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रूस का 47 साल बाद ऐतिहासिक मून मिशन: लॉन्च किया Luna-25

Russia's Historic Moon Mission: रूस ने अपने मून मिशन पर लूना-25 को सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया है। रूस के लिए यह एक ऐतिहासिक मून मिशन है क्योंकि 47 साल बाद रूस ने चांद पर मून मिशन के तहत लूना-25 को भेजा है।

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जयपुर

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Tanay Mishra

Aug 11, 2023

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Russia launches Luna-25

रूस (Russia) ने आज एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। आज का दौर साइंस और टेक्नोलॉजी का दौर है और समय के साथ साइंस और टेक्नोलॉजी तेज़ी से आगे बढ़ रही है। साइंस के तहत स्पेस और दूसरे ग्रहों पर मिशन भेजे जा रहे हैं। भारत (India) ने भी कुछ दिन पहले ही अपने मून मिशन के तहत चंद्रयान-3 (Chandrayan-3) लॉन्च किया था। अब भारत की राह पर चलते हुए रूस ने भी एक बड़ा कदम उठाया है। रूस ने भी आज अपना मून मिशन लॉन्च किया।


सफलतापूर्वक लॉन्च किया लूना-25

रूस ने आज अपने मून मिशन के तहत सफलतापूर्वक लूना-25 (Luna-25) लैंडर को लॉन्च कर दिया है। रूस की स्पेस एजेंसी रोस्कोस्मोस (Roscosmos) पिछले कुछ समय से इस मिशन की तैयारी में जुटी हुई थी और आज 11 अगस्त, शुक्रवार को भारतीय समयानुसार सुबह करीब 4 बजकर 40 बजे अमूर ओब्लास्ट के वोस्तोनी कॉस्मोड्रोम से इसे सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया। इस मिशन का नाम लूना-ग्लोब (Luna-Glob) भी है और इसके लिए सोयुज 2.1बी (Soyuz 2.1b) रॉकेट का इस्तेमाल किया गया।


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कब पहुंचेगा चांद पर?

जानकारी के अनुसार रूस का लूना-25 लैंडर चांद के साउथ पोल में स्थित बोगुस्लावस्की क्रेटर पर 21 या 22 अगस्त को लैंड करेगा। लूना-25 चांद की सतह से लगभग 100 किलोमीटर ऊपर तीन से सात दिन तक घूमेगा और उसके बाद चांद की सतह पर लैंड करेगा। रिपोर्ट के अनुसार चांद की सतह से 18 किलोमीटर ऊपर पहुंचने के बाद लूना-25 लैंडिंग शुरू करेगा।

रूस का ऐतिहासिक मिशन

रूस का यह मून मिशन एक ऐतिहासिक मिशन है। इसकी वजह है रूस का 47 साल बाद मून मिशन लॉन्च करना। इससे पहले सोवियत संघ ने 1976 में लूना-24 लॉन्च किया था। पहले रूस इसे 2021 में लॉन्च करने वाला था पर यूक्रेन से युद्ध की वजह से रूस के इस मून मिशन में देरी हो गई।


क्या है इस मून मिशन का मकसद?

रूस के इस मून मिशन का मकसद है चांद की सतह का अध्ययन। लूना-25 चांद की सतह की 6 इंच खुदाई करेगा और पत्थर और मिट्टी का सैंपल जमा करेगा। ऐसे में मन में सवाल आना स्वाभाविक है कि ऐसा क्यों? ऐसा क=इसलिए जिससे चांद की सतह पर जमे हुए पानी की खोज की जा सके। इससे भविष्य में इंसान के चांद पर बेस बनाने से एक बड़ी सुविधा होगी कि उन्हें पानी मिलने में मुश्किल नहीं होगी।

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