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Ahmedabad News, Banaskantha Palanpur News : पहली बार भादरवी पूनम मेला रद्द, आज अंबाजी मंदिर बंद

कोरोना महामारी के चलते 300 वर्ष के इतिहास में...

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Ahmedabad News, Banaskantha Palanpur News : पहली बार भादरवी पूनम मेला रद्द, आज अंबाजी मंदिर बंद

अंबाजी मंदिर।

- राजेन्द्र धारीवाल

पालनपुर. उत्तर गुजरात के बनासकांठा जिले की दांता तहसील में स्थित विख्यात अंबाजी मंदिर भी इस वर्ष कोरोना महामारी के चलते 300 वर्षों के इतिहास में पहली बार सरकार की ओर से बुधवार को भादरवी पूर्णिमा का मेला रद्द रहेगा। इसे लेकर मंदिर भी बंद किया गया है।
प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले भारदवी पूर्णिमा के मेले के अवसर पर अंबाजी के सभी मार्गों पर मां अंबाजी के भक्त पदयात्री नजर आते थे। लाखों श्रद्धालु व रंग-बिरंगी पोषाक सागर के हिलोरों के समान दिखने के साथ ही पर्वतों के बीच सडक़ मार्ग मां अंबाजी के 'बोल मारी अंबे, जय-जय अंबे' नाद से गुंजायमान होते थे, लेकिन इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण मार्ग सूने रहे।

51 शक्तिपीठों में शामिल

अरवल्ली की पर्वत श्रृंखला में स्थित अंबाजी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। पुराण में उल्लेख के अनुसार दक्ष प्रजापति की ओर से यज्ञ का आयोजन किया गया, लेकिन दामाद भगवान शंकर को छोडकर सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया। व्यथित होकर सती देवी भी पिता की ओर से आयोजित यज्ञ में पहुंची और वहां अपने पति भगवान शंकर की निंदा सुनकर यज्ञ कुंड में कूदकर प्राण त्याग दिए।
क्रोधित होकर भगवान शिव ने सती देवी की देह को देखकर तांडव किया और निश्चेतन देह को कंधे पर लेकर त्रिलोक घूमने लगे। इससे सृष्टि का नाश होने के भय से भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती देवी के शरीर के टुकड़े कर दिए। यह टुकड़े पृथ्वी पर अलग-अलग स्थानों पर गिरे। शरीर व आभूषणों के भाग 51 स्थानों पर गिरे, उन प्रत्येक स्थानों पर शक्तिपीठ की स्थापना हुई। इन सभी शक्तिपीठों में आरासुर के अंबाजी स्थित शक्तिपीठ पर सती देवी का हृदय गिरने के कारण यह प्राचीन शक्तिपीठों में सिरमौर है।

मूर्ति के स्थान पर स्वर्णजडि़त विशा यंत्र के श्रृंगार होता है माताजी की छवि का आभास

अंबाजी का मूल मंदिर बेठा घाट का है, विशाल मंडप व गर्भगृह में माताजी का गवाक्ष गोख है। मंदिर में मूर्ति नहीं है, मूर्ति के स्थान पर विशा यंत्र की पूजा होती है। यंत्र कुर्म पृष्ठ वाला सोने का है, इसमें 51 अक्षर हैं। यंत्र को खुली आंखों से देखना निषेध होने के कारण आंखों पर पट्टी बांधकर स्वर्णजडि़त विशा यंत्र की पूजा की जाती है। इस यंत्र को कल्पवृक्ष समान माना गया है, प्रत्येक महीने की अष्टमी पर यंत्र की पूजा की जाती है। संगमरमर की तख्ती पर स्वर्णजडि़त यंत्र को इस प्रकार से श्रृंगारित किया जाता है कि माताजी की छवि का आभास होता है। मंदिर के सामने चाचर चौक है, अंबाजी माता को चाचर चौक वाली माता भी कहा जाता है, चौक में हवन किया जाता है।

दिन में तीन स्वरूप, तीन भोग व सातों दिन अलग-अलग सवारी

अंबाजी माता का सवेरे बाल स्वरूप, दोपहर में युवती (नारी) व शाम को वृद्धा स्वरूप नजर आता है। सवेरे बाल भोग, दोपहर में राजभोग, शाम को सायं भोग धराया जाता है। मां अंबा सप्ताह के सातों दिन अलग-अलग सवारी पर सवार नजर आती हैं। इनमें सोमवार को नंदी, मंगलवार को सिंह, बुधवार को ऊंची सूंड के हाथी, गुरुवार को गरुड़, शुक्रवार को हंस, शनिवार को नीची सूंड के हाथी, रविवार को बाघ की सवारी में दृश्यमान होती हैं।

गब्बर मूल प्राकट्य स्थान होने की मान्यता

अंबाजी मंदिर की पश्चिम दिशा में तीन किलोमीटर दूर स्थित गब्बर अंबाजी का मूल प्राकट्य स्थान होने की मान्यता है। वहां सीढिय़ों व रोप-वे से पहुंचना संभव है। वहां अविरत अखंड ज्योत प्रज्जवलित होती है, इस ज्योत को अंबाजी मंदिर से भी देखा जा सकता है।

सिद्धपुर के मोनस गोत्र के ब्राह्मण करते हैं पूजा

मां अंबाजी की पूजा पाटण जिले में स्थित सिद्धपुर के मोनस गोत्र के ब्राह्मण करते हैं। गुरु से प्रदत्त दीक्षा के अनुसार चुस्त पालन करते हुए पूजा विधि की गुप्तता का पालन किया जाता है। मंदिर के भट्टजी महाराज भरतभाई पाध्या के अनुसार सवेरे 4 बजे उठकर स्नान इत्यादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर सवेरे 4.45 बजे मंदिर में प्रवेश करते हैं। आंखों पर पट्टी बांधकर माताजी की प्रक्षालन विधि सहित श्रृंगार करते हैं। अंबाजी के समीप कोटेश्वर में उदगम हुई सरस्वती नदी के निर्मल नीर से अंबाजी की प्रक्षालन विधि की जाती है। सामान्यतया प्रक्षालन विधि व श्रृंगार के बाद सवेरे 7.30 बजे आरती की जाती है। दोपहर 12.30 बजे शुद्ध घी से निर्मित राजभोग काष्ट अग्नि प्रकटकर घी की आहुति से भोग धराया जाता है। शाम 4 बजे मंदिर को मंगल (बंद) करने के बाद सफाई की जाती है। शाम 7 बजे स्नानादि विधि संपन्न कर संध्या आरती और रात 9 बजे मंदिर मंगल (बंद) के बाद मशाल प्रज्जवलित कर पुजारी की ओर से प्रार्थना की जाती है कि मां अंबा इस अंधकार से सभी को प्रकाश की ओर ले जाए।

ट्रस्ट का गठन 1985 में

अंबाजी मंदिर का प्रबंधन पहले दांता स्टेट की ओर से किया जाता था। आजादी के बाद दांता स्टेट गुजरात राज्य में शामिल हुआ। वर्ष 1985 से मंदिर का प्रबंधन करने के लिए श्री आरासुरी अंबाजी माता देवस्थान ट्रस्ट का गठन किया गया। ट्रस्ट के अध्यक्ष के तौर पर बनासकांठा जिले के जिला कलक्टर और प्रशासक के तौर पर उप कलक्टर को नियुक्त किया जाता है।