
India Population
India population growth : अगर भारत की जनसंख्या इसी गति से बढ़ती गई तो वह दिन दूर नहीं जब आगामी बरसों में आबादी के मामले में भारत चीन से इतना आगे निकल जाएगा ( China population ) कि वह कहीं दूर दूर तक भी नजर नहीं आएगा। संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की ओर से जारी किए गए जनसांख्यिकीय पूर्वानुमान (demographic forecast)"विश्व जनसंख्या संभावना 2024" में यह पूर्वानुमान व्यक्त किया गया है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 तक भारत की जनसंख्या (India population) लगभग 1.5 बिलियन (डेढ़ अरब) तक पहुंचने का अनुमान है, जबकि चीन की जनसंख्या स्थिर हो कर लगभग 1.4 बिलियन (अरब) पर रह सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2060 के बाद चीन की जनसंख्या में गिरावट शुरू हो जाएगी, और भारत की जनसंख्या 1.7 बिलियन (अरब)) तक पहुंच सकती है।
यह भविष्यवाणी कितनी सही होगी, इसका निर्धारण उस समय की जन्म देने वाली महिला आबादी (जो बच्चों को जन्म देने में सक्षम होती है) और जन्म दर पर निर्भर करेगा। लेकिन यह सवाल उठता है कि यदि यह भविष्यवाणियाँ 25-30 वर्ष की अवधि से आगे की हैं, तो क्या हम सही ढंग से भविष्य की जनसंख्या का अनुमान लगा सकते हैं, जब उस समय तक उन महिलाओं की संख्या, जिन बच्चियों का अभी तक जन्म नहीं हुई हैं, उनका भी कोई ठोस आंकड़ा नहीं है?
ध्यान रहे कि संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी किए गए "विश्व जनसंख्या संभावना 2024" आंकड़ों में, विभिन्न देशों की जनसंख्या वृद्धि के आंकड़े और भविष्यवाणियां की जाती हैं। इस रिपोर्ट में विशेष रूप से भारत और चीन की जनसंख्या के बारेमें विस्तार से जानकारी दी जाती है, जो दुनिया की सबसे बड़ी और प्रभावशाली जनसंख्या वाले देश हैं। इस रिपोर्ट का उद्देश्य यह समझना होता है कि आने वाले दशकों में जनसंख्या में क्या बदलाव होंगे, और इन बदलावों का वैश्विक और स्थानीय स्तर पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
जहां तक भारत और चीन के बीच जनसंख्या की बात है तो दोनों देशों में आबादी का अंतर पिछले कई दशकों से एक चर्चा का विषय रहा है। चीन, जो कभी दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश था, अब भारत के बाद दूसरा स्थान रखता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार, भारत जल्द ही दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा, जबकि चीन की जनसंख्या अब स्थिर हो चुकी है और उसमें धीरे-धीरे गिरावट आ रही है।
भारत और चीन दोनों देशों की जनसंख्या में पिछले सौ वर्षों में असाधारण वृद्धि देखी गई है। सन 1950 में, जब संयुक्त राष्ट्र ने पहली बार विश्व जनसंख्या के आंकड़े पेश किए थे, तब चीन और भारत की जनसंख्या क्रमशः 0.5 और 0.4 बिलियन थी। इस दौरान, चीन ने अपने एक-child policy (एक बच्चे की नीति) लागू की ग्ई, जिसका उद्देश्य जनसंख्या वृद्धि नियंत्रित करना था, जबकि भारत ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए विभिन्न योजनाएं अपनाईं। इसके बावजूद, दोनों देशों में तेज़ी से जनसंख्या वृद्धि में आई।
सन 1960 और 1970 के दशक में भारत और चीन की जनसंख्या में औसतन 2% से अधिक वार्षिक वृद्धि हुई, जबकि 1980 और 1990 के दशक में चीन ने अपने जनसंख्या नियंत्रण उपायों के परिणामस्वरूप वृद्धि दर को नियंत्रित किया। हालांकि, भारत में जनसंख्या वृद्धि की दर में कोई विशेष गिरावट दर्ज नहीं की गई, और सन 2000 के बाद भी यह वृद्धि लगातार जारी रही।
हम जानते हैं कि किसी भी देश की जन्म दर उस देश की जन्म देने वाली महिलाओं की संख्या पर निर्भर करती है। हालांकि, 2060 के बाद की भविष्यवाणी करते समय, हम 20-35 वर्ष की आयु वाली उपजाऊ महिलाओं की संख्या पर विचार करते हैं, लेकिन उन महिलाओं के बारे में अनुमान कैसे लगाया जा सकता है जो अभी पैदा भी नहीं हुई हैं?
यहां एक महत्वपूर्ण समस्या यह आती है कि भविष्यवाणी उस समय की जनसंख्या के बारे में की जाती है, जबकि उस समय की जन्म दर को प्रभावित करने वाली प्रमुख स्थितियां अभी तक उत्पन्न नहीं हुई हैं। उपजाऊ महिलाओं की संख्या का अनुमान वर्तमान में पैदा हो रही जनसंख्या के आधार पर लगाया जाता है, लेकिन किसी भी देश में जनसंख्या परिवर्तन बहुत जटिल और अनेक कारकों पर निर्भर करता है, जैसे स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति, शिक्षा, महिला सशक्तीकरण, और जन्म दर को प्रभावित करने वाली सांस्कृतिक और सामाजिक मान्यताएं आदि।
भारत और चीन की जनसंख्या वृद्धि में विभिन्न प्रकार के कारण हैं। चीन में जनसंख्या वृद्धि नियंत्रित करने के लिए कठोर नीति लागू की गई थी, जबकि भारत में, जनसंख्या नियंत्रण की योजनाएं और जागरूकता बढ़ाने के प्रयास किए गए हैं। दोनों देशों में जनसंख्या वृद्धि के परिणामस्वरूप कई सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
चीन में, वृद्धावस्था की समस्या तेज़ी से बढ़ रही है, क्योंकि जनसंख्या वृद्धि हो रही है और युवाओं की संख्या घट रही है। वहीं भारत में, उच्च जनसंख्या वृद्धि दर के बावजूद, युवा श्रमिक वर्ग की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है, जो भविष्य में आर्थिक विकास में योगदान कर सकता है, लेकिन यह भी एक चुनौती है कि इस बड़े श्रमिक वर्ग को रोजगार और संसाधनों के अवसर कैसे प्रदान किए जाएं।
संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार, हम भविष्यवाणी से किसी हद तक एक एक तथ्य प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन यह केवल अनुमानों पर आधारित है। भविष्यवाणियाँ अक्सर परिदृश्यों पर आधारित होती हैं, जो बदल सकती हैं, जैसे कि समाज में परिवर्तन, नीति निर्णय, और प्राकृतिक आपदाएँ। अगर हम 2060 या उससे आगे की जनसंख्या पर विचार करें, तो यह स्पष्ट है कि किसी भी पूर्वानुमान को सटीक मानना कठिन है, क्योंकि आने वाली पीढ़ियाँ क्या सोचेंगी, उनकी जीवनशैली कैसी होगी, और समाज में कौन से बदलाव होंगे, यह सभी बहुत अप्रत्याशित हैं।
बहरहाल संयुक्त राष्ट्र के "विश्व जनसंख्या संभावना 2024" के आंकड़े महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इन अनुमानों को सटीकता से समझना और भविष्यवाणी करना चुनौतीपूर्ण है। हमें यह समझने की जरूरत है कि जनसंख्या वृद्धि या गिरावट केवल एक सांस्कृतिक या सामाजिक बदलाव का परिणाम नहीं होती, बल्कि यह स्वास्थ्य, शिक्षा, अर्थव्यवस्था, और अन्य कई जटिल कारकों के साथ जुड़ी होती है। भविष्यवाणी करने से पहले, हमें उस समय की उपजाऊ महिला आबादी, नीति परिवर्तनों और वैश्विक घटनाओं पर भी विचार करना होगा, जो भविष्य में जनसंख्या के आकार को प्रभावित करेंगे।
Published on:
17 Feb 2025 07:08 pm
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