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डब्ल्यूटीओः चीन और अमरीका की मनमानी पर भारत ने लगाई लगाम

विश्व व्यापार संगठन के मंच पर भारत को चीन और अमरीका की मनमानी पर लगाम लगाने में सफलता मिली है। डब्ल्यूटीओ के शीर्ष निकाय मंत्रिस्तरीय सम्मेलन की अबूधाबी में चल रही 13वीं बैठक में भारत और दक्षिण अफ्रीका ने चीन की तरफ से पेश निवेश सुविधा विकास समझौते (आइएफडी) योजना पर रोक लगा दी।

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विश्व व्यापार संगठन के मंच पर भारत को चीन और अमरीका की मनमानी पर लगाम लगाने में सफलता मिली है। डब्ल्यूटीओ के शीर्ष निकाय मंत्रिस्तरीय सम्मेलन की अबूधाबी में चल रही 13वीं बैठक में भारत और दक्षिण अफ्रीका ने चीन की तरफ से पेश निवेश सुविधा विकास समझौते (आइएफडी) योजना पर रोक लगा दी। अब इस प्रस्ताव का उल्लेख अंतिम परिणाम में नहीं होगा। आइएफडी पर रोक के बाद चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव और इससे जुड़े स्वार्थ पर नकेल कसी जा सकेगी। साथ ही, भारत ने कहा है कि डब्ल्यूटीओ की विवाद निपटान प्रणाली (अपीलेट ट्रिब्यूनल) को बहाल करना उसकी शीर्ष प्राथमिकता है। डब्ल्यूटीओ की मंत्रिस्तरीय बैठक में नए समझौतों को तभी अंतिम रूप दिया जा सकेगा, जब अमरीका अपीलेट ट्रिब्यूनल के गठन को लेकर समझौते के प्रयासों को रोकना बंद कर देगा। भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल एक उच्च स्तरीय दल के साथ 26 से 29 फरवरी तक चलने वाले मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में शिरकत कर रहे हैं। फिलहाल इस सम्मेलन में किसी अहम समझौते पर सहमति नहीं बन सकी है। इसको देखते हुए वार्ता को अब एक दिन और बढ़ा दिया गया है और यह अब शुक्रवार को समाप्त होगी।

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव से है आइएफडी का संबंध
चीन के नेतृत्व वाले 123 सदस्यीय समूह ने इस (आइएफडी) को आगे बढ़ाने का प्रयास किया। हालांकि, भारत ने फोरम के समक्ष अपना दृढ़ रुख दिखाया और कहा कि आइएफडी गैर-व्यापार मुद्दा है। भारत के साथ-साथ दक्षिण अफ्रीका ने भी डब्ल्यूटीओ के मंच पर आइएफडी पर रोक लगाने की मांग की। आइएफडी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ) में शामिल देशों के बीच एक समझौता है, जिसको 2017 में अपनाया गया था। इसमें निहित स्वार्थों को देखते हुए आइएफडी पर रोक बेहद अहम मानी जा रही है।

अमरीका रोक रहा न्यायाधीशों की नियुक्ति
भारत की ओर से याद दिलाया गया कि 12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में डब्ल्यूटीओ सदस्यों ने संकल्प किया था कि 2024 तक सभी सदस्यों के लिए पूरी तरह से और अच्छी तरह से काम करने वाली विवाद निस्तारण प्रणाली सुलभ हो सकेगी। गौरतलब है कि डब्ल्यूटीओ में विवाद निपटान प्रणाली का अपीलीय निकाय दिसंबर, 2019 से ही निष्क्रिय बना हुआ है। इसकी वजह है अमरीका की ओर से इसके सदस्यों या न्यायाधीशों की नियुक्ति की राह में रोड़े अटकाए जाना। भारत का कहना है कि, इससे डब्ल्यूटीओ की समग्र विश्वसनीयता और नियम-आधारित व्यापार व्यवस्था पर ही सवाल उठे हैं।

खड़े की जा रहीं गैर-व्यापारिक बाधाएं
भारत की ओर कहा गया कि अमरीका के नेतृ्त्व में वैश्विक उत्तर के देश सस्टेनेबिलिटी और लैंगिक समानता जैसे नए मुद्दों को चर्चा का हिस्सा बनाना चाहते हैं। इनके नाम पर विकासशील और गरीब देशों के निर्यात पर कई गैर-व्यापारिक रोक लगाते हैं, जिससे मुक्त व्यापार में बाधा पहुंचती है। साथ ही, अमीर देश विकासशील देशों के बाजार में बेरोकटोक प्रवेश चाहते हैं। हम इसकी अनुमति नहीं दे सकते। हकीकत ये है कि अमीर देश सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, पर उनको अमली जामा नहीं पहनाया जाता है।

मछली पालन और डिजिटल ट्रेड पर भारत ने रखी स्पष्ट मांग
भारत ने साफ कर दिया है कि सस्टेनेबिलिटी पर चर्चा के दायरे में मछली पालन को लाना और इससे जुड़ी सब्सिडी के ऊपर कोई भी समझौता तभी संभव है जब यह समान लक्ष्यों के क्षमता अनुसार जवाबदेही के आधार पर हो। साथ ही भारत और दक्षिण अफ्रीन ने डिजिटल ट्रेड टैरिफ पर मौजूदा रोक को आगे बढ़ाने पर भी दृढ़ता से जोर दिया है।


थाईलैंड से एमएसपी पर तनातनी
अबूधाबी में थाईलैंड और भारत के बीच उस समय तनाव की स्थिति पैदा हो गई जब चर्चा के दौरान थाईलैंड के राजदूत ने भारत पर आरोप लगा दिया कि भारत अपनी राशन व्यवस्था के लिए सब्सिडी पर चावल आदि अनाज खरीदता है। थाई राजदूत ने कहा कि भारत सब्सिडी वाला चावल का उपयोग करके एक्सपोर्ट मार्केट पर हावी हो जाता है। यह विश्व व्यापार के नियमों के खिलाफ है। इस बयान के विरोध में भारतीय पक्ष अब उन बैठकों में हिस्सा नहीं ले रहा है जहां थाईलैंड मौजूद है। गौरतलब है कि कृषि सब्सिडी पर अब डब्ल्यूटीओ दो हिस्सों में बंट गया है। भारत के साथ कृषि प्रधान विकासशील और गरीब देश हैं, वहीं थाईलैंड के बयान का अमरीका, कनाडा और आस्ट्रेलिया ने स्वागत किया है।