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हमारे बिगड़ते पर्यावरण की चिंता न्यूजीलैंड की सखियों को

देश में पर्यावरण के लगातार गड़बड़ाते संतुलन का ही कारण है कियहां के लोगों को असमय प्राकृतिक आपदाओं का कोप झेलना पड़ता है।

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भरुच। देश में पर्यावरण के लगातार गड़बड़ाते संतुलन का ही कारण है कियहां के लोगों को असमय प्राकृतिक आपदाओं का कोप झेलना पड़ता है। नागरिकोंसे बार-बार पर्यावरण संरक्षण की दिशा में जागरूक रहने और अलख जगाने की
अपील की जाती है, पर हर बार नतीजा ढाक के तीन पात रहता है। ऐसे में निराशा के घने अंधेरे में रोशनी की किरण फैलाने का काम कर रही हैं,न्यूजीलैण्ड की तीन महिलाएं। भारत में पर्यावरण संरक्षण की अलख जगाने केलिए से विदेशी महिलाएं ऑटो रिक्शा से सवारी कर लोगों को जागरूक करने का काम कर रही हैं।

जंगल मिटाने के स्थान पर जंगल को आबाद करने का प्रयास करना चाहिए

राजस्थान के जैसलमेर से केरल के कोच्चि (कोचिन) के लिए निकलीं ये तीन सखियां रास्ते में आने वाले हर शहर और गांव में पर्यावरण के रक्षक बनने के लिए लोगों को प्रेरित कर रही हैं। ऑटो रिक्शा से तीन दिन तक नियमित यात्रा कर एक हजार किमी की दूरी तय करने के बाद भरुच पहुंचीं न्यूजीलैंड की गार्र्बिली वाटसन, एन्ना ऐडी व पैट डिक्सन ने बताया कि पर्यावरण में हो रहे असंतुलन से परिस्थितिकी तंत्र बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। लोगों को जंगल मिटाने के स्थान पर जंगल को आबाद करने का प्रयास करना चाहिए। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ज्यादा जागरूकता लाने का काम किया जाना चाहिए। विदेशी महिलाओं ने कहा कि वे जैसलमेर से रिक्शा लेकर निकली हंै व स्वयं इसे चलाती हैं। यात्रा का अंतिम पड़ाव कोच्चि में होगा। इस दौरान वे देश की जलवायु के साथ जलवायु संरक्षण पर भी एक रिपोर्ट तैयार करेंगी।


पत्रिका व्यू....इनको चिंता, हमें शर्म तक नहीं
देश में पर्यावरण की रक्षा के लिए हजारों किलोमीटर का सफर करने निकलीं न्यूजीलैण्ड की तीन सखियों को सलाम। क्योंकि ये विदेशी महिलाएं उस आवाज और संकल्प को बुलंद कर रही हैं जो हमारे देश के ही नागरिक का कर्तव्य है।
लेकिन पर्यावरण, जंगल और पेड़ों को बचाने के लिए हम सब कितने चिंतित हैं, यह सच किसी से नहीं छिपा है। आज विकास की अंधाधुंध रफ्तार ने पर्यावरण को इस कदर कुचल कर रख दिया है कि हरियाली ढूंढने से नहीं मिलती। सांस लेना
तक दूभर हो गया है। हालात इस कदर बिगड़ गए हैं कि जल्द नहीं चेते तो आने वाली पीढ़ी को ठीक से चलते हुए भी देख नहीं पाएंगे, दौडऩा तो बहुत बड़ी बात होगा। निजी हितों से ऊपर उठकर उस बड़े हित के लिए भी गंभीरता और चिंतन के साथ काम करना होगा जो हमारे आने वाले कल को सुरक्षित माहौल दे सके। इसके लिए विदेशी मेहमानों से सीखना होगा, नहीं तो खुद को माफ नहीं कर पाएंगे।