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आगरा। राधास्वामी सत्संग के अधष्ठिाता परम पुरुष पूरनधनी हुजु़र राधास्वामी दयाल ने दो सौ साल पहले मोहल्ला पन्नी गली 24 अगस्त वर्ष 1818 (8 भाद्र कृष्ण पक्ष अष्टमी संवत 1875 वक्रिमी) को रात के 12.30 बजे अवतार लिया था। उनके प्रगट होने के 200वें वर्ष को सत्संगीजन द्विशताब्दी जन्मोत्सव पर्व के रूप में जन्माष्टमी 2017 से जन्माष्टमी 2018 तक देश विदेश में धूमधाम से मना रहे हैं।
पूरे वर्ष विभिनन भक्ति संगीत
यह पर्व राधास्वामी मत के समस्त अनुयायियों के लिए अति पावन एवं स्मरणीय है। पूरे वर्ष विभिन्न भक्ति संगीत, प्रभात और संध्या फेरियों, सांस्कृतिक कार्यक्रम, रुहानी कव्वालियां, सेमिनार एवं कार्यशालाएं, अन्ताक्षरी एवं क्विज प्रतियोगिताएं, खेलकूद प्रतियोगिताएं तथा झाकियों आदि का सिलसिला चलता रहा। पूरे वर्ष दयालबाग एवं देश-विदेश की 500 ब्रांचों में वातावरण आध्यात्मिक एवं भक्तिरस से परिपूर्ण रहा। राधास्वामी मत के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज का अवतरण के खास दिन पर आज स्वामीजी महाराज की परम समाध पर शुक्रवार सुबह सत्संग करने के बाद कलश के शीर्ष भाग पर क्राउन लगाया गया।
खत्री परिवार में हुआ था जन्म
राधास्वामी मत के संस्थापक स्वामीजी महाराज का जन्म खत्री परिवार में हुआ। वह महाराज शिवदयाल सिंह के नाम से मशहूर हुए। उनके पिता सेठ दिलवाली सिंह थे। बहुुत ही छोटी उम्र से स्वामीजी महाराज ने आध्यात्मिक साधनों में तीव्र अभिरुचि प्रकट की। जब वे केवल छह वर्ष के थे तब प्रतिदिन प्रात: स्नान के पश्चात आध्यात्मिक साधनों में बैठते थे। स्वामी जी महाराज का पूरा परिवार तुलसी साहब का शष्यि था और सतगुरू की भक्ति से पूरी तौर पर वाकिफ था। स्वामीजी महाराज और तुलसी साहब की गु़फ्तगू हुई उस वक्त तुलसी साहब ने स्वामीजी महाराज से सवाल किया कि त्रिकुटी के आगे कौन मुकामात है, इस पर स्वामीजी महाराज ने जवाब दिया कि त्रिकुटी के आगे मुकाम हैं: सुन्न, महासुन्न, भंवरगुफा, सत्तलोक, अलखलोक, अगमलोक व राधास्वामी धाम। इस गु़फ्तगू के बाद तुलसी साहब ने घरवालों से कहा कि तुम्हारे यहां कुल मालिक का अवतार आ गया है, अब मैं जाता हूं और फिर तुलसी साहब गुप्त हो गये।
Updated on:
24 Aug 2018 06:35 pm
Published on:
24 Aug 2018 06:34 pm
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