आगरा के हरीपर्वत चौराहे पर पत्रिका टीम की नजर गोद में बच्चा लिये और मैले कपड़े पहने हुए एक महिला पर पड़ी। इसके साथ छोटी – छोटी तीन बच्चियों और भी थीं। पत्रिका रिपोर्टर इस महिला की ओर बढ़ा, तो ये महिला पहले तो डर से सहम गई। कुछ बोलने को तैयार नहीं थी। बोलती भी कैसे भीख मांगकर अपने बच्चों का पेट भरना था। तीनों बच्चे भूखे थे। पास की एक दुकान से महिला की बच्चियों के लिए कचौड़ी दिलाई गईं, तो इस महिला को विश्वास हुआ और महिला बात करने के लिए तैयार हुई।
पत्रिका रिपोर्टर को इस महिला ने अपना नाम जरीना बताया। जरीना ने बताया कि भीख मांगकर अपना और बच्चों का पेट पालती है। पत्रिका रिपोर्टर ने जब जरीना से पूछा कि क्या वह आजादी या 15 अगस्त को क्या होता है, इसका मतलब जानती है, तो जरीना पहले तो चुप हो गई, बाद में बोली कि पढ़ी लिखी नहीं है, उसे क्या मालूम क्या होता है, 15 अगस्त, उसके लिए तो हर दिन एक समान है।
पत्रिका रिपोर्टर ने जरीना की बेटी जैसमिन, नजराना और अलीशा से जब पूछा कि पढ़ने जाते है, तो इन बच्चियों ने इंकार किया, बताया कि पिता गुब्बारे बेचते हैं। जेसमीन से जब पूछा कि 15 अगस्त को क्या होता है, तो पहले तो बड़ी ही उत्सुकता के साथ बोली हां मालूम है, रक्षाबंधन। फिर लगा कुछ गलत बोला, तो बोली मुझे नहीं मालूम क्या होता है 15 अगस्त को। उसकी दोनों बहनों का भी न में जवाब था।