हम महाकुंभ मेले से वापसी के बारे में बात करने लगे
उन्होंने बताया, मैं सपत्नीक, महाकुंभ में तीन दिन के प्रवास के बाद, वापस लौट कर आया हूं। हमने 16 जनवरी की देर शाम तक महाकुंभ स्थल का कार से भ्रमण किया। इस भ्रमण में जब हम भटक रहे थे तब होटल के ड्राइवर आनंद ने राह आसन की। बहुत ढ़ूढ़ने के बाद, हम बहुत थक चुके थे। इसी समय मैंने पुलिस के एक सिपाही से बात की। मैंने उससे अतुल कोठारी के शिक्षा एवं संस्कृति न्यास के बनाए पंडाल ‘ज्ञान महाकुंभ’ के बारे में पूछा। पहले तो उसने कहा कि मुझे पता नहीं है। यह उत्तर सुनकर, हताशा में, मैंने कार की खिड़की को बंद कर लिया। हम महाकुंभ मेले से वापसी के बारे में बात करने लगे।गंगा के प्रांगण में, तारों भरी शाम और हाथ में थाली
तक्षक ने बताया, चार कदम लेने के बाद वह सिपाही वापस आया और कार के शीशे पर खटखट की। ऐसा करके उसने इशारा किया और कहा कि ज्ञान महाकुंभ कुछ दूरी पर बाईं ओर बगल में ही है। यह सूचना पाकर, आखिर हम ज्ञान महाकुंभ के पंडाल पर पहुँच गये। वहाँ पूर्णेन्दु मिश्र से मुलाकात हुई। उनसे मिलने पर, उन्होंने सबसे पहले कहा कि आप भोजन करें फिर बात करेंगे। हमने उस ठण्ड में लोई ओढ़े हुए, गंगा के प्रांगण में, तारों भरी शाम को हाथ में थाली लिए भोजन के एक एक ग्रास का आनंद लिया। बातचीत करने पर पता चला कि वे नवंबर 2024 से ही महाकुंभ की व्यस्थाओं को देख रहे हैं। यह सुनकर मैंने उनसे अगले दिन, महाकुंभ मेले का मार्गदर्शन करने के लिए कहा। यह सुनकर वे बोले कि कल आप ग्यारह बारह बजे आ जाओ।भारतीय दर्शन और भारतीय संस्कृति की बात
उन्होंने बताया, अगले दिन हम उसी ड्राइवर को साथ लेकर चले गये। पूर्णेन्दु पंडाल में होने वाले आयोजन में बहुत व्यस्त थ। इस व्यस्तता को निपटाकर वे हमें महाकुंभ के सैक्टर 18, 19 व 20 की तरफ ले गये। अचानक पूर्णेन्दु ने कार रोकने के लिए कहा। कार रुकते ही बोले आओ आपको गुरु जी से मिलवाता हूँ। तान्त्रिक गुरु हैं। चंदन का तिलक लगाए, क्लीन शेव, मोतियों व रुद्राक्ष की माला पहने हुए, बयासी वर्षीय बाबा कुर्सी पर बैठे धूप सेंक रहे थे। हमें लोहे की टिन के दरवाजे से आते हुए देखकर, कुछ सम्भले और देखते ही देखते एक संवाद शुरू हो गया। उन्होंने कुर्सियाँ मँगवाईं, तब तक भारतीय दर्शन और भारतीय संस्कृति की बात आरंभ हो चुकी थी। इसी बीच उन्होंने एक टेन्ट की कुटिया की ओर इशारा करते हुए बताया कि मेरे गुरु कुटिया में हैं। मैंने सोचा कि शायद गुरु जी आराम कर रहे हैं।कुटिया में घुसते ही मेरी देह का रोम रोम उस ऊर्जा में नहा लिया
तक्षक ने बताया, जब हम चलने लगे तो उन्होंने अपना फोन नम्बर देते हुए अपना नाम बताया। साथ ही उन्होंने कुटिया की ओर इशारा करते हुए कहा कि आओ गुरु जी से भी मिलते जाओ। हम अपने जूते उतार कर, कुटिया में पहुंचे तो कुटिया सकारात्मक ऊर्जा से सराबोर थी। कुटिया का भीतरी भाग ऊर्जा संचरित क्षेत्र में डूबा था। इस ऊर्जा का संग और अनुभव पाकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे। मेरी पत्नी ने भी यही कहा। कुटिया में घुसते ही मेरी देह का रोम रोम उस ऊर्जा में नहा लिया। ऐसा अद्भुत अनुभव ! वहाँ कुटिया में उनके गुरु जी की केवल फोटो लगी हुई थी। फोटो के साथ में शायद गुरु का एक दाँत भी रखा हुआ था।उन्होंने सभी मुख्य अखाड़ों का भ्रमण करवाया
उन्होंने बताया, इस अनुभव के बाद पूर्णेन्दु हमें एक बहुत बड़े पंडाल में लेकर गए। उस पंडाल में लोग कतार में लग कर प्रसाद ग्रहण कर सकें। इसके लिए समुचित व्यवस्था थी। पूर्णेन्दु ने कहा कि आप भी प्रसाद वितरण करो। एक बहुत बड़ी मेज पर, पत्तों के दोनों में प्रसाद रखा हुआ था। प्रसाद की खाली होती मेज को कुछ ही क्षणों में फिर से भर दिया जाता था। कुछ देर तक हमने प्रसाद वितरण की अनुभूति को आत्मसात किया। उसके बाद भीतर टैन्ट में उन उद्योगपति से भी मिले जिन्होंने तीन माह तक प्रसाद बाँटने की व्यापक और बहुत साफ सुथरी व्यवस्था की थी। थोड़ी देर बाद, पूर्णेन्दु जी के आग्रह पर शुक्ला जी (सिक्योरिटी) हमारे साथ हो लिए। उन्होंने सभी मुख्य अखाड़ों का भ्रमण करवाया। हमारे चहुंओर का संसार, कौतूहल से भरा था। जिज्ञासा लिए मेरी आँखें चौंधिया रही थीं।हर नागा साधु अपने जीवन कृत्य के सर्वस्व में डूबा था
तक्षक ने कहा, हमने जूना अखाड़े का भ्रमण किया। कुछ नागा साधुओं से संवाद का अवसर मिला। हर नागा साधु अपने जीवन कृत्य के सर्वस्व में डूबा था। पूर्णेन्दु मिश्र ने बताया कि महाकुंभ में भारतीय सांस्कृतिक उद्देश्य से जितने भी पंडाल लगे हुए हैं। पंडाल लगाने का स्थान, भारत सरकार ने निशुल्क उपलब्ध कराया है। महाकुंभ क्षेत्र, एक पूरे जिले की शासन व्यवस्था है। यहाँ शराब का नामोनिशान नहीं है। यहाँ भोजन के लिए कोई पशु वध नहीं है। कोई रक्तपात नहीं है। कोई हिंसा नहीं है। राजनीति नहीं, कोई धर्मांतरण नहीं, कोई संप्रदाय नहीं, कोई अलगाव नहीं, कोई व्यापार नहीं, कोई व्यवसाय नहीं। संसार में कहीं भी इतनी संख्या में एक ही कार्यक्रम – धार्मिक, खेल, युद्ध या किसी अन्य उत्सव के लिए मनुष्य एकत्रित नहीं होते हैं।इस ग्रह पृथ्वी पर, मानवता का यह सबसे बड़ा जमावड़ा
वे कहते हैं, एक पाकिस्तानी पत्रकार उमर खालिद महाकुंभ के बारे में लिखते हैं “इस ग्रह पृथ्वी पर, मानवता का यह सबसे बड़ा जमावड़ा, हिंदुओं का सबसे बड़ा, धार्मिक जमावड़ा है वनस्पति (हमारे पैरों के नीचे) से लेकर तारों (आकाश में) तक ब्रह्मांड के साथ मानवता के संबंध के बारे में, हिंदू धर्म की यह समझ, हिंदू धर्म में उन्नत ज्ञान का प्रमाण है। जिसमें अलौकिक जड़ें और संबंध हैं। ध्यान करने वाले साधुओं की चेतना अंतरिक्ष और समय से परे सीमाओं तक पहुंचने में सक्षम है। यह मेरे और ब्रह्मांड के द्वंद्व के भ्रम को तोड़ता है।” खालिद उमर लिखते हैं कि मेरा विस्मय इस घटना के भौतिकवाद, सांख्यिकी या भौतिक पहलुओं के बारे में नहीं है। यह इस बारे में नहीं है कि हमारी आंखें क्या देख सकती हैं। यह आकार या संख्या के बारे में नहीं है। जो चीज़ मुझे आश्चर्यचकित करती है वह है (जिसे हम प्राचीन कहते हैं) ब्रह्मांड के साथ मानवता के संबंध का ज्ञान।”महाकुंभ जल्दबाजी में न जायें,भीड़ वाले दिन न जाएँ
तक्षक ने कहा, महाकुंभ जाएं तो सुझाव तौर पर इतना ही कहूँगा कि आप जल्दबाजी में न जायें। भीड़ वाले दिन न जाएँ। भीड़ वाली जगह पर स्नान करने से बचें। इस भाँति अनुभव के तल पर, महाकुंभ अद्भुत घटना है। यह अनुभव ही सनातन की धुरी है। गंगा के प्रांगण में पूर्ण आनंद बंट रहा है। व्यक्ति एक बार उस स्थान के अनुभव से गुजरे। एक बार महाकुंभ जाना आपको पुनः पुनः वापसी का आमंत्रण देगा। महाकुंभ जीवन अनुभव रस है। यह रस अपने आपमें अमृत है। जो सदैव ‘होना’ है। यहांँ न मरना है न मारना है। इस ‘होने’ में सृष्टि का ऐसा अद्भुत अनुभव है जिसे सत् चित् आनंद कहा गया है। इस ‘होने’ में डुबकी, अस्तित्व में गति है। गंगा के प्रांगण में, महाकुंभ में, श्रद्धा, समर्पण और आस्था को देख डच महिला मिरियम द रिडर ने कहा “महाकुंभ की आस्था को सहेजने के लिए मुझे सौ आंखें और चाहिए।”मिरियम द रिडर
सम्प्रति : क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट,- एम्स्टर्डम, नीदरलैंड्सनारी, पर्यावरण और प्रकृति के विषयों के प्रति संवेदनशील और धरती पर जीवन की बेहतरी के लिए बदलाव की अकुलाहट सदा प्रेरित करती है। धरती पर जीवन एक यात्रा है। भारत मेरा दूसरा घर है।