
पाकिस्तान (Pakistan) के तटीय प्रांत बलूचिस्तान के लसबेला में स्थित हिंगलाज माता मंदिर (Hinglaj Mata Temple) को यहां हिंगलाज देवी (Hinglaj Devi), हिंगुला देवी (Hingula Devi) और नानी का मंदिर (Nani Temple) के नाम से भी जाना जाता है। यह 51 शक्तिपीठों में एक है। ऐसा माना जाता है यहां हिंगोल नदी के तट पर किर्थर पवर्त की गुफा में माता सती का शीश गिरा था। अब यहीं हिंगलाज माता का मंदिर है। इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां हिंदू और मुस्लिम दोनों ही समुदाय के लोग शीश नवाते हैं। हिंगलाज देवी को नाथ संप्रदाय की कुलदेवी भी माना जाता है। हिंगलाज माता मंदिर पाकिस्तान स्थित दो शक्तिपीठों में है। दूसरा शक्तिपीठ कराची के निकट शिवहरकराय है। इसे करवीपुर के नाम से भी जाना जाता है। बताते हैं यहां माता का तीसरा नेत्र गिरा था।
माना जाता है कि रावण का वध करने के बाद ऋषि कुम्भोदर ने भगवान राम को पाप मुक्ति के लिए हिंगलाज माता के दर्शन के लिए कहा था। इसके बाद वे सीता, लक्ष्मण और हनुमानजी के साथ दर्शन करने गए थे। किंवदंती यह भी है कि माता की सेना ने रामजी को सेना सहित रोक दिया था। जब प्रभु राम ने दूत भेजकर इसकी वजह पूछी तो माता ने कहा, वे एक साधारण तीर्थयात्री की भांति आएं। इसके बाद माता उन्हें सभी पापों से मुक्ति प्रदान करती हैं।
हिंगलाज मंदिर पहुंचना अमरनाथ यात्रा से भी ज्यादा कठिन माना जाता है। रास्ते में 1000 फीट ऊंचे-ऊंचे पहाड़, दूर तक फैला रेगिस्तान, जंगली जानवर वाले घने जंगल और 300 फीट ऊंचा मड ज्वालामुखी पड़ता है। यहां अकेले यात्रा की मनाही है, इसीलिए आमतौर पर यहां श्रद्धालु ग्रुप में जाते हैं। यहां सडक़ मार्ग बनने से पहले 200 किमी की यात्रा पैदल करनी पड़ती थी, जिसमें दो से तीन माह का समय लगता था।
Published on:
11 Oct 2024 09:04 am
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