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गुजरात के इन 12 शिल्प, कृषि उत्पाद को जल्द मिलेगा जीआई टैग

-ईडीआइआइ में नाबार्ड के सहयोग से शुरू हुआ राज्य का पहला क्षेत्रीय जीआई टैग सुविधा केंद्र

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Ahmedabad. गुजरात के खंभात की पतंग, सौराष्ट्र के कंबल व शॉल, कच्छी मिट्टी का शीशा शिल्प, गिर गाय का घी, डांग की कोदरी, सफेद रागी, वाराई सहित राज्य के 12 शिल्प और कृषि उत्पादों को जीआई टैग (भौगोलिक संकेतक) दिलाने की कवायद चल रही है।

राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के सहयोग से भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान (ईडीआइआइ) की ओर से की जा रही यह प्रक्रिया उन्नत स्तर पर पहुंच गई है। इन शिल्प, उत्पादों जैसे अन्य उत्पादों को जीआई टैग दिलाने और मौजूदा प्रक्रिया को गति देने के लिए सोमवार को नाबार्ड के सहयोग से ईडीआइआइ में राज्य का पहला क्षेत्रीय जीआई सुविधा केन्द्र शुरू किया गया है।

इस केन्द्र का उद्घाटन करने के बाद नाबार्ड के अध्यक्ष शाजी के वी ने बताया कि राज्य व देश की कला, संस्कृति , उत्पादों को संरक्षित करने के साथ उनसे जुड़े कारीगरों की आय को बढ़ाना इस केंद्र का मुख्य उद्देश्य है। जीआई टैग के मामले में भारत विश्व के अन्य देशों से पीछे है। देश में करीब 800 उत्पादों-शिल्पों को ही अब तक जीआई टैग मिला है, जिसमें से एक तिहाई को टैग दिलाने में नाबार्ड मददरूप हुआ है। हम चाहते हैं कि हर गांव के विशेष उत्पाद का दस्तावेजीकरण हो और उसे जीआई टैग दिलाया जाए।

उन्होंने कहा कि ईडीआइआइ में जीआई टैग का यह तीसरा सुविधा केंद्र शुरू हुआ है। इससे पहले वाराणसी, केरल में सेंटर खुल चुका है। पूर्वोत्तर क्षेत्र में भी एक सेंटर स्थापित करने की योजना है। इसके अलावा सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन जीआई टैगिंग खोलने पर भी नाबार्ड विचार कर रहा है।

कृषि उत्पाद, शिल्प के संरक्षण की दिशा में बड़ा कदम

ईडीआइआइ के महानिदेशक डॉ.सुनील शुक्ला ने कहा कि यह जीआई सविधा केंद्र देश की धरोहर, प्राचीन कृषि उत्पादों, शिल्प को संरक्षित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। इनसे जुड़े शिल्पकारों, उद्यमियों के लिए वैश्विक बाजार तक पहुंच को आसान बनाने, लाभ के द्वार खोलने में यह मददगार होगा। संस्थान के प्रोफेसर डॉ.सत्यरंजन आचार्य इस केंद्र की गतिविधियों की निगरानी करेंगे। आचार्य ने बताया कि गुजरात के 26 उत्पादों को अब तक जीआई टैग मिल चुका है। इस केंद्र की मदद से साल भर में जीआई टैग की संख्या 50 पर पहुंचाने की कोशिश की जाएगी।

इन्हें भी जीआई टैग दिलाने की प्रक्रिया

राजकोट के जसदण की पटारी क्राफ्ट, दाहोद के मणकों का कार्य, डीसा की डाबू ब्लॉक प्रिंट, दादरानगर हवेली की बांस की चटाई की बुनाई कला, दीव और दमण के समुद्री शंख के शिल्प को भी जीआई टैग दिलाने की प्रक्रिया उन्नत स्तर पर है। 12 शिल्प, कृषि उत्पादों में से 10 उत्पादों को संस्थान में प्रदर्शित भी किया गया।