भारत में स्पूतनिक की उम्मीदों को तब झटका लगा, जब यहां स्वास्थ्य नियामकों ने और ट्रायल की मांग कर डाली। आरडीआइएफ ने टीके के आपातकालीन प्रयोग की मांग की, लेकिन यह 2021 के मध्य तक संभव नहीं लगता। फिर भारत ने अपना टीका भी तैयार कर लिया। ब्राजील में भी पिछले वर्ष नवंबर तक टीके की आपूर्ति भी खटाई में पड़ गई।
यूरोपीय देशों का मानना है कि रूस ने प्रभाव को दर्शाने के लिए टीके के तीसरे चरण का अध्ययन करने से पहले ही मंजूरी दे दी। न्यूयॉर्क की वील कॉर्नेल मेडिकल कॉलेज के वैक्सीन शोधकर्ता जॉन मूर का कहना है कि रूस सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी के लिए टीके का इस्तेमाल कर रहा है। दरअसल, ये द्वंद्व शीतयुद्ध के जमाने से चला आ रहा है। सोवियत संघ 1957 में पहली बार पहला उपग्रह स्पूतनिक प्रक्षेपित कर दौड़ में आगे निकल गया तो 12 वर्ष बाद अमरीका ने चांद पर अंतरिक्षयात्री भेजे। रूसी वैक्सीन का नाम स्पूतनिक रखने के पीछे भी यही थ्योरी है, कि वह अब भी आगे रहना चाहता है।
कुछ देशों ने रूसी टीके पर जल्द भरोसा किया, जैसे बेलारूस, रूस के बाहर वैक्सीन को मंजूरी देने वाला पहला देश था। अर्जेंटीना ने तीन लाख लोगों का टीकाकरण शुरू कर दिया। गिनी टीके का वितरण करने वाला पहला अफ्रीकी देश है, जबकि बॉलीविया ने 52 लाख खुराक मांगी हैं। सर्बिया को 2400 खुराक का पहला बैच भेज दिया गया।