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भारत में मुसलमानों को असुरक्षित बताने वाले गौर करें, सऊदी अरब में काबा के पूर्व इमाम को सुनाई गई दस साल क़ैद की सज़ा

सऊदी अरब की अदालत ने मक्का के पूर्व इमाम को 10 साल कैद की सजा सुनाई है। इनका जुर्म इतना ही बताया जा रहा है कि वे सऊदी अरब के शासक के नजर में कुछ आलोचक का रवैया रखते दिख रहे थे।

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सऊदी अरब के ताजा घटनाक्रम से दुनिया के मुस्लिम देश हैरान हैं। बिना किसी खास ज्ञात वजह के सऊदी में मक्का स्थित ख़ाना-ए-काबा के पूर्व इमाम को 10 साल की सुनाई गई है। सऊदी अरब की एक अदालत ने 22 अगस्त को मक्का स्थित ख़ाना-ए-काबा के पूर्व इमाम और धर्म प्रचारक शेख़ सालेह अल-तालिब को दस साल क़ैद की सज़ा सुनाई है। ख़ाना-ए-काबा को हरमशरीफ़ भी कहा जाता है और इसे मुसलमानों के सबसे पवित्र धार्मिक स्थलों में माना जाता है। सऊदी अरब के अलावा अरब दुनिया की बाक़ी मीडिया ने काबा के पूर्व इमाम को दस साल सज़ा सुनाए जाने की ख़बर दी है।

अपील अदालत ने सुनाई सजा

अरब दुनिया की अलग-अलग वेबसाइटों के अनुसार, सऊदी अरब की एक अपील अदालत ने 22 अगस्त को पूर्व इमाम और धर्म प्रचारक शेख़ सालेह अल-तालिब के ख़िलाफ़ दस साल क़ैद की सज़ा सुनाई।

निचली अदालत ने कर दिया था बरी

काबा के पूर्व इमाम से संबंधित इस ख़बर को प्रकाशित करने वाले प्रसार माध्यमों में क़तर से जुड़ा 'अरबी 21' भी शामिल है। उसने सूचना दी है कि अपील अदालत ने निचली अदालत के फ़ैसले को पलट दिया है। निचली अदालत ने उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया था।

बिना किसी कारण बताए कर लिया गया था गिरफ्तार

वेबसाइट के अनुसार सऊदी अरब सरकार ने अगस्त 2018 में सालेह अल-तालिब को कोई वजह बताए बिना गिरफ़्तार कर लिया था। 'अरबी 21' के अनुसार अल-तालिब विभिन्न सऊदी अदालतों में जज की हैसियत से सेवाएं दे चुके हैं। इनमें राजधानी रियाद की इमर्जेंसी अदालत और मक्का का हाईकोर्ट भी शामिल हैं जहां उन्होंने गिरफ़्तारी से पहले काम किया था।

धार्मिक प्रवचन बना वजह...

उनकी गिरफ़्तारी के बाद मानवाधिकार के समूहों और सऊदी अरब विरोधी विभिन्न संचार माध्यम उनकी सज़ा को इस ख़ुत्बे (जुमे की नमाज़ से पहले या ईद और बक़रीद की नमाज़ के बाद दिया जाने वाला धार्मिक प्रवचन) से जोड़ कर देख रहे हैं जो उन्होंने 'बुराई को ख़ारिज करने की अहमियत' के बारे में दिया था।

भविष्य के आलोचकों पर सरकार की नजर

उस समय सऊदी अरब के एक कर्मचारी यह्या एसरी ने क़तर की आर्थिक सहायता से चलने वाले अल-जज़ीरा नेट को बताया था कि उनके देश में शासक उन लोगों को निशाना बना रहे हैं जो भविष्य में संभावित तौर पर सरकार और लोकप्रिय होने वाले लोगों पर सवाल उठा सकते हैं।

'अत्याचारी और तानाशाह' शासकों के खिलाफ की थी बातें

ऐसा कहा जा रहा है कि ख़ाना-ए-काबा के पूर्व इमाम को शाही परिवार के खि़लाफ़ ख़ुत्बा देने की वजह से सज़ा सुनाई गई है। सऊदी अरब के क़तर के साथ 2017 में पैदा हुए तनाव के बाद से सऊदी नीतियों को आलोचना का निशाना बनाने वाले टीवी चैनल अल-जज़ीरा नेटवर्क के अनुसार पूर्व इमाम-ए-काबा ने गिरफ्तारी से पहले एक ख़ुत्बे में 'अत्याचारी और तानाशाह' शासकों के ख़िलाफ़ बातें की थीं। हालांकि उन्होंने सऊदी शाही परिवार के सदस्यों का नाम नहीं लिया था।

पुरातपंथी उलेमाओं को भी किया जा चुका है गिरफ्तार

उन्होंने सऊदी अरब के सुल्तान के उत्तराधिकारी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की ओर से राजशाही में किए जाने वाले सामाजिक परिवर्तन पर सोशल मीडिया पर की जाने वाली आलोचना को उजागर किया था जिसमें से एक ने इसे आश्चर्यजनक बताया था। पिछले कुछ सालों के दौरान देश में विभिन्न इस्लामी उलेमा को अत्यंत पुरातनपंथी सोच रखने के कारण गिरफ़्तार किया गया है जो सऊदी शहज़ादा मोहेम्मद बिन सलमान 'उदारवादी' मुहिम और आर्थिक और सामाजिक सुधारों के उनके 'विज़न 2030' से मेल नहीं खातीं।

'बुरे काम और उसके अपराधियों' की आलोचना पड़ी भारी

उनकी गिरफ़्तारी की तरह अल-तालिब के ख़िलाफ़ फ़ैसले ने भी क्राउन प्रिंस के सऊदी आलोचक और उनकी उदारवादी नीतियों के बारे में सोशल मीडिया पर उनके ख़िलाफ़ बोलने वालों ने तूफ़ान खड़ा कर दिया है। ट्विटर पर दस लाख फ़ॉलोवर्स रखने वाले तुर्की अश्श्लहूब ने, जो ख़ुद को भ्रष्टाचार विरोधी पत्रकार कहते हैं, इस निर्णय की आलोचना की और कहा कि अल-तालिब को 'बुरे काम और उसके अपराधियों' के ख़िलाफ़ अपने ख़ुत्बों की वजह से सऊदी अदालतों ने 10 साल क़ैद की सज़ा सुनाई है।

सोशल मीडिया पर भी छाया मुद्दा

एक और ट्वीट में शलहूब ने इस फ़ैसले को 'बिन सलमान की सरकार के अत्याचार, भ्रष्टाचार और अन्याय की कहानियों में से एक' बताया है। इस ट्वीट को अधिकतर धर्म प्रचारकों को समर्थन मिला है। इस बीच सऊदी अरब में राजनैतिक बंदियों के बारे में रिपोर्ट करने वाले ट्विटर अकाउंट पर अंतरात्मा के क़ैदियों ने इस फ़ैसले की ख़बर की पुष्टि की है।

तालिब सालेह हैश टैग के तहत उनके कुछ ख़ुत्बों की वीडियो रिकॉर्डिंग ट्विटर पर चलने के साथ साथ उनके समर्थन के संदेश भी प्रकाशित हुए हैं जिनमें कुवैती धार्मिक विद्वान हकीम अलमतीरी भी शामिल हैं, जिनके सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर दस लाख फ़ॉलोवर्स हैं।