
Shia and sunni society
Muslims: इस्लाम में शिया ( Shia) और सुन्नी ( Sunni)दो प्रमुख संप्रदाय हैं। सुन्नी और शिया अक्सर सुर्खियों में रहते हैं आइए दोनों में अंतर को विस्तार से समझें।
सन् 632 ईस्वीं में आखिरी पैगंबर हजरत मुहम्मद के दुनिया से पर्दा लेने के बाद जिन लोगों ने ग़दीर की पैग़ंबर मुहम्मद की वसीयत के मुताबिक अपनी भावना से हज़रत अली को अपना इमाम (धर्म गुरु) और ख़लीफा (नेता) चुना, वो लोग शियाने अली (अली की टोली वाले) कहलाए, जो आज शिया कहलाते हैं।
सुन्नी शब्द अरबी के सुन्नाह (अरबी: سنة) से आया है, जिसका अर्थ (पैगंबर मोहम्मद) की बातें और कर्म या उनके आदर्श है। सामान्य अर्थों में सुन्नी -पवित्र पैगंबर मुहम्मद स० के इस दुनिया से पर्दा करने के बाद जिन लोगों ने हजरत मुहम्मद के बताए गए नियमों का पालन किया और और उन्हीं के बताए रास्ते पर आगे बढ़े, वो सुन्नी कहलाए।
आम तौर पर लोग मुसलमानों ( Muslims) के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं रखते। प्रामाणिक जानकारी के अनुसार इस्लाम के दो प्रमुख समुदायों शिया और सुन्नी में खटास की शुरुआत इस्लामी पैग़म्बर मुहम्मद के दुनिया से जाने के बाद, सन 632 में आई,तब इस्लाम के उत्तराधिकारी पद को लेकर विवाद हुआ।
शिया और सुन्नी समुदाय के धर्म गुरु और उनकी इबादत।
कुछ लोगों का कहना था कि पैगंबर हजरत मुहम्मद (صلى الله عليه وآله وسلم ) साहब ने अपने चचेरे भाई और दामाद हजरत अली को इस्लाम का वारिस बनाया है (शिया), जबकि अन्य लोगों ने माना कि पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब ने सिर्फ़ हज़रत अली का ध्यान रखने के लिए कहा है और असली वारिस अबू बकर को होना चाहिए (सुन्नी)।
जो लोग अली के उत्तराधिकार के समर्थक थे, उन्हें शिया कहा गया, जबकि अबू बकर के नेता बनाने के समर्थकों को सुन्नी कहा गया। ध्यान रहे कि वास्तव में अबू बकर को ख़लीफ़ा बनाया गया और इनके दो ख़लीफ़ाओं के बाद ही हजरत अली को ख़लीफ़ा बनाया गया। इससे दोनों पक्षों में लड़ाई जारी रही। दूसरे, तीसरे और चौथे ख़लीफ़ाओं की हत्या कर दी गई थी । इन खलीफ़ाओं के नाम हैं उमर, उस्मान और अली। शिया, अली से अपने नेताओं की गिनती करते हैं और अपने नेता को खलीफ़ा के बदले इमाम कहते हैं।
पैगंबर हजरत मुहम्मद के नेतृत्व में पूरा अरबी प्रायद्वीप एक मत और साम्राज्य के अधीन पहली बार आया था। हज़रत अली (जो मुहम्मद साहब के चचेरे भाई और दामाद दोनों थे) ही हजरत मुहम्मद साहब के असली उत्तराधिकारी थे और उन्हें ही पहला ख़लीफ़ा बनना चाहिए था ,ऐसा विश्वास रखने वाले शिया हैं ,हालांकि ऐसा हुआ नहीं और उनको तीन और लोगों के बाद ख़लीफ़ा, यानि प्रधान नेता, बनाया गया। अली और उनके बाद उनके वंशजों को इस्लाम का प्रमुख बनना चाहिए था, ऐसा विश्वास रखने वाले शिया हैं।
सुन्नी मुसलमान मानते हैं कि हज़रत अली सहित पहले चार खलीफ़ा (अबू बकर, उमर, उस्मान और हज़रत अली) सतपथी (राशिदून) थे, जबकि शिया मुसलमानों का मानना है कि पहले तीन खलीफ़ा इस्लाम के गैर-वाजिब यानी अवैध प्रधान थे और वे हज़रत अली से ही इमामों की गिनती शुरू करते हैं और इस गिनती में ख़लीफ़ा शब्द का प्रयोग नहीं करते। सुन्नी अली को (चौथा) ख़लीफ़ा मानते है। हालांकि अली या उनके परिवार में से किसी ने पहले तीन खलीफा का कभी विरोध नही किया और पहले तीन खलीफा की मौत के बाद जब अली मुसलमानों के खलीफा बने, तब भी उन्होंने यह दावा नहीं किया कि उन्हे पहला खलीफा होना चाहिए था, ये सिर्फ उत्तराधिकार का मामला था और हजरत अली भी कई वर्षों के बाद ख़लीफ़ा बने, पर इससे मुस्लिम समुदाय में विभेद आ गया जो सदियों तक चला।
भारत में सुन्नी समुदाय के लोग अधिक हैं। सुन्नी मुस्लिम इस्लाम के सबसे बड़े संप्रदाय सुन्नी इस्लाम को मानने वाले मुस्लिम हैं। सुन्नी इस्लाम को एहले सुन्नत व'ल जमाअत (अरबी: أهل السنة والجماعة "(मुहम्मद स. के आदर्श लोग और समुदाय)" या संक्षिप्त में एहल अस- सुन्नाह (अरबी: أهل السنة) भी कहते हैं। सुन्नी शब्द अरबी के सुन्नाह (अरबी: سنة) से आया है, जिसका अर्थ (पैगंबर मोहम्मद) की बातें और कर्म या उनके आदर्श है। सामान्य अर्थों में सुन्नी -पवित्र पैगंबर मुहम्मद के इस दुनिया से पर्दा करने के बाद जिन लोगों ने मुहम्मद स० की ओर से बताए गए नियमों का पालन किया और उन्हीं के बताए रास्ते पर आगे बढ़े, वो सुन्नी कहलाए।
इस समय सुन्नी मुस्लिम 90% है 5 अलग-अलग वर्गों को मिलाकर बनते हैं।
हनफ़ी सुन्नी
हऩफी इमाम अबू हनीफा को मानने वाले हैं। भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश मे अधिकतर सुन्नी मुसलमान इस्लाम की इसी स्कूल ऑफ थॉट का अनुसरण करते हैं।
मालिकी सुन्नी
मालिकी इमाम मालिक के मानने वाले हैं, अधिकतर उत्तरी अफ्रीकी देशो के सुन्नी इस पंथ का अनुसरण करते हैं।
हम्बली सुन्नी
इमाम अहमद बिन हंबल के अनुसरणकर्ता हम्बली हैं और अधिकतर अरब देशो में अनुसरण करने वाले मिलते हैं।
शाफ़ई सुन्नी
शाफई इमाम शाफई के मानने वाले हैं।
सलफ़ी सुन्नी
अहले हदीस सलफ़ी सुन्नी इन चारों पंथो से अलग सीधे हजरत मुहम्मद को अपना इमाम मानते है और जैसे मुहम्म्मद साहब के साथी अनुयायी जिन्हे सहाबा कहा जाता है, उन्होंने जो मतलब क़ुरान और मोहम्मद स. की बातो का समझा, उसे इस्लाम की सही शिक्षा और पंथ मानते है। हालांकि सलफ़ी सुन्नी सभी इमामों का सम्मान करते हैं, मगर अपना इमाम सिर्फ पैगंबर हजरत मुहम्मद को मानते हैं।
Updated on:
27 Jul 2024 07:02 pm
Published on:
26 Jul 2024 11:23 am
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