अभियान चलाया था यह जानकरी सिविल सोसाइटी के सचिव अनिल शर्मा और राजीव सक्सेना ने दी। उन्होंने बताया कि पहले हुई बैठकों और केन्द्रीय मंत्री जेवर के ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट को ताज इंटरनेशनल एयरपोर्ट नाम से ही संबोधित करते रहे थे। आगरा के राजनीतिज्ञ तथा ट्रेड लीडर्स तक जेवर एयरपोर्ट प्रोजेक्ट को लेकर होने वाली चर्चाओं में ताज इंटरनेशनल प्रोजेक्ट के हाथ से चले जाने की बात कहकर अफसोस जताते रहे थे। यह करिश्मा एक दिन में नहीं हुआ। इसके लिए सिविल सोसायटी आगरा ने अभियान चलाया था।
हाईकोर्ट में जनहित याचिका इलाहाबाद उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायधीश की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष ‘जनहित याचिका‘ के माध्यम से कानूनी लडाई भी लड़ी जा रही है। इसमें प्रदेश के एडवोकेट जनरल को जवाब देना है कि ताजमहल आगरा में है, फिर क्यों उसके नाम पर 144 किमी दूरी पर बनाये जाने वाले हवाई अड्डे का नाम ‘ताज इंटरनेशनल एयरपोर्ट’ रखा जा रहा है। यही नहीं, इस जनहित याचिका के माध्यम से सिविल सोसायटी आगरा की ओर से यह भी जानने का प्रयास किया गया है कि जब जेवर में एयरपोर्ट नेशनल कैपिटल जोन की जरूरतों को पूरा करने के लिये बनाया बताया जा रहा है, तो फिर ताजमहल का नाम क्यों घसीटा जा रहा है?
पर्यटक भ्रमित नहीं होगा सिविल टर्मिनल आगरा के संबध में विचराधीन याचिका में जिन बिन्दुओं में सरकार को जबाब देना है उनमें विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की वह अंतरराष्ट्रीय नीतिगत सहमति भी है, जिसके तहत बौद्धिक और उत्पाद विशेष की स्थानीयता को खास महत्व दिया जाना स्वीकारा गया है। भारत सरकार इसके प्रति प्रतिबद्ध है। यही नहीं केन्द्र और राज्यों की सरकार पेड़ा, बरफी, ताला आदि के लिए स्थानीय महत्ता का कैम्पेन चला रही है। वहीं दूसरी ओर ताजमहल की लोकेशन को लेकर भ्रमित किया जा रहा है। खुशी इस बात की है कि केन्द्र सरकार ने बात मान ली है। कम से कम ताजमहल की लोकेशन को लेकर टूरिस्ट महज भ्रम के कारण 144 कि.मी. दूर लैंड करने को बाध्य नहीं होगा।