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Guru Purnima 2019 राधास्वामी मत के गुरु दादाजी महाराज के अनमोल वचन

locationआगराPublished: Jul 16, 2019 11:52:04 am

Submitted by:

Bhanu Pratap

जो शब्द रता, शब्द भेदी और शब्द मार्गी गुरु है, उन्हीं से कारज बनेगा।
राधास्वामी नाम कुलमालिक का नाम है, जिसकी धुन घट में झंकृत है।
श्रेष्ठता उसी की है, जिसने अपनी सुरत चैतन्य शक्ति को जाग्रत किया है।

dadaji maharaj

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आगरा। आज गुरुपूर्णिमा (Guru Purnima 2019 ) है। राधास्वामी (Radhasoami) मत के लिए गुरु पूर्णिमा का खास महत्व है। राधास्वामी मत के आदि केन्द्र हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा में हजारों सत्संगी आए हुए हैं। राधास्वामी मत के अधिष्ठाता वर्तमान आचार्य प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर (Prof Agam Prasad mathur) (दादाजी महाराज – dadaji maharaj) के प्रवचन हजूरी भवन में होते हैं। आइए जानते हैं दादाजी महाराज के अनमोल वचन।
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1.राधास्वामी मत में कुलमालिक का नाम सतपुरुष राधास्वामी (Radhasoami) है और उनका नाम ऊंचे से ऊंचा है, जो सदा एकरस कायम है, जहां आनंद ही आनंद है, प्रेम ही प्रेम है, किसी किस्म की कमी और अभाव नहीं है। सतपुरुष राधास्वामी हम सबके माता-पिता हैं। यह जीव उनका अंश व पुत्र है, जो काल के कृत्रिम जाल में फँस गया है।
2.आजकल जमाना खोज का है और खोज युगों से जारी है। अतः जिस जीव को शब्द की खोज करनी है, उसे पहले अपने वक्त के पूरे गुरु को खोजना होगा और जब वह मिल जाए तो उनके द्वारा बताए हुए संकेतों और भेद का अभ्यास करना होगा।
3.हजूर महाराज बहुत प्यारे हैं। हम सबके रखवारे हैं। हमारी आँखों के तारे हैं। हमारे माता-पिता हैं। ऐसे माता-पिता जो हर वक्त संग हैं, जिनका कभी वियोग नहीं है। जिन्होंने अति दया करके चरनों में खींचा है और निज कर चरनों की दात बख्शी है। हजूर महाराज में प्रेम की विलक्षण शक्ति थी। साक्षात राधास्वामी दयाल थे और प्रेम की दात भरपूर लुटा रहे थे।
4.जो शब्द रता, शब्द भेदी और शब्द मार्गी गुरु है, उन्हीं से कारज बनेगा। संतमत में अंतरमुख साधना पर जोर दिया गया है। सतगुरु खुद शब्द के माहिर और ज्ञानी हैं। उनके संग तुम भी एक दिन शब्द के माहिर और ज्ञानी हो जाओगे।
5.नमन से नयन मिलते हैं, तभी काम चलता है। संत में आंखों की कार्यवाही है। सैन बैन में सारभेद समझाया जाता है।

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6.राधास्वामी नाम कुलमालिक का नाम है, जिसकी धुन घट में झंकृत है। जो कोई इसको धुन्यात्मक नाम नहीं मानेगा और सुमिरन नहीं करेगा, उसका पूरा उद्धार नहीं होगा।
7.अफसोस की बात है कि राधास्वामी मत ग्रहण करने के बाद भी लोग अभिमान नहीं छोड़ते हैं। अपनी बिरादरी, कुल, कुटुम्ब की श्रेष्ठता की बात करते हैं।

8.अमीरी-गरीबी का भेदभाव संतों के दरबार में नहीं है। राधास्वामी मत के अनुसार, अमीरी की परिभाषा यह है कि जिस व्यक्ति के अंदर मालिक के चरनों का प्यार अधिक से अधिक है, वही अमीर है और जिसमें कम से कम, वह अमीरी की रेखा से नीचे है। जो अपने को निहायत दीन समझता है, वह गरीबी की रेखा से ऊपर है।
9.यहां तो फकीरी रंग है और फकीर अपनी मौज में रहता है, वह दुनिया की चिन्ता नहीं करता।

10.राधास्वामी दयाल का सख्त हुकुम है कि कोई भी अपने घर की महिलाओं के संग बुरा व्यवहार न करे। लड़के-लड़कियों में जो भेद मान लिया गया है, वह हटना चाहिए। स्त्री और पुरुष दोनों को अपने व्यवहार में परिवर्तन करना होगा। औरतों को अपनी जबान पर और पुरुषों को अपने हाथ पर काबू करना होगा।
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11.दुनिया में जो समता के सिद्धांत की बात कही गई है, उसका सबसे बड़ा नमूना मालिक के दरबार में मिलता है। मालिक प्रेम का भंडार हैं और इस भंडार से मिलने के लिए लोग भंडारे में आते हैं।
12.स्वामी जी महाराज ने निराली भक्ति की चर्चा की है। निराली भक्ति से मतलब उस भक्ति से है, जो संतों के आगमन के बाद जारी हुई। संतों ने चौथे लोक की बात बताई और सुरत चैतन्य शक्ति को जाग्रत करने की बात कही और बताया कि भक्ति तन की नहीं, मन की नहीं, धन की नहीं, वरन सुरत की है। पिछले संतों ने सतपुरुष राधास्वामी की तरफ संकेत तो दिया लेकिन उस धाम और नाम का स्पष्ट रूप स प्रकट नहीं किया तो जानिए कि जो राधास्वामी मत में न्यारी भक्ति है, वह स्वयं राधास्वामी दयाल ने ही भक्त बनकर दिखाई।
13.कोई जन्म से बड़ा नहीं होता है। श्रेष्ठता उसी की है, जिसने अपनी सुरत चैतन्य शक्ति को जाग्रत किया है। इसलिए संतों के दरबार में जाति के हिसाब से, वर्णाश्रम के हिसाब से सब बराबर हैं। लिहाजा हजूर महाराज और स्वामी जी महाराज ने अपने सत्संग सबके लिए खोल दिया और यही आम सत्संग है।
14.राधास्वामी मत जड़वत मत नहीं है। यहां पर किसी पुरानी रीति से नहीं बांधा जाता है। जो कोई पुरानी रीति से बंधा है, उसे ऐसे बंधन तोड़ने के साफ आदेश हैं।

15.सच्चे उद्धार और सच्ची मुक्ति का साधन सुरत शब्द अभ्यास है। शब्द जहाज पर ही बैठकर मालिक के धाम पहुंचा जा सकता है और जीव ऐसा पूंजीपति बन सकता है जो खुद भी कमावे और दूसरों को बांटे। यह आध्यात्मिक समाजवाद है।
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