
आज की भारतीय जनरेशन की कड़वी सच्चाई। (फोटो: AI Generated)
Gen Z Student Loan Crisis: यह कहानी सिर्फ एक लड़के की नहीं, बल्कि आज की भारतीय जनरेशन Z (Gen Z Debt) की कड़वी सच्चाई है। अमेरिका से महंगी कॉलेज की पढ़ाई (Cost of US Education) पूरी करने के बाद एक 25 साल के भारतीय युवा को सिर्फ 56,000 रुपये की शुरुआती सैलरी मिल रही है। इस सैलरी का बड़ा हिस्सा यानि 45,000 रुपये उसे एजुकेशन लोन (Indian Education Loan) की EMI चुकाने में खर्च करना पड़ रहा है। वह इस तनावपूर्ण स्थिति के कारण खुद को 'शर्मिंदा और बेबस' महसूस कर रहा है, और यही कहानी मशहूर उद्यमी अंकुर वारिकू की भी सामने आई, जिसके बाद सोशल मीडिया पर एक बड़ी बहस छिड़ गई। दरअसल, कंटेंट क्रिएटर और बिज़नेस गुरु अंकुर वारिकू (Ankur Warikoo Advice) ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट 'X' (पहले ट्विटर) पर एक 25 वर्षीय सब्सक्राइबर का ई-मेल शेयर किया। उस युवा ने अपने हालात बताए: उसका लगभग 40 लाख रुपये का एजुकेशन लोन है और मासिक कमाई 56,000 रुपये है, जबकि अकेले EMI 45,000 रुपये (Salary vs EMI) है। इसके अलावा, 12,000 रुपये किराया, 3,000 रुपये यात्रा खर्च और 10,000 रुपये अन्य खर्चे हैं। हिसाब लगाने पर यह पता चला कि वह खुद सिर्फ 25,000 रुपये EMI भर पाता है और उसे हर महीने अपने पिताजी से बाकी 20,000 रुपये की मदद लेनी पड़ रही है। युवक ने साफ लिखा कि 25 साल की उम्र में पिताजी से पैसा लेना उसे 'शर्म और बेबसी' महसूस कराता है।
इस ई मेल के जवाब में, गुरुग्राम स्थित उद्यमी अंकुर वारिकू ने उस युवा को कुछ सुझाव दिए। उन्होंने लड़के से पिता से मदद लेना फौरन बंद करने और इसके बजाय अपनी सैलरी बढ़ाने या अथक परिश्रम कर के कोई साइड इनकम (Side Hustle) ढूंढने के लिए कहा। वारिकू की इस 'कठोर' सलाह के कारण इंटरनेट यूजर्स दो हिस्सों में बॅंट गए। कुछ लोगों ने उनकी सलाह को 'प्रैक्टिकल' और 'सही मोटिवेशन' बताया, वहीं बड़ी संख्या में सोशल मीडिया यूजर्स ने उन पर Gen Z के संघर्षों को न समझने और अव्यावहारिक (Impractical) सलाह देने का आरोप लगाया।
यह सिर्फ एक सलाह का विवाद नहीं है, बल्कि उस बड़ी समस्या का है, जहां लाखों रुपये खर्च कर के विदेश से डिग्री लेने के बाद भी भारतीय युवाओं को कम सैलरी मिलती है, जो भारी भरकम एजुकेशन लोन चुकाने के लिए पर्याप्त नहीं होती। यूजर्स का कहना है कि जब 56,000 रुपये की सैलरी में से 45,000 रुपये की ईएमआई जा रही हो, तो बचे हुए थोड़े से पैसों में साइड इनकम या नई स्किल सीखना मुश्किल होता है। वारिकू का कहना था कि मेहनत ही एकमात्र रास्ता है, जबकि आलोचकों ने कहा कि यह संरचनात्मक समस्या (Systemic Issue) है, जिसका सिर्फ व्यक्तिगत प्रयास से समाधान नहीं किया जा सकता।
इस विवाद के बाद अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यह युवा इस सलाह पर कैसे अमल करता है। संभव है कि वह अपनी नौकरी बदलने या नई स्किल सीखने पर जोर दे, जिससे उसकी सैलरी जल्द से जल्द बढ़े। इस बहस के फालोअप के तौर पर, अब कई फाइनेंस एक्सपर्ट्स और करियर काउंसलर्स ने शिक्षा ऋण प्रबंधन (Education Loan Management) और करियर शिफ्टिंग पर वीडियो और पोस्ट बनाना शुरू कर दी हैं, जिससे इस तरह के संकट में फंसे दूसरे युवाओं को एक व्यावहारिक रास्ता मिल सके।
बहरहाल,यह अमेरिका से पढ़ कर लौटने वाले युवाओं के लिए एक चेतावनी है। महंगे विदेशी विश्वविद्यालयों से डिग्री लेने पर अक्सर यह उम्मीद की जाती है कि उन्हें भारत में लाखों का पैकेज मिलेगा। लेकिन कई बार यह उम्मीद पूरी नहीं हो पाती, जिससे वे सीधे कर्ज के जाल में फंस जाते हैं। यह कहानी भारतीय माता-पिता के लिए भी एक संदेश है कि सिर्फ डिग्री की चमक देखने के बजाय, यह आकलन करना ज़रूरी है कि क्या बच्चे को मिलने वाले रिटर्न और एजुकेशन लोन की लागत को न्यायसंगत ठहराता है ?
Updated on:
12 Dec 2025 06:21 pm
Published on:
12 Dec 2025 05:06 pm
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