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अध्ययनः डब्ल्यूएचओ के निर्देशों पर अमल से सिजेरियन डिलीवरी में आएगी भारी कमी

विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा निर्देशों को लागू करने से डिलीवरी के दौरान महिलाओं की देखभाल में सुधार होता है और इससे गैरजरूरी सिजेरियन सेक्शन डिलीवरी को कम करने में मदद मिल सकती है। भारत में की गई एक पायलट स्टडी से यह खुलासा हुआ है।

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विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा निर्देशों को लागू करने से डिलीवरी के दौरान महिलाओं की देखभाल में सुधार होता है और इससे गैरजरूरी सिजेरियन सेक्शन डिलीवरी को कम करने में मदद मिल सकती है। भारत में की गई एक पायलट स्टडी से यह खुलासा हुआ है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, दुनिया में पांच में से एक डिलीवरी सिजेरियन सेक्शन से होती है। साथ ही, अनुमान है कि आने वाले दशक में यह संख्या बढ़कर कुल प्रसवों की एक-तिहाई हो जाएगी। गौरतलब है कि, जब मेडिकल कारणों से सिजेरियन सेक्शन यानी ऑपरेशन किया जाता है, तो यह जीवनरक्षक हो सकता है। यह अच्छी मेडिकल केयर का एक जरूरी हिस्सा है, लेकिन इसमें अंतर्निहित जोखिम भी शामिल होते हैं। जबकि, कई अध्ययनों से यह खुलासा हुआ है कि सिजेरियन ऑपरेशन से डिलीवरी गैर मेडिकल जरूरत के भी धड़ल्ले से की जानी लगी हैं।

पहला रेंडमाइज अध्ययन
नेचर मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित यह ताजा स्टडी, डब्ल्यूएचओ के लेबर केयर गाइड यानी प्रसव देखरेख निर्देश (एलसीजी) पर दुनिया का पहला रेंडमाइज ट्रायल है। कर्नाटक के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के शोधकर्ताओं की टीम ने नियमित देखभाल की तुलना में नई एलसीजी रणनीति के अनुसार गर्भवती की देखरेख का मूल्यांकन करने के लिए भारत के चार अस्पतालों में यह पायलट ट्रायल किया।

एलसीजी का क्रियान्वयन आसान
इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और ऑस्ट्रेलिया में बर्नेट इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर जोशुआ वोगेल का कहना है कि, इस अध्ययन से पता चलता है कि डब्ल्यूएचओ के एलसीजी को रुटीन क्लीनिकल केयर में लागू करना संभव है। इसमें व्यस्त, सीमित-संसाधनों की स्थितियां भी शामिल हैं। वोगेल के अनुसार, एलसीजी को दुनिया भर में गर्भवती महिलाओं के लिए क्लीनिकल और सपोर्टिव केयर में सुधार के लिए डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी किया गया था। वोगेल ने कहा कि एलसीजी में अनावश्यक ऑपरेशन से डिलीवरी को कम करने की क्षमता है। यह तो साफ है कि सिजेरियन से माताओं और उनके बच्चों के स्वास्थ्य को खतरा होता है।

जन्म में बढ़ रहा स्वास्थ्यकर्मियों का दखल
सामान्यता यह देखा गया है कि पिछले दिनों स्वास्थ्य कर्मियों और डॉक्टर्स का बच्चे के जन्म में दखल बढ़ा है। इसका परिणाम है कि ऑपरेशन से डिलीवरी बढ़ी हैं, दवाओं से प्रसव पीड़ा को बढ़ाया जाना आम हो रहा है और कई मामलों में एपीसीओटॉमी भी देखी जाती है। वहीं, वागेल का कहना है कि अगर डब्ल्यूएओ के प्रसव देखरेख निर्देश ठीक से लागू किए जाएं तो इससे निश्चित रूप से ऑपरेशन से डिलीवरी के मामलों में कमी आती है।

डब्ल्यूएचओ ने बदल दी थी 'ऐतिहासिक' मान्यताएं
डब्ल्यूएचओ ने 2018 में गर्भवती महिला की देखभाल में सुधार और महिला के प्रसव अनुभव में बेहतरी के लिए 56 अनुशंसाएं जारी की थीं। इसके अंर्तगत मुख्य अनुशंसा ये थी कि प्रसव के पहले स्टेज की परिभाषा को बदला गया है और अलर्ट तथा एकशन लाइन को हटाया गया है। ये बदलाव ये दिखाते हैं कि सक्रिय प्रसव प्रोग्रेस के लिए 'एक सेंटीमीटर प्रति घंटा' का ऐतिहासिक नियम अधिकांश महिलाओं के लिए व्यावहारिक नहीं है और धीमी फैलाव दर प्रतिकूल जन्मपरिणामों से नहीं जुड़ी है। इन सिफारिशों के मद्देनजर, 2020 में डब्ल्यूएचो एलसीजी के नाम से जाना जाने वाला एक 'अगली पीढ़ी' का पार्टोग्राफ विकसित किया गया था।