का जन्म राजस्थान के अलवर जिले में एक छोटे से गांव जाट बहरोड के सामान्य परिवार में 8 दिसंबर 1962 को हुआ था। उन्होंने माता पिता की तीसरी संतान हैं। उनकी माता का नाम भगवानीदेवी और पिता का नाम रामचंद्र तक्षक है। उन्होंने दसवीं कक्षा तक तो स्वयं के गाँव जाट बहरोड़ में ही पढ़ाई की। हायर सैकण्डरी बीजवाड़ चौहान स्कूल से की। रामा तक्षक सन 1978 में गाँव से महाविद्यालय की पढ़ाई के लिए अलवर शहर गये। उनके आलेख भारत की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। वहीं 1983 में, छात्र जीवन में ही तृतीय विश्व हिन्दी सम्मेलन, दिल्ली में भी भाग लिया था। उन्हें भारत की विभिन्न भाषाओं के साथ-साथ, इटालियन और डच भाषा का भी अच्छा ज्ञान है। वे इटालियन और डच भाषा से हिंदी में अनुवाद का काम भी करते हैं। इन भाषाओं के हिंदी अनुवाद विश्वरंग व अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।

दर्जनों सम्मान मिल चुके

वे साझा संसार, नीदरलैंड साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच के संस्थापक व अध्यक्ष हैं। वहीं भारतीय ज्ञानपीठ, विश्व रंग और वनमाली सृजन पीठ के साथ मिलकर 'साहित्य का विश्व रंग' कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। विगत वर्षों में, इस आयोजन के माध्यम से उन्होंने लगभग पांच सौ प्रवासी भारतीय रचनाकारों को इस मंच से जोड़ा है। उन्हें अब तक प्रवासी साहित्यकार सम्मान, विश्व रंग सम्मान, अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मान सहित दर्जनों सम्मान मिल चुके हैं। वे राजस्थान हिंदी साहित्य अकादमी, उदयपुर राजस्थान, नागरी लिपि परिषद, 19, गांधी स्मारक निधि, राजघाट, नई दिल्ली के सदस्य हैं। उनके उपन्यास 'हीर हम्मो' को दिसंबर 2023 में राजस्थान साहित्य अकादमी का प्रभा खेतान पुरस्कार मिल चुका है।

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