
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन की यात्रा पर। (फोटो: ANI.)
India-China Border Tension: भारत और चीन के बीच खट्टे-मीठे रिश्ते (India-China relations) रहे हैं और कभी-कभी तो इनमें बहुत अधिक कड़वाहट भी घुली है। कभी हिंदी चीनी भाई-भाई नारा गूंजा तो कभी दोनों देशों के बीच जंग भी हुई। सरहद पर भी तनातनी का माहौल रहा। दोनों देशों के बीच तिब्बत, गलवान घाटी और अरुणाचल प्रदेश विवाद और तनाव का विषय रहे। चीन पाकिस्तान का मित्र माना जाता है और यहां तक कि भारत-पाक संघर्ष के समय भी उसने चीन का साथ दिया था। टैरिफ विवाद के कारण अमेरिका से रिश्तों में आई खटास के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ( PM Modi ) सात साल से ज़्यादा के अंतराल के बाद शनिवार को चीन पहुँचे। डोनाल्ड ट्रंप ( Donald Trump )की टैरिफ़ नीतियों के कारण भारत-अमेरिका संबंधों में आई अचानक आई कड़वाहट को देखते हुए यह यात्रा और भी महत्वपूर्ण हो गई है। इसलिए यह एक ऐसी यात्रा है जिस पर सभी की नज़र है।
तिब्बत विवाद भारत-चीन संबंधों में एक प्रमुख मुद्दा है, जो चीनी कब्जे और तिब्बत की स्थिति पर आधारित है। जब 1950 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया, तो भारत ने तिब्बत को एक स्वतंत्र क्षेत्र के रूप में मान्यता दी थी। भारत ने तिब्बत के स्वायत्तता के अधिकार को मानते हुए उसके मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया। इसके बाद, तिब्बत से जुड़े कई मुद्दों ने भारत-चीन रिश्तों को प्रभावित किया, जैसे कि 1959 में तिब्बत में चीनी सेना की उपस्थिति और तिब्बती नेता दलाई लामा का भारत में शरण लेना।
तिब्बत विवाद भारतीय कूटनीति और चीन के साथ रिश्तों में तनाव का कारण बना। चीन की नज़र में तिब्बत एक अविभाज्य हिस्सा है, जबकि भारत ने हमेशा तिब्बत को एक विशेष क्षेत्र के रूप में देखा और उसके अधिकारों का समर्थन किया। इससे चीन को यह चिंता रही कि भारत ने तिब्बत की स्वतंत्रता को लेकर चीन की स्थिति पर सवाल उठाए हैं।
अरुणाचल प्रदेश विवाद भारत और चीन के बीच एक और महत्वपूर्ण सीमा विवाद है, जो दोनों देशों के बीच गहरी कूटनीतिक खींचतान का कारण है। चीन अरुणाचल प्रदेश के लगभग 90,000 वर्ग किमी क्षेत्र को अपना हिस्सा मानता है और इसे "दक्षिण तिब्बत" के रूप में संबोधित करता है। हालांकि, भारत ने इस क्षेत्र को अपने अविभाज्य हिस्से के रूप में मान्यता दी है और चीन के इस दावे को पूरी तरह से नकारा है।
अरुणाचल प्रदेश का विवाद 1950 के दशक से शुरू हुआ, जब चीन ने तिब्बत में अपनी स्थिति मजबूत की थी और इस क्षेत्र के कुछ हिस्सों पर दावा किया था। सन 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान भी इस क्षेत्र का विवाद प्रमुख मुद्दा था। युद्ध के बाद, चीन ने अरुणाचल प्रदेश के अधिकांश हिस्से पर नियंत्रण प्राप्त करने का प्रयास किया, लेकिन भारत ने इसे अपने क्षेत्र के रूप में बनाए रखा। आज भी, यह विवाद भारत-चीन सीमा वार्ता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और दोनों देशों के बीच कूटनीतिक वार्ता का हिस्सा बना हुआ है। चीन की ओर से इस क्षेत्र पर लगातार दावे किए जाते रहे हैं, जबकि भारत ने अपनी स्थिति को मजबूती से खड़ा किया है।
दरअसल मोदी मुख्य रूप से 31 अगस्त और 1 सितंबर को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के वार्षिक शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन में हैं। हालाँकि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ रविवार को उनकी निर्धारित बैठक, वाशिंगटन के टैरिफ़ विवाद के मद्देनजर और भी महत्वपूर्ण हो गई है, जिसका असर दुनिया भर की लगभग सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ा है। इस वार्ता में, प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग भारत-चीन आर्थिक संबंधों का जायज़ा लेंगे और पूर्वी लद्दाख सीमा विवाद के बाद गंभीर तनाव में आए संबंधों को और सामान्य बनाने के कदमों पर विचार-विमर्श करेंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तियानजिन पहुंचने पर गर्मजोशी से स्वागत किया गया। सात वर्षों से अधिक के अंतराल के बाद प्रधानमंत्री मोदी चीन की यात्रा पर आए हैं, जिस पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं। वाशिंगटन की टैरिफ नीतियों के कारण भारत-अमेरिका संबंधों में अचानक आई गिरावट के मद्देनजर यह यात्रा और भी महत्वपूर्ण हो गई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के तियानजिन पहुँच गए हैं। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के निमंत्रण पर, प्रधानमंत्री मोदी तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन की यात्रा पर हैं। इस यात्रा के दौरान, वह शिखर सम्मेलन से इतर राष्ट्रपति शी जिनपिंग, राष्ट्रपति पुतिन और अन्य नेताओं से मुलाकात करेंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को जापान के मियागी प्रांत के सेंडाई में एक सेमीकंडक्टर प्लांट का दौरा करने गए। मोदी के साथ उनके जापानी समकक्ष शिगेरु इशिबा भी थे। दोनों प्रधानमंत्रियों ने बुलेट ट्रेन से टोक्यो से सेंडाई की यात्रा की। प्रधानमंत्री मोदी शुक्रवार को दो दिवसीय यात्रा पर टोक्यो पहुँचे।
भारत और चीन के बीच इन विवादों का समाधान पूरी तरह से कूटनीतिक बातचीत पर निर्भर करता है। दोनों देशों ने सीमा मुद्दों को सुलझाने के लिए कई दौर की वार्ताएँ की हैं, लेकिन सफलता सीमित रही है। तिब्बत और अरुणाचल विवादों पर समझौता खोजने के लिए दोनों देशों के नेताओं और कूटनीतिज्ञों को आगे बढ़ने के लिए गंभीर प्रयासों की आवश्यकता है, ताकि क्षेत्रीय शांति और स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।
बहरहाल दोनों देशों के बीच इतनी अधिक कड़वाहटों के बावजूद मोदी ने चीन की यात्रा की है तो यह भारत की विदेश नीति और राजनयिक संबंधों के नजरिये से एक अच्छा कदम है। प्रधानमंत्री की इस पहल से दोनों देशों के बीच रिश्तों की नई इबारत लिखी जा सकती है।
Published on:
30 Aug 2025 06:06 pm
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